Abhishek Gangan

Romance

5.0  

Abhishek Gangan

Romance

यादें

यादें

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इस सनसनाती धूप में मुझे इक बरगद का पेड़ दिखा और मैं उसकी पनाह में राधिका की राह देखता खड़ा हो गया। उफ्फ ये राधिका, उसकी घड़ी में न जाने कौनसे ग्रह-तारे समय लिखते है !

इंतज़ार के कठिन लम्हों बाद आखिर मुझे दूर से आती राधिका की छवि नज़र आयी और बरगद की छाँव में अचानक अपनेपन का एहसास होने लगा।

"कहाँ थी तुम ? अरसा बीत गया धूप में इंतज़ार करते !"

"इतना तो कर ही सकते हो मेरे लिए !", हमेशा की तरह वो इतरायी।

"हाँ, क्यों नहीं ! पर मोहतरमा, आपको आयने में खुदको निहारने से फुरसत मिले, तो हमारी चिंता हो ना !"

"अब तो तुम्हें मेरे सजने-संवरने से भी ऐतराज़ है। बात ही मत करो तुम।"

"अरे मैं तो यूँ ही मज़ाक कर रहा था। मैं तो ये कह रहा था कि तुम तो बड़ी ख़ूबसूरत हो, तुम्हें सजने-संवरने की क्या ज़रूरत ?" मैंने बाजी संभालने की फीकी कोशिश की।

"बातें बनाओ तुम बस ! झूठी बातें ! अब तो प्यार ही नहीं करते तुम मुझसे !"

"अरे ? तुम्हें भी पता है मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ।"

"मैं नहीं मानती। तुम ही बता दो !", यह कहकर उसने मुँह फेर लिया।

"तो सुनो..

ये जो तुम्हारी आँखें हैं, इनमें जब तुम काजल भरती हो ना, तो शामें घनी और मदहोश होती हैं।

तुम नज़रें जब मिलाती हो ना मुझसे, तो मुझे मयकशी समझ आती है।

ये तुम्हारी ज़ुल्फें.. जब उलझती हैं ना, तो दुनिया बेचैन हो जाती है, और जब सुलझती हैं, तो हर बात आसान लगती है।

तुम्हारी पायल की छमछम सुन कर आसमान से रिमझिम बारिशें होती है।

तुम्हारे मुस्कराहट की छुवन से मुरझाये फूल फिर से खिल उठते हैं, और तुम्हारे खिलखिलाने से पर्वतों में झरने दौड़ने लगते हैं।

मैं जब दुनिया की उलझन में फंसता हूँ, तो तुम्हारी हंसी ढूँढ़ने निकल जाता हूँ, और ना जाने कैसे मेरे रास्ते मुझे रब से मिलाते हैं।

यूँ तो कागज़ पर लफ्ज़ बिखरे पड़े रहते हैं, पर तुम्हारा एक ख़याल काफी होता है, और शायरी बन जाती है।

मुख़्तसर तौर पर कहूँ तो..

आखिरी साँस तड़पती हो जिस्म में जब,

अगर तब तू नजर आये,

तो साँस में मोहब्बत का स्वर मिलाकर,

गीत गाऊँगा तेरे लिए।"

मैंने अपनी बात खत्म की तो राधिका की आँखें चमक रही थीं। उसने पल भर मेरी तरफ देखा, और फिर हम दोनों एकदूजे की बाँहों में खो गये।

तब मेरी आँख खुली और मैं असलियत से वाकिफ़ हुआ। राधिका को गुजरे अब ४ साल हो चुके है। उम्र के साथ याददाश्त कमजोर हो गयी है, फिर भी राधिका से जुड़ी यादें मेरे दिल-ओ-दिमाग पर हमेशा के लिए छप चुकी हैं। सपनों के मायाजाल कई दफा हम दोनों को मिला देते हैं। ना जाने सफर क्यों फिर भी अधूरा लगता है। अब बातें बहुत करनी हैं, मगर हमज़ुबां नहीं होता। अब साँसें बहुत बाकी हैं, मगर गाने का मन नहीं होता।


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