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Nisha Nandini Bhartiya

Drama Tragedy

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Nisha Nandini Bhartiya

Drama Tragedy

यादों का बिखरा मंजर

यादों का बिखरा मंजर

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रोहन बरुआ विदेश में एक बड़ी कंपनी में मैनेजर है। भरापुरा परिवार है उसका। दो प्यारे से बच्चे और समझदार पढ़ी लिखी पत्नी। माता पिता और भाई बहन असम के नौगांव जिले के एक गांव में रहते हैं। पांचवी तक की पढ़ाई रोहन ने अपने गांव के स्कूल से ही की थी। गांव में सिर्फ पांचवीं तक का ही स्कूल था, इसलिए रोहन के माता-पिता ने 

रोहन को तेजपुर के मॉडल स्कूल के होस्टल में डाल दिया था। वहां से रोहन ने बारहवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। उसके बाद तकनीकी पढ़ाई पूरी करके रोहन जर्मनी आ गया और वहां पर मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर है। 

रोहन हर साल अपने माता-पिता के गांव आता था, पर वह तेजपुर कभी नहीं गया। बहुत दिनों से उसके मन में यह इच्छा थी कि वह अपना होस्टल देखकर अपनी पुरानी यादें ताजा करे। आज बीस साल बाद उसकी यह इच्छा पूरी होने जा रही थी। वह अपने पूरे परिवार को अपना मॉडल स्कूल और अपना होस्टल दिखाना चाहता था। जहां उसने अपने मित्रों के साथ इतनी मस्ती की थी। रोहन अपने पूरे परिवार के साथ अपनी आलीशान गाड़ी से अपने गांव से तेजपुर के लिए चल दिया। रास्ते में वह अपने परिवार को अपने होस्टल के बारे में बताता जा रहा था कि रात में उसका एक मित्र भुवन किस तरह मुखौटा लगाकर सारे बच्चों को डराता था। एक वार्डन ने उसे दस दिन के लिए सस्पेंड कर दिया था। इसी तरह बीस साल पुरानी यादों का मंजर लिए रोहन तेजपुर के मॉडल स्कूल पहुंच गया। वहां पर अपने स्कूल व होस्टल की दुर्दशा देखकर रोहन के तो होश ही उड़ गए। 

स्कूल के नाम पर वहां सिर्फ खंडहर मात्र था। होस्टल को देखते ही रोहन रुआंसा हो गया। 

वहां कुछ टूटे फूटे बैड पड़े थे। कुछ कपड़े और कॉपी-किताब इधर उधर बिखरे पड़े थे। जमीन पर काई लगी हुई थी। दीवारों पर सीलन थी। वह स्थान पूरी तरह सुनसान था। रोहन समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या हो गया है। वह तेजपुर के बाजार की तरफ निकल पड़ा। बाजार की हालत भी बहुत अच्छी नहीं थी। सभी बड़ी दुकानें गायब हो चुकी थी। छोटी छोटी यही कोई बीस-पच्चीस दुकानें थीं। एक राशन की दुकान पर एक बुजुर्ग से व्यक्ति खड़े थे। पास जाकर देखा तो वह मोहन अंकल थे। रोहन ने उनके पास जाकर उन्हें चरण स्पर्श किया और अन्य दुकानों व स्कूल के बारे में पूछा? 

मोहन अंकल पहले तो पहचाने नहीं फिर उन्हें याद आया यह बच्चा तो उनकी दुकान से अक्सर कॉपी लेने आता था। उन्होंने रोहन को प्यार से आशीर्वाद दिया। फिर आँखों में आँसू भरकर बताने लगे। बेटा दो साल पहले यहां पर प्रकृति ने अपना प्रकोप दिखाया था। इतनी भंयकर बाढ़ आयी कि सब कुछ डूब गया। होस्टल के छोटे छोटे बच्चे रात में सो रहे थे। वे सब बाढ़ की चपेट आ कर बह गए। पूरा का पूरा बाजार बह गया। यह तो हमने अभी दो साल में दुबारा खड़ा किया है। पानी निकल जाने पर कितने ही बच्चों और बूढ़ों की लाशे यहां मिली थी। स्कूल की तरफ तो अब लोग जाने से भी डरने लगे हैं। कहते हैं रात में वहां बचाओ बचाओ की आवाजें सुनाईं देती हैं। अब रोहन और खड़ा न रह सका वह वही धरती पर बैठ गया। उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। उसकी पत्नी ने उसे संभाला। उसे पानी पिलाया। रोहन दुखी मन से अपनी यादों के बिखरे मंजर को लिए अपने परिवार के साथ अपने गांव की तरफ चल दिया। 



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