Arun Gode

Thriller

4  

Arun Gode

Thriller

यादें पुरानी

यादें पुरानी

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कुछ अति उत्साही स्कूली छत्रोंने सेवानिवृत्ति के पश्चात अपने स्कूली जीवन के वर्ग मित्रों को एकत्रित करके एक भब्य पुनरमिलन जलसा अपने स्कूल में करने का सोचा था। उस में श्रीकांत। गुनवंता और अरुण ये संत्रानगरी में स्थाई हुयें थे। व कुछ उनके वर्गमित्र अपने जन्म गांव में जमे थे।उनके साथ मिलकर उन्होने अपने स्कूल में वर्गमित्रों का पुनरमिलन कार्यक्रम संपान्न किया था।जिस में उनके गुरुजनों को भी मुख्य अतिथी करके आंमत्रीत किया गया था।उनके उपस्थिति में कार्यक्रम का शुभारंभ उनके कर-कमलों द्वारा किया गया था।उसी कार्यक्रम में अरुण द्वारा प्रकाशित हिमानी काव्य संग्रह का विमोचन भी किया गया था। कार्यक्रम में अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम किये गये थे।सभी वर्गमित्र कार्यक्रम से कॉफी भाव-विभोर हुयें थे। मानो अंधों के हाथों बटेर लग चुका हो। कुछ मित्र कार्यक्रम के समापन होने पर निकल चुके थे। कुछ सहेलीयां और मित्र जीन्हे दुसरे दिन जाना था। वे सब हॉटेल में रुके थे। रात का भोजन की व्यवस्था उनके लिए वही की गई थी। खाने के दौरान सभी ने कार्यक्र्म सफल रहा इसका फिर जिक्र किया था। पुराने बातों को, जीस को जो याद आये, वही बात करने लगता था। फिर उन किस्सो को सुनकर सभी हसते और आनंद लेते थे। खाना खाने के बाद , अरुण ने रीना को युही छेडते हुये कहा की कार्यक्रम संचालन का काम बेमिसाल था। उसने अरुण के तरफ तिरछी नजर से देखते हुयें-----

रीना: देख अरुण, तु मुझे छेड मत, मैं तेरे से बहुंत खफा हुं। कार्यक्रम के दौरान तेरे से गुस्सा ना दिखाना, वो एक शिष्टाचार था। अभी ज्यादा छेडेगा तो और गुस्सा करुंगी !।

अरुण : अन्य सहेलियों और मित्रों के और् देखते हुयें उसने पुछा, अरे सच बताओं की कार्यक्रम के संचालन का काम बेमिसाल था की नहीं ?। सभी ने कहा। अरुण सच कह रहा हैं। तो गुस्सा होने का कारण बनता हैं क्या ?। सभी ने जवाब दिया बिलकुल नहीं।

अरुण :लेकिन मुझे लगता, बनता है।

रीना: कैसे और क्यों बनता हैं।जब ये सब नहीं बोलते है।

अरुण :अगर आप गुस्सा नहीं भरेगी, तो बताउंगा ? सभी बोलने लगे, बताव् बताव,

अरे अपनी रीना गुस्से में और अच्छी और नमकिन लगती हैं। सब हसने लगे।

रीना: अरे तु पक्का बदमाश हैं।तेरा तो मुझे बहुंत गुस्सा आता है। लेकिन‌………।। 

अरुण : क्या, लेकिन, फिर मैंने गाना गाया।खुली पलक में झुठा गुस्सा, और बंद पलक में प्यार , जीना भी मुश्किल,मरना भी मुश्किल, मॉडम् से बात करना भी मुश्किल, और चुप रहेना भी मुश्किल,

रीना: अभी गा के क्या फायदा, जवानी में गाया होता। तो कोई बात बनती,

अरुण :अरे मॅडम जवानी में बात बिगडने का चांस रहता हैं।बुढापे में बिगड भी गया तो कोई बात नहीं!। 

रीना: अरे आप सब इसके पिछे मत पडो,ये ऐसे ही रात गुजार देगा। मैं इसे को बच्चपन से जानती हुं। चलो अभी सोते हैं।फिर सुबह नाश्ते पर मिलते हैं। 

    दुसरे दिन हम फिर सुबह हॉटेल पहुंचे थे। तीन –चार सहेलियां हमारा इंतजार ही कर रहे थी। जैसे हम पहुंचे हाय- हैलो और अन्य शिष्टाचार होने के बाद हम सभी नाश्ते के लिए टेबल पर पहुंचे थे। मैं अन्य मित्रों को मोबाईल करने में व्यस्त रह था।तो रीना ने पुछा , किस को कॉल लगा रहा है ?। अरे और भी मित्र यहां रुके हैं ना।अरे हमने सबको भगा दिया। वो सब चले गये। तु परेशान मत हो। हम दोनों को देखकर, शायद उन्होने हमारी फिरकी लेने की सोच ली थी। नाश्ते का आर्डर देने के बाद, उन में से एक सहेली ने हमे छेडते हुयें कहा।

सहेली : अरे तुम दोनों की पत्नीयां बडी सुंदर और सुशील हैं। कल हमारी उनके साथ बहुंत वार्तालाप हुआ था। बडी खुश दिख रही थी। मैंने ,गुनवंता से कहा।अब कुछ अपनी घर में खैर नहीं। शायद इन्होने आग लगा दी हैं। और दोनों हसने लगे।

सहेली :अरे आप क्यों हस रहे हो।? हमने कहा कुछ नहीं। ऐसे कैसा, कुछ नहीं रे अरुण, अभी तो तु गुनवंता को बोल रहा था,ऐसे कहा। कल कयामत आनेवाली है।बिजली गिराके आग लग चुकी है।

सहेली :अरे हम समझे नहीं।चल बता तु ,क्या बात है ?।

अरुण: मैंने कहा, हम पहिले बार देख रहे हैं कि कुछ महिलायें अन्य महिलाओं की तारिफ कर रही हैं।

सहेली : अरे ,सच , तुम दोनों की पत्नीयां सही में बडी सुंदर और सुशील हैं। हम सच कह रहे हैं। भगवान कसम। फिर हम दोनों जोर से हसने लगे। फिर उन्होने सवाल किया ।अभी आपको बताना पडेगा। वर्ना हम लोग नाश्ता नहीं करेगें।

अरुण: अरे प्यारी सहेलीयों, ऐसा जुल्म आप मत करो।वर्ना हम यही घायल हो जायेंगे !। इलाज भी आप को ही करना पडेगा। 

सहेली :अरे नहीं,नहीं, हम इलाज तो कर देगें।लेकिन बताव आप क्यों हस रहे थे।

गुनवंता : आप सभी जीस तरह से, हमारी पत्नीयों को लेकर मजाक उडा रही थी।

सहेली : अरे हम कहां मजाक उडा रहे हैं। हम तो सच कह रहे हैं।

अरुण:हम को लगा, आप सभी हमको ताना मार रही हैं। गये थे सोना लाने, नहीं मिला तो चांदीसे काम चला लिया।

सहेली : अरे हम सच्चे दिल से कह रहे हैं। आपकी पत्नीयां हम से कई गुना बेहत्तर हैं। चलो मान लेते है। उतने में नाश्ता आ गया था। लो मॅडम ।अभी तो नाश्ता करोगें ना !।बिलकुल करेगें। नाश्ता करते- करते रीना बोली। 

रीना: तुझे ये रिश्ता कैसे आया। 

अरुण: कुछ मत पुछो रीना। ये एक दर्द भरी कहाणी हैं। इसके लिए बडे पापड बेलने पडे। इस में नाटक हैं, भावना हैं, गम हैं,न जाने क्या-क्या हैं ,मत पूछों। इसके लिए मुझे सोलाह सोमवार का शोले वाला व्रत करना पडा। सब हसने लगे।

सहेली : अरे बताना अरुण, सब बाते, मजाक में टाल देता हैं।हम तो दोनों की सच्चाई जानकर रहेंगे। 

अरुण: ऐसी बात हैं। तो सुनों, कुछ ऐसा हुआ। मैं छुट्टीयों में पिताजी को देखने भोपल से गांव आया था। पिताजी को कुछ् हार्ट की समस्या हुई थी। यहा आने पर सभी आस- पास के पडोसी कह्ने लगे,अरे पिताजी बच गये, उस दिन बैठे –बैठ अचानक पलंग से गिर गयें थे। डॉक्टर को तुरंत बुलाया था। सही समय पे इलाज हुआ। इसलिए बच गये। डॉक्टर ने कहां किसी हार्ट के बडे डॉक्टर को दिखाना पडता हैं। उनका इलाज चल रहा था। लेकिन वो परेशान दिख रहे थे। मैंने,पिताजी से बात की,उनका कहना था। अरे सबकी शादीयां हो चुकी हैं। बस तेरी रह गई हैं। तु भी शादी कर लेता, तो अच्छा होता। मैंने कहा पिताजी में कुछ करना चाहता हुं।पिताजी ने कहां, इतना तो पढ लिया हैं। सरकारी नौकरी भी लग गई हैं। और क्या करेगा ?। मैं उनकी बात समझ गया था। वो चाहते थे कि मेरी उनके होते हुयें शादी हो जाए।लेकिन मेरी बिलकुल इच्छा उस वक्त नहीं थी। मैंने भोपल जाने के लिए टिकेट् भी बुक कर लिया था। परसो मुझे जाना था। पहिले दिन वर्धा चला गया था। उस दिन मेरा एक दूर का मावसेरा भाई, कोई रिश्ता लेके आया था। वो मुझे रेल्वे स्टेशन पर लड्की के बाप के साथ मिलने आया था। मैंने प्रस्ताव को सुना। और कहा, कल शाम को मैं भोपल लौट रहा हुं। फिर उसने और लडकी के पिताजी ने कहां। आप कल दोपहर लड्की देख् लो !। मैं मना नहीं कर सका। दुसरे दिन मैं,मेरा बड़ा भाई, और गुनवंता लडकी देखने गये थे। लडकी देखने के बाद मैंने गुनवंता से मजाक किया, कैसी लगी रे तुझे लड्की ?।

गुनवंता: अरे तुझे सही में शादी करनी हैं क्या? करनी होगी। तो लडकी अच्छी हैं। मना करने लायक नहीं। हैं। फिर भोपाल चला गया था। लेकिन पिताजी के खत आते रहते थे। अरे परदेश में रहता हैं। बाहर का खाना अच्छा नहीं रहता। लडकी पसंद हो तो बात पक्की कर लेते हैं । नाजुक परिस्थिती को देखते हुयें मुझे आखीर हां करना पडा। इस बदमाश दोस्त ने मुझे शहीद कर दिया था।

सहेली: अरे गुनवंता तु तेरे बारे में बता। मेरी कहानी सुनकर क्या करेंगी आप सब ?। वो किसी तरह बात को टालना चाहता था। उसकी मदत करने के लिये। मजाक करते हुयें , बोला।

अरूण :अरे ये क्या बतायें गा। इसने तो भाभी को फिल्मी स्टाईल में पटायां हैं। सीधी सरल भाभी इसके चक्कर में फस गई थी। ये मेरा दोस्त बहुंत बदमाश हैं। खुद ने मस्त हेड मास्टर्नी को पटा लिया था। अरे, और मुझे लुटा दिया हैं। तब तक हम सभी का नाश्ता हो चुका था। रीना के अन्य सहेलीयों को कुछ परिचीत परिवारों से मिलना था। उन्हे गुनवंता छोडने गया था। मैं और रीना वही रुके थे। शायद हम दोनों इसी बात का इंतजार कर रहे थे।

रीनी: अरे अरुण, आना इधर आराम से बैठ के टाईम पास करते हैं। अच्छा हुआ, इस बहाने हम सभी कि एक- दुसरे से फिर मुलाखात हुंई हैं । एक दुसरे के परिवार से मुलाखात हुई हैं। कुछ भ्रम भी टुटे। शायद मेरे कहानी सुनकर उसका गुस्सा थंडा हुआ था। फिर मैं बोला।

अरुण : अरे रीना कैसी हो , कैसी हो। अपने बारे में कुछ खास बताव।

रीनी: ऐसा कुछ खास तो नहीं, तेरे जैसे मैंने भी शादी कर ली थी। दो बच्चे हैं। दोनों की शादीयां हो चुकी हैं। बाते चल रहा थी।एक –दुसरे को देखते रहे। दोनों एक- दुसरे से यह उम्मीद कर रहे थे कि पुरानी बातों को कोई तो छेड़ेगा। इस इंतजार में गुनवंता पहुंच गया था। रीना हमारे साथ वर्धा तक आने वाली थी। फिर हम सबने अपना सामान गाड़ी के डिक्की में डाला। फिर निकल पड़े। 


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