हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics

5.0  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics

ययाति और देवयानी

ययाति और देवयानी

7 mins
672


भाग 2 

ययाति राजा बन गया । वह अभी एक नवयुवक ही था । गोरा रंग जैसे पूर्णिमा के चांद से उधार लिया हो । बैल की तरह चौड़ी विशाल आंखें , धनुषाकार भौंहें , उन्नत ललाट , तीखी नाक , लाल ओष्ठ, नुकीली मूंछें और हलकी दाढी ने उसका व्यक्तित्व बहुत आकर्षक बना दिया था । काले घुंघराले बाल किसी सुंदरी का मन हरण करने के लिए पर्याप्त थे । चौड़े और बलिष्ठ कंधे , विशाल सीना और हाथी की सूंड जैसी बलिष्ठ जंघाऐं उसके दुर्धुर्ष वीर होने की कहानी बयां करती थी । कुल मिलाकर ययाति एक सुंदर, बलिष्ठ, रणकुशल और बुद्धिमान युवक था जिसकी शोभा इंद्र से भी अधिक प्रतीत होती थी । युवावस्था में ही उसने संपूर्ण पृथ्वी को अपने अधीन कर लिया था । 


उसे आखेट खेलने का बड़ा शौक था । वीर था इसलिए वीरों का शौक "मृगया" ही होता है । ययाति भी मृगया का दीवाना था । जब देखो तब वह जंगल में मृगया के लिए ही मिला करता था । एक दिन जब वह मृगया खेलने जंगल गया था तब वह रास्ता भटक गया और एक मृग का पीछा करता करता बहुत दूर निकल आया था । 


घने जंगल में वह भटक रहा था । भूख प्यास के मारे उसका बुरा हाल था । पानी की तलाश में वह इधर उधर मारा मारा फिर रहा था कि अचानक उसके कानों में एक मीठी सी आवाज सुनाई दी 

"बचाओ, बचाओ" । 

ययाति के कान खड़े हो गये । यह आवाज किसी महिला की लग रही थी । इसका मतलब है कि पास ही कोई बस्ती होनी चाहिए , क्योंकि एक महिला अकेली तो जंगल में आयेगी नहीं ? कोई महिला दुखी अवस्था में है और वह मदद के लिए पुकार रही है । उसका कर्तव्य है उसकी मदद करना । अत: वह उस आवाज की ओर जाने लगा । ज्यों ज्यों वह आगे बढता , आवाज और नजदीक लगने लगती । वह आवाज के काफी नजदीक आ गया तब उसने चारों ओर देखा मगर उसे कुछ दिखाई नहीं दिया । तब एक आवाज आई "नीचे देखो । मैं कुऐं में हूं" । 


ययाति ने अपने पैरों के पास देखा तो पाया कि वहां एक कुंआ है जिसमें एक युवती नग्न अवस्था में पड़ी हुई है । उसने एक हाथ से कुऐं की दीवार पकड़ रखी थी और दूसरे हाथ से अपने उभारों को छुपाने का प्रयास कर रही थी । ययाति को उस पर दया आ गई और उसने अपना "उत्तरीय" उतार कर युवती की ओर उछाल दिया । युवती ने वह उत्तरीय झट से लपक लिया और उसे अपने बदन पर लपेट लिया । इससे उसकी काफी नग्नता ढंक गई थी । 


"अब खड़े खड़े मुझे निहारते ही रहेंगे या फिर मुझे ऊपर भी खीचेंगे" ? उस युवती ने कटाक्ष किया । 

चोरी पकड़े जाने पर जो हाल एक चोर का होता है, वही हाल ययाति का हुआ । वह झेंप गया और उसने अपनी नजरें फेर लीं । इससे वह युवती और खफा हो गई । फिर बोली 

"हे भोले भण्डारी ! बस, इधर उधर ताकते ही रहोगे कि मुझे इस कुऐं से निकालोगे भी" ? 


इतना उपालंभ बहुत था ययाति के लिए । इस उलाहने से उसे अपनी भूल का अनुभव हुआ और उसने नीचे झुककर अपना हाथ उस सुंदरी की ओर बढाया जिसे पकड़कर वह सुंदरी कुंऐ से बाहर आ जाये । सुंदरी ने भी अपना नाजुक सा हाथ ऊपर की ओर किया लेकिन दोनों हाथों के बीच में अभी फासला बाकी रह गया । 

"तनिक अपना हाथ और नीचे कीजिए न" । सुंदरी ने अपने नेत्रों से प्रेम रस बरसाते हुए कहा । 

"जी, अवश्य" । ययाति थोड़ा और नीचे झुके । इतना नीचे झुक गये कि अब और नीचे झुकने पर स्वयं के कुंऐ में गिर जाने का अंदेशा हो गया था । उनका हाथ थोड़ा सा ही पीछे रह गया था । 

"आप भी किसी पत्थर का सहारा लेकर थोड़ा और ऊपर की ओर प्रयास कीजिये । शायद फिर बात बन जाये" । ययाति ने सुंदरी से कहा 

"ठीक है, मैं कोशिश करती हूं" । सुंदर स्त्री ने कुंऐ की दीवार पर पैर रखा और अपनी संपूर्ण शक्ति से पानी से ऊपर उठी । अबकी बार उसका हाथ ययाति के हाथ में आ गया । ययाति ने इस अवसर को व्यर्थ जाने नहीं दिया । एक क्षत्रिय युवक और चक्रवर्ती सम्राट का हाथ था वह । उसने पूरी शक्ति से उस तरुणी को ऊपर खींच लिया । ययाति के लिए यह कोई कठिन कार्य नहीं था । एक झटके में वह सुंदर स्त्री कुंऐ से बाहर निकल आई और कुंऐ की मुंडेर पर बैठ गई । 

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद , श्रीमान । आपने मुझ अबला पर अनुकम्पा न की होती तो मैं अभी तक कुंऐ का पानी ही नापती रह जाती , और शायद यहीं पर मर भी जाती । आपने एक नहीं दो दो प्राण बचाये हैं मान्यवर " । तरुणी मुस्काते हुए और नयनों से आभार प्रकट करते हुए बोली । 

"दो दो प्राण बचाये हैं ? वो कैसे देवि" ययाति चौंकते हुए बोले । 

"वो इसलिए महोदय कि यदि मैं मर जाती तो मेरे पिता श्री भी फिर जिंदा नहीं बचते । इसलिए आपने एक नहीं दो दो प्राणों की रक्षा की है आज । मैं आपका शुक्रिया कैसे व्यक्त करूं , समझ नहीं आ रहा है" ? 

वह तरुणी अब खड़ी हो गई थी । उसका अंग अंग उसके सौन्दर्य की गाथा स्वयं कहने लगा । कभी चंद्रमा को अपने सौन्दर्य का वर्णन करते हुए सुना है क्या आपने ? कभी पारस पत्थर को अपने गुणों के बारे में बताते हुए सुना है क्या ? कभी गुलाब को अपनी प्रशस्ति गाते सुना है क्या किसी ने ? गुणवान के गुण स्वयं बोलते हैं । गुणवान को मुंह से बोलने की आवश्यकता नहीं होती है । इसी प्रकार उस अनुपम सुंदरी का अंग प्रत्यंग कह रहा था कि वह युवती या तो स्वयं रति है या उसके कुल की कोई युवती । ययाति उसके सौन्दर्य सागर में डूब गया । 


जब युवती ने ययाति को अपने सौन्दर्य सागर में गोते लगाते हुए पाया तो उसके हर्ष की कोई सीमा नहीं रही । वह भी ययाति के सुडौल, सुंदर शरीर और सज्जनता पर मुग्ध हो चुकी थी । उसने हंसते हुए पूछा 

"आप अपना परिचय देने का कष्ट करेंगे क्या ? आप शक्ल सूरत से तो कोई महाराज जैसे लग रहे हैं । आप कौन हैं देव ? मुझे तो आप साक्षात इन्द्र देव लग रहे हैं । उनके जैसी सुन्दरता और उनसे भी अधिक बलिष्ठ भुजाऐं हैं आपकी । कृपया अपना परिचय देकर मेरी उत्सुकता का निवारण करें, आर्य" । 


ययाति ने भी ऐसी सुंदर युवती पहले कभी देखी नहीं थी । वह भी चाहता था कि वह बताये कि वह कौन है ? स्वर्ग लोक की कोई देवी है या वहां की कोई अप्सरा ? या फिर वह कोई गन्धर्व कन्या है ? क्योंकि पृथ्वी लोक पर तो इतनी सुन्दर कन्या हो ही नहीं सकती है । 


ययाति मेनका को भी लजाने वाली तरुणी के बारे में सोच ही रहा था कि उस तरुणी की बातों से उसकी विचार श्रंखला भंग हो गई । वह उसका परिचय जानना चाहती थी । ययाति भी इस प्रक्रिया से दो चार होना चाहता था । अत : उसने अपना परिचय देना आरंभ किया "हे सुंदर नयनों वाली देवि, सुनो । मैं चक्रवर्ती सम्राट नहुष का द्वितीय पुत्र ययाति हूं । क्या इतना परिचय पर्याप्त है या कुछ और बताऊं" ? ययाति ने अपने स्वर में भरपूर मिठास घोलते हुए कहा । 


ययाति का परिचय जानकर वह युवती अति प्रसन्न हुई । इस बार उसने पहली बार अर्थ पूर्ण नजरों से ययाति की ओर देखा । दोनों की नजरें परस्पर टकराईं और इस टकराहट के कारण "प्रेम का महासागर" उत्पन्न हो गया । वह युवती ययाति की विशाल आंखों में भोर की लालिमा की तरह घुल गई । उसका बदन कंपित होने लगा और प्रेम की अविरल बरसात के कारण उसका पहले से भीगा बदन और भीग गया । वह भीगे हुए बदन में बहुत उत्तेजक लग रही थी । 

"आपके शरीर सौष्ठव से ही लग रहा है कि आप अवश्य ही चक्रवर्ती सम्राट होंगे । एक चक्रवर्ती सम्राट को और अधिक परिचय देने की आवश्यकता नहीं है आर्यपुत्र । मैं आपको पहचान नहीं पाई इसलिए आपका परिचय पूछ लिया नर श्रेष्ठ, इस अपराध के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं । अब आप बतायें कि मेरे लिए क्या आज्ञा है देव" ? तरुणी सकुचाते हुए बोली । 

"आप अपना परिचय नहीं देंगी क्या देवि ? आप कौन हैं , कहां से आई हैं और इस कुंऐं में क्या कर रही थीं ? सब कुछ स्पष्ट बतलाने का श्रम करें देवि" । ययाति ने उससे पूछा । 


"दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य और देवताओं के राजा इन्द्र की पुत्री जयंती की पुत्री देवयानी हूं सम्राट" । इतना कहकर देवयानी अपने अतीत में खो गई । 


क्रमश: 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance