मैं
मैं
मैं की प्रत्याशा
मैं का होना है !
अहम से अलग इस मैं की व्याख्या करो
तभी सूक्ष्मता से जानोगे
मैं ही ब्रह्म
मैं मुहूर्त
मैं भाग्य
मैं दुर्भाग्य
मैं जीत
मैं हार
मैं आस्तिक
मैं नास्तिक
मैं हिंसक
मैं अहिंसक
मैं का दीया जलाना मैं पर है
मैं को अन्धकार में डुबोना मैं पर है
मैं सृष्टिकर्ता
मैं कुम्हार है
मैं सृष्टिनाशक
मैं मिट्टी
मैं ध्वनि
मैं सन्नाटा
मैं हास्य
मैं रुदन
मैं, मैं को जो चाहे बना दे
मैं एक द्वन्द
मैं परिणाम
चीरहरण करता मैं दुःशासन
चीर बढ़ाता मैं कृष्ण
मैं कौरव का अट्टहास
मैं पांडवों की कमजोरी
मैं शकुनि
मैं के विरुद्ध मैं ही लड़ता है
मैं अनिर्णयात्मक स्थिति में जीता है
मैं निर्णय लेता है
मैं ही कारण उपस्थित करता है
मैं ही उससे जूझता है
मैं को मिटा दोगे
तो क्या धरती-आकाश, ब्रह्माण्ड !!!
मैं एक गूढ़ रहस्य
गूढ़ तत्व
मैं कभी तुलसीदास बन
राम की कथा लिखता है
मैं ही वाल्मीकि बन
राम की अलग कथा लिखता है
मैं कलम
मैं सोच
मैं की मान्यता
मैं का इन्कार
मैं मूर्ति
मैं प्राणप्रतिष्ठा
मैं बनाता है हथियार
मैं बनाता है मलहम
मैं दर्द है
मैं ख़ुशी
मैं रिश्ता है मैं से
मैं दुश्मनी निभाता है
मैं निभाता है मित्रता
मैं, मैं के एक केंद्र को निश्छल बताता है
मैं, मैं पर ऊँगली उठाता है
मैं से युद्ध सरल नहीं
मैं को पाना सरल नहीं।