ये मुंह और मसूर की दाल
ये मुंह और मसूर की दाल


शैलेष को आज जल्दी कोचिंग जाना था । प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी कर रहा था शैलेष । रविवार को उसकी जल्दी क्लास होती थी इसलिए वह जल्दी नहा लिया था और कपड़े सुखाने छत पर आया था । अचानक उसकी निगाह सामने वाले मकान पर चली गई । एक अद्वितीय सुन्दरी छत पर मॉर्निंग वॉक करती नजर आ रही थी । शैलेष उसे एकटक देखता ही रह गया । उस सुन्दरी ने एक उचटती सी निगाह शैलेष पर डाली और वह अपनी वॉक में मस्त हो गई । शैलेष के तो तोते उड़ गये थे । वह जल्दी से अपने कपड़े सुखाकर नीचे आया ।
"मम्मी , मम्मी" वह थोड़ी तेज आवाज में बोला ।
"क्या है ? क्यों चीख रहा है सुबह सुबह ? धीरे बोल , तेरे पापा जग जायेंगे" । उसकी मम्मी धीरे से बोली
"वो सामने वाला मकान गुप्ता अंकल ने बेच दिया है क्या" ? शैलेष ने प्रश्न वाचक निगाहों से देखते हुए कहा
"नहीं तो" ?
"तो क्या उन्होंने कोई किरायेदार रख लिया है" ?
"हां , गुप्ता जी का तो ट्रांसफर मुम्बई हो गया है इसलिए वे वहां चले गये हैं और यहां एक किरायेदार को रख गये हैं । तेरे को कैसे पता चला" ? मम्मी ने आश्चर्य से पूछा क्योंकि वह जानती है कि शैलेष को इन बातों में कोई इंटरेस्ट नहीं रहता है ।
"वो ... वो मैं अभी छत पर कपड़े सुखा रहा था ना , तब मैंने कुछ अजनबी लोगों को उनकी छत पर देखा था" ।
"अरे , वो छवि होगी । सुबह सुबह वह छत पर मॉर्निंग वॉक करती है" ।
"छवि ! कौन छवि" ? शैलेष के मुंह से अचानक निकल गया ।
"वो नये किरायेदार अग्रवाल साहब आये हैं ना , उनकी बेटी है । अग्रवाल साहब इनकम टैक्स अधिकारी हैं , बहुत भले आदमी हैं" ।
"अच्छा तो वह छवि है । वाकई वह मेनका की ही छवि है । हाय , उसने तो एक नजर में ही जादू कर दिया है यार ! साले तू तो पहली ही बॉल पर क्लीन बोल्ड हो गया" । शैलेष के दिल से एक आवाज निकली ।
जैसे तैसे करके उसने नाश्ता किया और दौड़ता भागता कोचिंग चला गया । शाम को आज पहली बार वह छत पर चला गया था कि क्या पता आज चांद सामने वाले घर की छत पर ही उतर आये ।
"शैलेष, ऊपर क्या कर रहा है बेटा" ? मम्मी उसे बुलाने छत पर आ गई । शैलेष को अंदाजा नहीं था कि मम्मी ऐसे अचानक ऊपर आकर प्रश्न कर देगी । उसने जवाब सोचा ही नहीं था । वह अचकचाकर बोला "अंदर थोड़ा सफोकेशन हो रहा था इसलिए छत पर खुली हवा में आ गया" ।
"मैं तो कबसे कह रही हूं तुझसे कि कभी कभार तो खुली हवा में भी आया कर । पर तूने सुनी है क्या आज तक मेरी बात" ? अब मम्मी की बन आयी थी ।
"सॉरी मम्मी , आज मुझे महसूस हुआ दैट यू आर माई ग्रेट मम्मा" । उसने अपनी मम्मी को बांहों में भरकर उठा लिया ।
"अरे छोड़ मुझे , गिरायेगा क्या ? हाथ पांव टूट जायेंगे मेरे" । मम्मी चिल्लाते हुए बोली जिससे शैलेष घबरा गया और उसने मम्मी को नीचे उतार दिया ।
छत पर चांद के दर्शन नहीं होने पर शैलेष निराश हो गया "लगता है कि यहां चांद नहीं सूरज ही निकलता है । चलो जी , कोई नहीं । विटामिन डी और ए दोनों एक साथ ले लेंगे" और उसके अधरों पर एक मधुर मुस्कान तैरने लगी ।
रात को उसका ध्यान पढने में नहीं लगा । बस, छवि की छवि में डूब गया था वह । बहुत देर बाद नींद आयी थी उसे । फिर भी वह अलार्म लगाना नहीं भूला । ठीक छ: बजे अलार्म बजा और वह नित्य कर्म करके ऊपर छत पर वर्जिश करने आ गया । मम्मी सुबह उठकर पास के गार्डन में जाती थी । आज शैलेष को ऊपर छत पर जाते देखकर आश्चर्य चकित रह गई ।
"क्यों शैलेष, आज सुबह सुबह छत पर कैसे" ? उसके अधरों पर रहस्यमयी मुस्कान थी ।
"मम्मी , मेरा घूमना फिरना बिल्कुल बंद हो गया है । कल मैंने अपना वेट लिया था । पूरा 70 किलो निकला । बस, तभी सोच लिया कि सुबह रोज यहां आकर वर्जिश किया करूंगा" । शैलेष पूरी तैयारी करके आया था ।
"क्या बात है , आजकल तू सुधर रहा है" मम्मी मुस्कुराती हुई चली गई ।
शैलेष वर्जिश करने लगा पर उसका ध्यान सामने की छत पर ही था । छवि कहीं दिखाई नहीं दे रही थी । वह वर्जिश करते करते निढाल हो गया था । उसकी आशा निराशा में बदल गई थी । समय भी बहुत हो गया था । उसकी पढाई की ऐसी तैसी हो रही थी । अब उसे समझ में आया कि "आशिकी" इतनी आसान नहीं होती है जितनी लगती है । वह वापस जाने लगा । अचानक उसे सामने छत पर छवि आती हुई दिखाई दी । वह वहीं पर ठिठक गया और छत पर घूमती हुई छवि को देखने लगा । छवि ने एक निगाह उस पर डाली और शैलेष ने एक मुस्कान उसकी ओर उछाल दी । छवि ने मुंह बिचका कर उसे वापस लौटा दिया । शैलेष का दिल टूट गया । उसने जैसे तैसे करके खुद को संभाला और उसे लगातार देखता रहा । छवि ने उसकी ओर एक बार भी नहीं देखा । निराश होकर शैलेष अपने कमरे में आ गया और निढाल होकर पलंग पर पड़ गया ।
उसने एक दो बार और कोशिश की मगर छवि ने उसे कोई भाव नहीं दिया । शैलेष पूरी तरह से टूट गया
था । एक दिन शैलेष कहीं जा रहा था तो रैड लाइट पर उसने अपनी मोटर साइकिल रोक दी । इतने में वहां पर एक्टिवा से छवि भी आ गई थी । शैलेष ने अचानक उसके पास जाकर कहा "सुनिए मिस" !
छवि ने एक नजर शैलेष पर डाली और फिर मुंह फेर लिया । शैलेष अपना मुंह उसके कान के पास ले जाकर बोला "आई लव यू" ।
छवि कोई तमाशा नहीं चाहती थी इसलिए उसने हंसते हुए कह दिया "ये मुंह और मसूर की दाल" !
इतने में ग्रीन सिग्नल हो गया और छवि एक्टिवा दौड़ाती हुई चली गई । इतनी घोर बेइज्जती तो उसकी कभी नहीं हुई थी । वह हतोत्साहित हो गया और वापस घर आ गया । दो दिन तक उसका मन कहीं नहीं लगा । एक दिन वह शाम को मंदिर चला गया । उसने भगवान से प्रार्थना की "प्रभु, अब और कोई इच्छा नहीं है । बस , आई ए एस बना देना । यही कामना है" ।
उस दिन से उसका मन पढने में लग गया और उसने दिन रात एक कर दिया । मम्मी जब भी उसके कमरे में आती वह पढता ही मिलता था । पता नहीं कब सोता और कब जगता था । मम्मी उसका बहुत ध्यान रखने लगी । वह कहती थी "बेटा , इतना मत पढा कर, सेहत का भी तो ध्यान रख" । पर शैलेष पर तो जुनून सवार था । आखिर उसने परीक्षा दी । उसका विश्वास कह रहा था कि वह अवश्य पास होगा इसलिए वह उसी दिन से साक्षात्कार की तैयारी करने लग गया ।
साक्षात्कार बहुत बढिया हुआ था उसका । उसे विश्वास हो गया था कि उसका नंबर कहीं न कहीं आ ही जायेगा । उसने मेल चैक किया । बधाई संदेश था । उसने प्रथम रैंक प्राप्त की थी । वह खुशी से उछल पड़ा । उसने अपनी मम्मी को बांहों में भरकर ऊपर उठा लिया और चारों ओर झूमने लगा ।
"अरे क्या हुआ ? रिजल्ट आ गया है क्या ? तेरा सलेक्शन हो गया है ना ? तभी तू इतना खुश है , सही बता" ।
"हां मम्मा, मेरी फर्स्ट रैंक बनी है । भगवान और आपका आशीर्वाद, दोनों फल गये मम्मा । मुझे मंदिर जाना है अभी । मैं अभी आता हूं" । वह दौड़ा दौड़ा मिठाई लेकर आया और भगवान के पास मंदिर में चला गया ।
"थैंक्स भगवान । आपने मेरी मनोकामना पूरी कर दी । आपको हजार बार धन्यवाद । बस, ऐसे ही कृपा बनाए रखना" । उसने साष्टांग प्रणाम किया और प्रसाद पुजारी जी को दे दिया चढाने को । पुजारी के चरण स्पर्श कर उसने बताया कि वह अब कलेक्टर बन गया है । पुजारी ने घूम घूमकर पूरे मौहल्ला को बता दिया ।
जब वह वापस आया तो घर पर मेला लगा हुआ था । पूरा मीडिया वहां मौजूद था । पूरा मौहल्ला भी वहां उपस्थित हो गया था । फिर तो पूरा धमाल हुआ और सारे न्यूज चैनल्स पर शैलेष छा गया । एक ही दिन में वह जीरो से हीरो बन गया था । पूरी रात नींद नहीं आई थी उसे । सुबह पांच बजे आंख लगी थी तो बारह बजे तक सोना लाजिमी था उसका । वह चाय पीने के लिए नीचे आया तो वहां उसने छवि को मम्मी के पास बैठे हुए देखा । उसने उचटती सी निगाह से छवि को देखा और वापस जाने लगा
"अरे , जग गया तू ! अब कहां जा रहा है ? चल, इधर बैठ, तेरे लिए चाय बनाती हूं" ।
"रहने दो मम्मी । मैं फ्रेश होकर आता हूं" ।
"अरे वाह ! तेरा तो चाय के बिना प्रेशर ही नहीं बनता है फिर आज ? चल, चुपचाप इधर बैठ । छवि को कंपनी दे । मैं चाय बनाकर लाती हूं" । मम्मी किचिन में चली गई ।
शैलेष चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो जाये , मम्मी की बात को टालने की हिम्मत नहीं थी उसकी । वह छवि के सामने बैठ गया ।
"कांग्रेचुलेशन्स"
सुनकर शैलेष चौंका । उसने सिर उठाकर छवि को देखा । छवि की आंखों में अफसोस था । शैलेष ने उसे पूरी तरह से इगनोर किया । छवि उठकर उसके पास आई और कहने लगी "आई एम सॉरी । बट आई लव यू" । कहकर छवि ने शैलेष के गाल पर एक किस कर दिया । शैलेष हतप्रभ रह गया और गुस्से से बिलबिला उठा "ये मुंह और मसूर की दाल" ।
वह उठकर जाने ही वाला था कि मम्मी चाय लेकर अंदर दाखिल हो गई । छवि चाय की ट्रे लेने लगी तो मम्मी कहने लगी "आज मेरी बहू मेरे घर में पहली बार आई है तो क्या वह चाय सर्व करेगी ? क्यों शैलेश" ?
शैलेष के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगी । "बहू" ?
"हां बहू भी और बेटी भी । पता है , इसने कितनी तपस्या की है तेरे लिए" ?
"मेरे लिए और तपस्या ? वो भी इन्होंने" ? शैलेष के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था ।
"हां, छवि ने तेरे लिए बहुत तपस्या की है । उस दिन तुझे छत पर वर्जिश करते देखा था ना तो हम तभी समझ गये थे । हमने छवि से पूछा तो वह मुस्कुरा दी थी । उसने ना नहीं कहा था । तब हमने इससे कहा था कि अभी तो तुम आई ए एस की तैयारी कर रहे हो , इसलिए अभी थोड़ा दूर ही रहना । फिर हम सब संभाल लेंगे । छवि ने हमारे ही कहने से वह सब नाटक किया था । अब बोलो , छवि तुम्हें पसंद है या नहीं" ? मम्मी ने उसका सिर पकड़कर कहा ।
शैलेष के पास अब बोलने को कुछ बचा नहीं था । उसने मम्मी के चरण पकड़ लिये । तभी छवि भी वहां आ गई और वह भी मम्मी के चरणों में बैठ गई ।