आईना
आईना
आईना देखते ही
वह घबराई
पीछे हट गई
आईने में
एक और भी शख्स
नज़र आता है
कौन ?
जानती है वह
अच्छी तरह
पहचानती है वह
कभी वो दोनों
एक साथ
आईना देखते
और कसमें खाते थे
कभी ना जुदा होने की
और अगर
वक्त बेरहम हो गया
तो आईने में ही सही
पर एक साथ
नज़र आने की,
आज
वक्त बेरहम है
वह
किसी और की
दुल्हन है
पर वो कसम निभाने
अक्स बन उभरता है
पर वह
घबरा जाती है
नहीं चाहती
वो नज़र आए
आईने में भी,
और वो कसम से बंधा
वादा निभाने को सदा
आ ही जाता है
और फिर
एक दिन
उसने
आईना तोड़ दिया,
मासूम है
नहीं जानती,
भुलाए नहीं भूलते
वो सुनहरे पल
बीते हुए कल
वह पल
मिट कहां पाते हैं
वह तो
आईने के हर टुकड़े में
सिमट आते हैं।