स्वप्न
स्वप्न
कैसा है यह स्वप्न
क्या सचमुच
यह स्वप्न है या हकीकत
जहाँ हर रोज डूबती हूँ
और बच जाती हूँ क्यों ?
अब और नहीं बचना चाहती मैं
अब और नहीं डूबना चाहती मैं।
कभी दूर वन में भटकते हुए
कभी नदी के किनारे टहलते हुए
अकेले रहकर भी नहीं रह सकी मैं
लगा कोई मेरे साथ है।
हमेशा मेरे आस-पास
जिसका अहसाह मुझे
अपने अंदर तक महसूस होता है।
कभी रास्ते में चलते हुए
अपने आप में खोकर भी
नहीं खो पाती हूँ।
कैसा है यह स्वप्न
कभी इतना भयानक होता है
कि चाहकर भी इसको भुला नहीं पाती
कभी याद करने पर भी याद नहीं आती।
स्वप्न में हम सब इच्छाओं को जी लेते हैं
बात करना, मिलना, बिछड़ना,
झगड़ना, लड़ना
घूमना, फिरना, सब।
जिसके जीवन में
स्वप्न नहीं
उसका जीवन कैसा होता होगा
वह भी तो कुछ चाहता होगा।।