प्रभु दर्शन
प्रभु दर्शन
इन आँखों का दर्शन कैसा ,
देह अगन नयनों पे भारी।
इन कानों का श्रवण कैसा,
मनोरंजन कानों पे हावी।
चरण स्पर्श करूँ मैं कैसे ,
वसनयुक्त है कर स्पन्दन।
इर्ष्याग्रस्त जिह्वा है मेरी,
कैसे हो तेरा अभिनंदन।
तेरे वास को पहचानूं मैं ,
नहीं घ्राण शक्ति अभी विकसित।
चाह अनंत मन भागे पीछे ,
बोध दोष व्यसनों से कलुषित।
पथ मेरा तो तेरा ही प्रभु ,
बाधा पर मन रचा संसार।
पथिक तेरा हुँ मंज़िल तू हीं,
भटकाए मन बारम्बार।
तन मेरा संसार प्रक्षेपित ,
वसन वचन मन इन्द्रीय त्रस्त।
चाह मेरी दर्शन हो तेरा,
प्रभु तू ही राह करो प्रशस्त।