Nishant Bajpai

Romance Tragedy Inspirational

4.4  

Nishant Bajpai

Romance Tragedy Inspirational

ज़ारा : एक दर्द भरी दास्तान

ज़ारा : एक दर्द भरी दास्तान

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ज़ारा की अम्मी आज ही मेरी एक अच्छे वकील से बात हुई है उन्हें मैंने सब कुछ बता दिया है केस के बारे में और अपनी परिस्थितियों के बारे में भी। अभी नौजवान ही है पर बड़ा ही नेक दिल इंसान है सिद्धार्थ साहब, ज़ारा के अब्बू मोहसिन जी अमीना जी से कहते हैं।


चलो शुकर है अल्लाह का। पैसों की बात हुई उनसे, अमीना मोहसिन जी से पूछतीं है।

हां हो गयी केस सुनने के बाद सिद्धार्थ जी ने कहा है के वो एक भी पैसा नहीं लेंगे और जी तोड़ मेहनत करेंगे हमारी ज़ारा को इंसाफ दिलाने के लिए। और बहुत जल्द वो ज़ारा से मिलने भी आएंगे, मोहसिन जी अमीना जी को बताते है।

खुदा ऐसे नेक बन्दे को बरकत दे, अमीना जी बोलती है।


2 दिन बाद :


दो दिन बाद सिद्धार्थ ज़ारा से मिलने उनके घर आते है।

सलाम साहब। आइये ज़ारा अपने कमरे में लेटी है पर उस हादसे के बाद वो किसी से कोई भी बात नहीं कर रही, मोहसिन जी सिद्धार्थ से कहते है।

मोहसिन जी आप फिक्र मत कीजिये भगवान सब ठीक करेगा, सिद्धार्थ मोहसिन जी के कंधे को थपथपाते हुए कहता है।

सिद्धार्थ मोहसिन और अमीना जी के साथ ज़ारा के कमरे में जाता है। ज़ारा बिस्तर पर डरी हुई सबकी सी एक कोने में लेटी थी।

ज़ारा बेटा देखो आपसे मिलने कौन आया है, मोहसिन जी ज़ारा से कहते है।

ज़ारा हल्का सा कम्बल हटाकर देखती है और वापस कम्बल ओढ़ लेती है।


ज़ारा मैं सिद्धार्थ आपको इंसाफ दिलाने आया हूं। आप भरोसा करो मुझपर आपको इस हालत में पहुँचाने वालो को फांसी ही होगी और मैं दिलवाऊंगा उन्हें फांसी, सिद्धार्थ ज़ारा से कहता है।

इस बार ज़ारा उठकर बैठ जाती है और सिद्धार्थ की ओर बड़ी मासूम सी नज़रों के सर्च देखती है।

आप दिलाओगे उन बदमाशों को सज़ा, ज़ारा सिद्धार्थ से कहती है।

हां ज़ारा। मैं आपसे वादा करता हूं के चाहे जो हो जाये मैं आपको इंसाफ दिलवाकर रहूंगा पर उसके लिए आपको मेरी मदद करनी होगी। आप मुझे सिर्फ एक वकील नहीं अपना सच्चा दोस्त समझो, सिद्धार्थ कुर्सी पर बैठते हुए ज़ारा से कहता है।


ज़ारा की आँखों में जो आँसू उसने बड़ी मुश्किल से रोक रखे थे वो एकाएक बह निकले।

सिद्धार्थ ज़ारा को अपना रुमाल देता है और ज़ारा अपने आँसू पोछ लेती है।

आप बहुत बहादुर हो ज़ारा। आप रो मत अब रोने की बारी उन कमीनों की है, सिद्धार्थ ज़ारा से कहता है।

पर बाकी सभी मोहल्ले वाले और रिश्तेदार कहते है के गलती मेरी है। अब मैं गंदी हो गयी हूं अब मेरा निकाह नहीं होगा, मुझे मर जाना चाहिए था वगैरह वगैरह, ज़ारा बोलती है।

ऐसा कुछ भी नहीं है ज़ारा। ऐसा कहने वाले सभी बेवकूफ है अनपढ़ है। आप देखना आपकी शादी बहुत धूमधाम से करेंगे जैसे सभी शादियां होती है, सिद्धार्थ ज़ारा से कहता है।


अच्छा ज़ारा अब ये बताओ के उस दिन हुआ क्या क्या था मतलब कैसे आप वहां गयी और कैसे उसने आपको धोखे से ये सब हुआ, सिद्धार्थ ज़ारा से पूछता है।

सर मैं रिज़वान से प्यार करती थी, उस दिन हमारा मूवी देखने का प्लान था तो उसके मुताबिक हम रात में 9 बजे सिनेमा हॉल पहुँचे। पर रिज़वान ने कहा के यहां तो शो हॉउसफुल है तो चलो मेरी खाला के घर चलते है वहां सिर्फ मेरी खाला है तो साथ में बिताने का अच्छा समय मिल जाएगा। उसके बाद मैं उसके साथ उसके खाला के घर गयी पर घर में खाला नहीं बल्कि उसका दोस्त आरिफ था और उसके बाद दोनों ने..... इतना कहते ही ज़ारा जोर जोर से रोने लगी।

ज़ारा की बातें सुनकर सिद्धार्थ की भी आँखें गीली हो गयी। पूरे कमरे में एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था जिसे ज़ारा के सुबकने की आवाज बार बार उस सन्नाटे को चीर रही थी।

सिद्धार्थ रुमाल से अपनी आंख पोंछते हुए, ज़ारा आप रो मत अब रोयेंगे वो जिन्होंने ऐसी घिनौनी हरकत की है।

कुछ देर बाद सिद्धार्थ वहां से चला जाता है।


सिद्धार्थ का घर :

सिद्धार्थ अपने घर के बरामदे में घूम रहा है और किसी सोच में डूबा हुआ है।

इतनी मासूम सी लड़की है ज़ारा। कितना गलत किया उस रिज़वान ने उसके साथ। चाहे कुछ भी हो जाये मैं रिज़वान को यूं नहीं छोडूंगा।


कुछ दिन बाद कोर्ट में :

मिलोर्ड बलात्कार से बड़ा जुर्म और कोई नहीं हो सकता और फांसी से कम कोई सज़ा ऐसे दरिंदों को होनी नहीं चाहिए जो दोस्ती या प्यार जैसे पवित्र रिश्तों को तार तार कर देते है, सिद्धार्थ जज साहब के सामने अपनी बात रखता है ।

परन्तु योर ऑनर ये बलात्कार नहीं परन्तु इस लड़की की मर्ज़ी से संबंध बने थे और ये दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे। मर्ज़ी से बने संबंध गलत कैसे हो सकते है और मैं तो ये कहूंगा के इस लड़की को जब भरोसा ही नहीं था तो इतनी रात में अकेले उसके घर गयी क्यों? विपक्ष वकील मिस्टर चोपड़ा अपनी दलील रखते है।


जज साहब अगर रिश्ते मर्ज़ी से बने होते तो ये केस नहीं होता। और चोपड़ा जी आप ये बताइये की ये जो शर्मनाक कृत्य किये है इन राक्षसों ने क्या उसे भी आप इस लड़की की मर्ज़ी कहेंगे, सिद्धार्थ बोलता है।

कुछ पल के लिए कोर्ट रूम में सन्नाटा छा जाता है। 

डी. एन.ए. वा फोरेंसिक रिपोर्ट आने तक ये अदालत यही स्थगित की जाती है, कहते हुए जज साहब अपनी कुर्सी छोड़कर चले जाते है।

पुलिस वाले आरोपियों को लेकर चली जाती है। सिद्धार्थ ज़ारा व उसके परिवार को लेकर चला जाता है।


ज़ारा का घर :

सिद्धार्थ और बाकी सब ज़ारा के साथ उसके कमरे में बैठे हुए हैं।

ज़ारा तुम परेशान मत हो, जब तक मैं हूं तुम्हें परेशान होने की कोई भी जरूरत नहीं है। और बात रही समाज की तो उनकी बातों पर ध्यान नहीं दो, सिद्धार्थ ज़ारा को समझते हुए कहता है।

सर आप लड़की होते तो शायद आप समझ पाते मेरे दर्द को के क्या गुज़र रही है मेरे ऊपर, ज़ारा सिद्धार्थ से कहती है।

सिद्धार्थ सर नीचे झुका लेता है और ज़ारा का हाथ आने हाथ में पकड़ कर कहता है, ज़ारा मैं लड़का ज़रूर हूँ पर मैं तुम्हारी भावनाओं को समझ सकता हूं। मेरी भी बहन है घर पर।

अपना हाथ सिद्धार्थ के हाथों ने देखकर ज़ारा कुछ थोड़ा सकुचा जाती है और सिद्धार्थ के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लेती,यही उधर सिद्धार्थ भी थोड़ा शर्मिंदा महसूस करता है।


अच्छा मोहसिन जी अब मैं चलता हूं घर और सब इंतज़ार कर रहे होंगे, इतना कहकर सिद्धार्थ वहां से चला जाता है।

कितने नेक है सिद्धार्थ जी। इतनी शिद्दत से इस केस पर काम कर रहे है और पैसे का नाम भी नहीं लिया एक बार भी, अमीना जी मोहसिन जी से कहती है।

हां सो तो है, मोहसिन जी अमीना जी की बात का समर्थन करते है।


सिद्धार्थ का घर :

सिद्धार्थ अपने बेड पर लेटा हुआ है , शायद कुछ सोच रहा है।

जब भी मैं ज़ारा के साथ होता हूं सुकून सा मिलता है जब उसके मासूम से चेहरे को उदास देखता हूं तो मेरा मन भी उदास हो जाता है। वो चेहरा जो हमेशा मुस्कुराता रहना चाहिए उस पर इतनी उदासी अच्छी नहीं लगती, सिद्धार्थ मन ही मन सोचता है।

क्यों न उसे कल कही बाहर घुमाने ले जाऊँ। शायद उसका मन भी कुछ बदल जाये उसकी उदासी कुछ कम हों जाये।


अगला दिन ज़ारा का घर -

नमस्कार मोहसिन जी, सिद्धार्थ ज़ारा के घर में प्रवेश करते हुए बाहर बरामदे में बैठे मोहसिन जी से कहता है।

अरे सिद्धार्थ बाबू इतनी जल्दी आज सुबह सुबह कैसे आना हुआ, मोहसिन जी सिद्धार्थ की तरफ कुर्सी बढ़ाते हुए बोलते है।

हां जी आज मेरा जन्मदिन है तो मिठाई देने चला आया, सिद्धार्थ मिठाई का डिब्बा आगे बढ़ाता है।

मोहसिन जी मुझे आपसे कुछ कहना है, सिद्धार्थ आगे बोलता है।

हां सिद्धार्थ बाबू कहिए, मोहसिन जी सिद्धार्थ से पूछते है।

वो मैं ये कह रहा था के क्या आप लोग मेरे घर आज पार्टी में आ सकते है ज़ारा के साथ, सिद्धार्थ अपनी बात मोहसिन जी से कहता है।

वो हम सब आपकी जन्मदिन की पार्टी में कैसे आ सकते है , मोहसिन जी सिद्धार्थ से कहते है।

अब आप लोग भी मेरे परिवार जैसे ही हैं इसलिए आप सब को भी आना होगा पार्टी में, सिद्धार्थ ज़ारा के परिवार से कहता है, सिद्धार्थ मोहसिन जी से ज़िद करता है।

अब आप इतना कह रहे है तो हम सब जरूर आएंगे आपके घर, मोहसिन जी सिद्धार्थ से कहते है।

थैंक्स सो मच मोहसिन जी । अच्छा अब मैं चलता हूं पार्टी की तैयारी भी करनी है शाम को मिलता हूँ आप सब से , सिद्धार्थ मुस्कुराते हुए कहता है और वहां से निकल जाता है।


सिद्धार्थ का घर 

शाम के साढ़े छः बजे है मोहसिन जी अमीना जी और ज़ारा के साथ सिद्धार्थ के घर पहुँचते है।

वहां देखते है के पार्टी जैसी कोई रौनक है ही नहीं सिर्फ एक हल्का सा संगीत चल रहा है और कोई भी मेहमान नज़र नहीं आता। 

आइये आइये भाईसाहब, सिद्धार्थ के पिता जी मिश्रा जी मोहसिन जी के परिवार का स्वागत करते है।

सभी घर के अंदर जाते है और वही पड़े सोफे पर सब बैठ जाते है।

मिश्रा जी कोई मेहमान तो नज़र नही आ रहा, सिद्धार्थ बाबू तो कह रहे थे के आज उनके जन्मदिन की पार्टी है, मोहसिन जी मिश्रा जी से पूछते है।

हांजी वो पार्टी तो थी पर सिड ने कहा के इस बार वो अपना जन्मदिन सिर्फ आप लोगों और परिवार के लोगों के साथ ही मनाना चाहता है, मिश्रा जी कुछ सकुचाते हुए बोले।


अच्छा, मोहसिन जी ने एक लंबी सांस लेते हुए कहा।

इसी बीच सिद्धार्थ वहां आता है और ज़ारा व उसके परिवार का सभी से परिचय करवाता है।

सिद्धार्थ केक काटता है और सभी को खिलता है अपने हाथों से।

ज़ारा जिसे पेंटिंग बनाने का शौक है वो अपनी एक बनाई हुई पेंटिंग सिद्धार्थ को तोहफे में देती है।

कुछ देर बाद खाना खाने के बाद ज़ारा व उसका परिवार अपने घर चला जाता है।

अब सिद्धार्थ ज़ारा के घर अकसर जाया करता और उससे बाते किया करता। अब ज़ारा भी उसकी बातों का कुछ कुछ जवाब देती। इन सब में सिद्धार्थ को ज़ारा से कब लगाव हो गया उसे भी पता ना चला, अब लगाव कहे या इश्क़ शुरुआत तो हो चुकी थी।


कुछ दिन बाद कोर्ट में

जज साहब फॉरेंसिक से सारी रिपोर्ट्स आ चुकी है और वो आपके मेज़ पर पहुँचा दी गयी है। इन रिपोर्ट्स से पता चलता है की वो कोई मर्ज़ी से बने संबंध नहीं थे वो इन राक्षसों की सोची समझी साजिश से किया हुआ एक घिनौना काम था, सिद्धार्थ जज साहब से कहता है।

जज साहब अपना चश्मा लगाकर कुछ देर तक उन रिपोर्ट्स को पढ़ते है और फिर बोलते है, चोपड़ा जी अब आप अपने मुवक्किल के पक्ष में कुछ कहेंगे या मैं अदालत का फैसला सुनाऊँ।

चोपड़ा साहब अपनी गर्दन झुका लेते है और कुछ नहीं बोलते है।


जज साहब अंत में मैं यही कहूंगा के जो घिनौना कृत्य इन दरिंदों ने किया है उसके लिए इन्हें कठोर से कठोर सजा दी जाए ताकि आगे से कोई भी ऐसे किसी भी रिश्ते को कलंकित ना कर सके। मैं चाहता हूँ के आज ज़ारा को इंसाफ मिले और इन अपराधियों को जितना हो सके उतना कठोर दंड दिया जाए, सिद्धार्थ अपनी बात जज साहब से कहता है।

जज साहब कुछ देर सोचते है और फिर कुछ लिखते है। और लिखने के बाद बोलते है,


बलात्कार जैसा संगीन और घिनौना कृत्य कोई दूसरा नहीं है, और इस केस में तो एक लड़के ने तो अपनी प्रेमिका रही लड़की को ही नहीं बख्शा। और जैसा के आज अदालत में विपक्षी वकील चोपड़ा साहब कुछ नहीं बोले इससे समझ आता है के उन्हें भी अपने मुवक्किल के कारनामों को जानकर शर्म आ रही है। सारी दलीलें और सबूत देखने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची है के दफा 376 के तहत मुजरिम रिज़वान वा आरिफ को साढ़े सात - साढ़े सात साल की कैद वा 1-1 लाख रुपयों का जुर्माना सुनाती है। और ये केस यही बन्द होता है।


जज साहब फैसला सुनाने के बाद चले जाते है, पुलिस दोनों आरोपियों को पकड़ कर जेल ले जाती है।

उधर मोहसिन जी व उनके परिवार में इस बात की खुसी होती है के उनकी बेटी को इंसाफ मिल गया।

सिद्धार्थ बाबू हम आपके एहसानमंद रहेंगे ताउम्र, मोहसिन जी सिद्धार्थ से कहते है।

एहसान जैसा कुछ भी नहीं है मोहसिन जी। ये तो मेरा फ़र्ज़ था, सिद्धार्थ मोहसिन जी को गले लगाते हुए कहता है।

सभी वहां से अपने अपने घर चले जाते है।


शाम का समय

अरे सिद्धार्थ बाबू आप इस समय कैसे आना हुआ, मोहसिन जी सिद्धार्थ को अपने घर आया देख उससे पूछते है।

बस इधर से गुज़र रहा था तो सोचा चलो आप सबसे मिल लेता हूं और एक एक चाय भी हो जाएगी साथ में, सिद्धार्थ मोहसिन जी से कहता है।

बिल्कुल। आप लोग यहां बैठ कर बाते करो मैं अभी चाय बनाकर लाती हूं। अमीना जी बोलती है और वह से किचन की तरफ चली जाती है।

मोहसिन जी मुझे आपसे एक और जरूरी बात कहनी है पर शायद आपको थोड़ा अजीब लगे पर यही सच है, सिद्धार्थ मोहसिन जी से कहता है।


हाँ हाँ बोलिये सिद्धार्थ बाबू, मोहसिन जी सिद्धार्थ से कहते है।

वो मैं कह रहा था के मैं ज़ारा से शादी करना चाहता हूं, जब से मैंने ज़ारा को जाना है मुझे उससे मोहब्बत हो गयी है, सिद्धार्थ अपनी पूरी बात एक सांस में कहता है।

यह सुनकर मोहसिन जी चौक जाते है फिर खुद को संभालते हुए कहते है।

सिद्धार्थ बाबू, पर ये कैसे संभव है आप तो सब बातें जानते हो और मैं ज़ारा पर कोई दबाव भी नहीं डाल सकता। आप जैसा लड़का तो किस्मत वाली लड़की को मिलता है। मैं एक बार ज़ारा से बात करना चाहूंगा।

धन्यवाद मोहसिन जी, बिल्कुल आप एक बार ज़ारा से बात जरूर कर ले , बिना उसकी मर्जी के कुछ नहीं होना चाहिए, सिद्धार्थ मोहसिन जी से कहता है।

लीजिये चाय पीजिए, अमीना जी चाय का कप देते हुए कहती है।

चाय पीने के बाद सिद्धार्थ वहां से चला जाता है।


सिद्धार्थ का घर 

डैड, मॉम, आरती यहां आइये जल्दी से मुझे आपको कुछ जरूरी बात बतानी है, सिद्धार्थ सब को एक साथ अपने कमरे में बुलाता है।

सभी सिद्धार्थ के कमरे में आ जाते है।

हां क्या हुआ इतना तेज क्यों चिल्ला रहा है आज और सब को यहां क्यों बुलाया एक साथ, सिद्धार्थ की माँ जी उससे पूछती है।

मॉम मैंने एक लड़की पसंद की है और उससे शादी करना चाहता हूं, सिद्धार्थ बोलता है।

अच्छा है फिर तो वैसे कौन है वो लड़की, मिश्रा जी सिद्धार्थ से पूछते है।

डैड वो लड़की कोई और नहीं ज़ारा है, सिद्धार्थ बताता है।

वही लड़की जिसके बलात्कार का केस तूने लड़ा था , माँ जी भौ चढ़ाकर सिद्धार्थ से पूछती हैं।

जी मॉम। वही लड़की, सिद्धार्थ बताता है।

तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या। एक तो वो अपवित्र दूसरी मुस्लिम। कभी नहीं वो लड़की इस घर की बहु कभी नहीं बनेगी, माँ जी गुस्से में कहती है।


मॉम वो अपवित्र नहीं है। और मुस्लिम लड़की लड़की नहीं होती क्या और शादी मुझे करनी है मैं प्यार करता हूं उससे। और माँ आप तो औरत हो आपसे बेहतर कौन समझेगा एक लड़की को, सिद्धार्थ माँ जी को समझाता है।

वो जो भी हो सिड तुम्हें मुझ में से और उसमें से किसी एक को चुनना होगा, माँ जी सिद्धार्थ से कहती है।


माँ क्या उसका हक नहीं है के वो समाज में सर उठाकर जीये, क्या उसका हक नहीं है के वो आने हिस्से की ज़िन्दगी ख़ुशी के साथ जीये। और बात रही आप दोनों में से किसी एक को चुनने की तो माँ आप दोनों ही मेरे लिए इम्पोर्टेन्ट हो। अगर मेरी शादी ज़ारा से नहीं हुई तो मैं किसी और से भी नहीं करूँगा शादी कभी भी, इतना कहते हुए सिद्धार्थ गुस्से से बाहर चला जाता है।


देखा आपने आपके लाड़ प्यार ने इसे बिगाड़ दिया है, माँ जी मिश्रा जी से कहती है।

बबली जी हमें आने बेटे पर गर्व होना चाहिए के उसने इतना बड़ा फैसला लिया है हर कोई ऐसा फैसला नहीं के पाता। और हमने भी तो लव मैरिज की है ना और हम आज कितने सुखी और खुश है तो क्यों न उसे उसके हिस्से की ख़ुशी दे दे वैसे भी आज तक सिड ने हमसे कभी कुछ नहीं मांगा, मिश्रा जी माँ जी से कहते है।

वो तो ठीक है पर समाज के बारे में भी तो सोचना है, माजी मिश्रा जी से कहती है।

बबली जी अगर हम समाज के बारे में इतना सोचेंगे को आज हम भी एक ना हुए होते और प्यार करना कहा गलत है, मिश्रा जी माजी से कहते है।

आप जैसा ठीक समझे सिड के पापा, माजी मिश्रा जी से कहती है।

मिश्रा जी माजी व आरती तीनों एक साथ गले लगते है।

तीनों सिद्धार्थ के पास जाते है। सिद्धार्थ बालकनी में परेशान होकर इधर उधर टहल रहे होता है।

सिड इधर आ, मिश्रा जी सिद्धार्थ को बुलाते है।

सिद्धार्थ उन लोगों के पास आता है।

तो हमें बहू से कब मिला रहा है, माजी सिद्धार्थ से कहती है।

बहू??????? सिद्धार्थ चौक जाता है।

हां हां हमारी बहू ज़ारा। कब शगुन लेकर जाना है उसके घर, मानी मुस्कुराते हुए बोलती है।

लव यू मॉम। मुझे पता था आप जरूर समझोगी, सिद्धार्थ ख़ुशी से सब को गले लगा लेता है।

बहुत जल्द आप सब को मिलवाऊंगा आपकी बहू से, सिद्धार्थ कहता है।


अगले दिन(ज़ारा का घर)

नमस्ते अंकल जी, सिद्धार्थ बाहर के कमरे में कुर्सी पर बैठे मोहसिन जी से कहता है।

नमस्ते सिद्धार्थ बाबू, मोहसिन ही सिद्धार्थ की बात का जवाब देते है।

आप मुझे सिर्फ सिद्धार्थ कह कर बुलाया करिए, सिद्धार्थ मुस्कुराते हुए मोहसिन जी से कहता है।

ज़ारा की अम्मी चाय बनाकर लाओ सिद्धार्थ आये है, मोहसिन जी अमीन जी को कहते है।

अंकल जी वो मैं ये पूछने आया था......

मोहसिन जी सिद्धार्थ को बीच मे रोकते है और कहते है, बेटा मैंने और ज़ारा की अम्मी ने उससे बात की पर उसे लगता है के तुम उससे शादी सिर्फ उसपर दया खाकर कर रहे हो क्योंकि आप एक अच्छे इंसान हो इसलिए।


नहीं अंकल ऐसा कुछ भी नहीं है। मुझे ज़ारा बहुत पसंद है और मुझे उससे प्यार है तभी मैने ये निर्णय लिया है, सिद्धार्थ मोहसिन जी से कहता है।

मैं जानता हूं और ज़ारा मानने को तैयार ही नहीं है, मोहसिन जी सिधार्थ को बताते है।

क्या मैं ज़ारा से बात कर सकता है अंकल , सिद्धार्थ मोहसिन जी से पूछता है।


हां बेटा बिल्कुल। ज़ारा अपने कमरे में है और पहले चाय पी लो, मोहसिन जी सिद्धार्थ से कहते है

चाय तो अब ज़ारा के साथ ही पियूंगा मैं, कहते हुए सिद्धार्थ ज़ारा के कमरे की तरफ चल देता है।


क्या मैं अंदर आ सकता हूं, सिद्धार्थ कहता है कमरे के दरवाजे पर खड़ा होकर।

जी आ जाये , ज़ारा सिद्धार्थ को कमरे में आने के लिए बोलती है।

कैसी हो अब आप, सिद्धार्थ ज़ारा से पूछता हूँ।

अब थोड़ा बेहतर महसूस कर रही हूं जब से आपने उन दोनों को सज़ा दिलवाई है,ज़ारा सिद्धार्थ से कहती है।


आपके बिना कुछ भी संभव नहीं था ज़ारा। आपने मिसाल पेश की है उन लड़कियों के लिए जो ये सब होने के बाद खुदकुशी कर लेती है और आरोपी खुले आम मज़े से ज़िन्दगी गुजरती है, सिद्धार्थ ज़ारा से कहता है।


पर ये नासूर तो अब ज़िन्दगी भर साथ चलेगा। और ये सवाल बहुत ज्यादा परेशान करता है के इस बच्चे को अकेले पालूंगी तो जब ये बड़ा होगा इसको क्या जवाब दूंगी मैं, ज़ारा कहते कहते उदास हो जाती है उसकी आँखों से आंसू बहने लगते है।


इस बच्चे को मैं अपना नाम देना चाहता हूँ और आपको हमेशा हमेशा के लिए अपना बनाना चाहता हूं। मैं आपसे प्यार करने लगा हूं ज़ारा। क्या आप मुझसे शादी करोगी, सिद्धार्थ एक ही सांस में अपना हाले दिल ज़ारा से कह देता है।


ज़ारा अपनी भीगी आंखों से चौकी हुई नज़रों से सिद्धार्थ की ओर देखती है। 

मुझपर इतना बड़ा एहसान मत करिए सिद्धार्थ। आप बहुत अच्छे हो आपको बहुत अच्छी लड़की मिल जाएगी, ज़ारा अपने आंसू पोंछते हुए सिद्धार्थ से कहती है।


मैं आप पर कोई एहसान नहीं कर रहा हूँ ज़ारा। मैं आपसे बेइंतहा मोहब्बत करने लगा हूं और बस अपनी मोहब्बत को शादी जैसा पवित्र रिश्ते का रूप देना चाहता हूं, सिद्धार्थ ज़ारा की ओर देखकर उससे कहता है।


अगर मैं राज़ी हो भी जाऊँ तो आपके घर वाले और ये समाज हमें कभी एक साथ स्वीकार नहीं करेगा सिद्धार्थ आप समझने की कोशिश करो। मेरी और आपकी जिंदगियां अलग अलग है, ज़ारा सिद्धार्थ से नज़रें चुराते हुए कहती है।


मैंने अपने घर पर कह दिया है के शादी करूँगा तो सिर्फ आपसे वर्ना जीवन भर कुंवारा रहूंगा और मेरे घर वालों को कोई एतराज नहीं है। और बात रही समाज या ज़माने की तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। हम कही दूर एकांत में अपनी दुनिया बसायेंगे, सिद्धार्थ कहता है।


सिद्धार्थ कहना जितना आसान है हकीकत उतनी आसान नहीं होती, ज़ारा सिद्धार्थ को समझाने की कोशिश करती है।


अगर आप साथ हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं, सिद्धार्थ ज़ारा से कहता है।

ज़ारा आपके पास कल सुबह तक का समय है एक बार फिर सोच लीजिये, कहते हुए सिद्धार्थ वह से निकल जाता है।


सिद्धार्थ! सिद्धार्थ! ज़ारा पीछे से आवाज लगाती है। पर सिद्धार्थ उसे अनसुना करके निकल जाता है।


मोहसिन जी और अमीना जी ज़ारा के कमरे में आते है।

देख बेटा सिद्धार्थ जितना प्यार करने वाला लड़का बहुत किस्मत से मिलता है। उसे तो हज़ारों मिल जाएंगी बेटा। किस्मत एक बार दरवाजा खटखटाती है पर बदकिस्मती तब तक दरवाजा खटखटाती है जब तक के दरवाजा खुल न जाये। बेटा अपना ले सिद्धार्थ को, अमीन जी ज़ारा से कहती है।


पर अम्मी अब इन प्यार मोहब्बत इश्क़ जैसे लफ़्ज़ों से मुझे नफरत हो गयी है, ज़ारा अमीना जी से कहती है।

बेटा किसी एक लड़के के कुकर्मो की सज़ा हर किसी को देना ये गलत है, मोहसिन जी ज़ारा से कहते है।

ठीक है आप दोनों इतना कह रहे है तो सोचूंगी एक बार, ज़ारा कहती है।


अगली सुबह

अगली सुबह ज़ारा के बचपन का दोस्त निशांत बाजपेई ज़ारा के घर आता है।

नमस्ते अंकल! नमस्ते आंटी!

अरे निशांत बेटा तुम कब आये दिल्ली से, अमीना जी कहती है।

बस कल रात आया ऑन्टी। ज़ारा कहा है दिख नहीं रही, निशांत कहता है।

वो अपने कमरे में है जाकर मिल लो , मोहसिन जी निशांत से कहते है।

निशांत ज़ारा के कमरे में जाता है।

हाय जैज़! केसी है, निशांत ज़ारा से कहता है।

अरे निश तू कब आया। मैं तो ठीक हूं तू बता कैसा है, ज़ारा निशान्त से कहती है।

मैं तो एक दम अच्छा हूं।, निशांत ज़ारा से कहता है।

और घर पर सब कैसे है, ज़ारा निशांत से पूछती है।

घर पर सब अच्छे है। और तू ये बता तू इतनी उदास उदास क्यों है? निशांत ज़ारा से पूछता है।

नहीं यार कुछ नहीं, ज़ारा बोलती है।


मुझे पता चला तेरे केस के बारे में, बहुत बुरा लगा। पर जिस बहादुरी से तूने उन कमीनों को सज़ा दिलवाई है। ये सिर्फ तू ही कर सकती है जैज, निशांत कहता है।


पर तेरा ये दोस्त हमेशा तेरे साथ है। जो गुज़र गया उसे भूल जा और ज़िन्दगी नए सिरे से शुरू कर। जानता हूं ये सब भूलना नामुमकिन है फिर भी कह रहा हूं जैज। जो हो गया उसे बदल तो नहीं जा सकता पर उसे भूलकर ज़िन्दगी में आगे ज़रूर बढ़ा जा सकता है, निशांत अपनी बात को पूरा करता है।

जानती हूं के तू हमेशा मेरे साथ है , ज़ारा निशांत से कहती है।

और अफसोस है के जब तुझे मेरी सबसे ज्यादा जरूरी थी उस समय मैं तेरे साथ नहीं था, निशांत कहता है ।

कोई बात नहीं निश। अभी तू बिल्कुल सही टाइम पर आया है मुझे तुझसे कुछ बात करनी है।

ज़ारा निशांत को सिद्धार्थ के बारे में शुरू से आखिर तक पूरी बात बताती है।

देख जैज, जीतना तूने सिद्धार्थ के बारे में मुझे बताया है उससे वो लड़का बहुत अच्छा मालूम पड़ता है। और मेरी समझ से तुझे हां बोल देनी चाहिए शादी के लिए, निशांत ज़ारा से कहता है।


अगला दिन

अगले दिन सुबह लगभग 11 बज रहे होंगे सिद्धार्थ अपने परिवार के साथ ज़ारा के घर पहुँचता है।

नमस्ते अंकल! ये मेरी फैमिली है मॉम, डैड और मेरी छोटी बहन आरती, सिद्धार्थ मोहसिन जी से कहता है।

आइये आइये बैठिये, मोहसिन जी सबको बिठाते है।

अमीना जी सबके लिए चाय नाश्ता लाती है।

अरे इस सब की क्या जरूरत रही भाभी जी। हम तो यहां अपनी होने वाली बहू को देखने आए है, मिश्रा जी कहते है।

अरे तो पहली बार हमारे घर आये हैं तो चाय तो पीनी ही पड़ेगी भाई साहब, अमीना जी मिश्रा जी से कहती है।

आप सब चाय नाश्ता कीजिये। निशांत जा ज़ारा को बुला ला अंदर से। ये निशांत है ज़ारा का बचपन का दोस्त परसो ही दिल्ली से आया है, अमीना जी कहती है।


सिद्धार्थ मन ही मन प्रार्थना करता है, है भगवान जी ज़ारा मान जाए इस रिश्ते के लिए।

कुछ देर बाद अंदर से ज़ारा आती है। हलके गुलाबी रंग के लहंगे में वो बला की खूबसूरत लग रही थी।

ज़ारा सभी को नमस्ते कहती है।

बेटा जरा इधर मेरे पास बैठना आकर, बबली जी ज़ारा से कहती है।

ज़ारा बबली जिनके वास वाली कुर्सी पर बैठ जाती है।

बहू हमारी बहुत खूबसूरत है। नज़र ना लगे इसको। बाहें जी इसकी नज़र उतार दीजिएगा आज, बबली जी मुस्कुराते हुए कहती है।


सभी हँसने लगते है।

सिद्धार्थ मन ही मन मे कहता है के ज़ारा मुस्कुराते हुए कितनी अच्छी लगती है।

तो बेटा आपको सिद्धार्थ पसंद है? क्या आप हमारे घर की बहू बनोगी? बबली जी ज़ारा से पूछती है।

कुछ देर खामोश रहने के बाद ज़ारा धीमी सी आवाज में हां कहती है।

ज़ारा का हैं सुनते ही सब बहुत खुश हो जाते है।

सभी एक दूसरे को बधाई देते है।

पर भाईसाहब शादी हमारे रीति रिवाजों के अनुसार होगी, बबली जी मोहसिन जी से कहती है।

मंजूर है भाभी जी , मोहसिन जी कहते है।


15 दिन बाद

15 दिन बाद तय मुहूर्त के अनुसार ज़ारा और सिद्धार्थ की शादी बड़ी धूमधाम से होती है।


दोनों काफी खुश है और उनसे ज्यादा खुश है दोनों परिवार।

कहने को तो दो परिवार जिनका धर्म अलग अलग था पर आज ख़ुशी देखकर पता लग गया के धर्म कोई भी हो पर है तो सब इंसान ही। आज धर्म के नाम पर कोई रोक टोक नही थी। आज ना तो कोई मुस्लिम था और ना कोई हिन्दू। बस थे तो बाराती और जनाती।


8 महीने बाद उनके घर एक बेटी ने जन्म लिया। दोनों परिवारों में एक बार फिर ख़ुशी मनाने का अवसर मिला था।

उसके दो नाम रखे गए एक ज़ोया और दूसरा तुलसी।

अब मोहसिन जी नौकरी छोड़कर मिश्र जी के साथ उनके काम में हाथ बटाते है। और अमीना जी व बबली जी अकसर एक दूसरे के साथ गप्पे लड़ाती या साथ में घूमती दिख जाती।

दोनों परिवार अब एक हो चुके थे। साथ मे दीवाली और ईद मनाते।


आज न कोई गम था और ना ही कोई जख्म। जो जख्म ज़ारा को मिला शायद उसे भूल पाना उसके लिए ज़िन्दगी भर मुश्किल था पर अब उस ज़ख्म से ज्यादा उसकी जिंदगी में खुशियां थी। अब ज़ारा भी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी थी। ज़ोया का ख्याल अधिकतर उसकी दादी जी यानी के बबली जी रखती थी।


किसी शायर ने खूब कहा है -


"ख़्वाहिश ए ज़िंदगी बस इतनी सी है के,

साथ तुम्हारा हो ओर ज़िंदगी कभी ख़त्म ना हो।"


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