यादगार सफर

यादगार सफर

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रीता की तबियत आज सुबह से ही कुछ खराब थी। उधर आज उसे अपने गाँव भी जाना था। छोटे बेटे को साथ ले जा रही थी, बड़े बेटे को परिवार के साथ छोड़ कर जाना था।

फटाफट सारे काम निबटा कर। खाना पैक किया तभी 2 बज चुके थे। कपड़े चेंज किये और टैक्सी पकड़ कर निकल सी स्टेशन के लिए। ट्रेन राइट टाइम ही थी। छोटे बेटे को ले कर जैसे ही चढ़ रही थी कि अचानक पैर फिसल कर नीचे चला गया। हाथ में समान होने के कारण खुद को संभाल नहीं पाई और धड़ाम से गिर गयी। हाथ में पानी का मिल्टन था जो गिरने की वजह से टूट गया और टूटने से एक तेज आवाज़ हुई।

स्टेशन पर मौजूद लोगो ने उसे आ कर सम्भाल लिया और ट्रेन में चढ़ा दिया। लेडीज कोटा की सीट थी तो पहले ही नम्बर की सीट होने से परेशानी नहीं हुई। इधर ट्रैन चली ही थी कि थोड़ी देर में रीता की कमर और पैरों में तेज दर्द होने लगा।

साथ में बैठे दो पेसेन्जर ने पूछा कि "क्या कोई परेशानी है।" जब रीता ने सारी बात बताई की "ट्रेन से गिरने की वजह से अंदरूनी चोट आई है जिस में दर्द है।"

उन्होंने पैन किलर दी और कुछ देर सोने को बोला। रीता बेटे को ले कर परेशानी थी कि नींद आ गयी तो उस का कौन ध्यान रखेगा?

साथ बैठे अजय ने भरोसा दिया कि आप छोटे बहन जैसे है, आराम से सो जाये। बेटे की चिंता न करें। उस का ख्याल उस का मामा रख लेगा।

इस तरह ही अनजाने रिश्ते भी बन जाते है कभी कभी।



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