यादें के साये
यादें के साये


वो हंसती है , वो खिलखिलाती है, बांवरी सी भाग भाग के घर भर का काम करती है । "थकती नही मशीन सी" थोड़ा आराम कर लिया कर सास लाड़ भरे शब्दों में कहती। पति की आंखों में शिकायत तैरती , "सारी दुनिया को खुश रखती है , पर मैं तो जैसे हूँ ही नहीं" सुजाता पति की आंखों में नाराजगी में लाचारगी झलकती देख सहम जाती ।बहुत सहज और सरल है "अमय" , कभी शान्त होकर समझाता है कि तुम्हारे अंदर कोई भय है , या उलझन है तो मनोचिकित्सक से मिल लो।मैं हर परिस्थिति में तुम्हारे साथ हूं।
"नही.. नही..मैं बिल्कुल ठीक हूँ" , सुजाता घबराई सी जवाब देती। उसे मां की दी सीख याद आती कि "कभी जिक्र भी नही करना"।
जैसे ही दरख्तों के साये लम्बे होते और सांझ दस्तक देने लगती , तो सूखे पत्ते सा उसका मन कांपता , सारे देवों का स्मरण करती, "हे अम्बे मां रात न आये कभी" ।
उसे याद आता बचपन ,कलकल करता निश्छल जीवन , प्यार करने वाले मां , बाबा , खूब दुलार देने वाला बड़ा भाई।स्कूल से लौटी थी , "वो" सोफे में बैठा चाय पी रहा था , माँ ने कहा नमस्ते करो , चाचा हैं , पापा के फ्रेंड , ट्रांसफर होकर आये हैं।
इधर आओ 'बेटा' कह चाचा ने कौली भर के दुलार किया ,उस आगोश में अजीब सी 'बू' महसूस की थी सुजाता ने, पर चाचा थे , कसमसा के भाग गई। फिर इस कौली का खेल अक्सर चलता ,वह कसमसा के रह जाती , माँ बाबा तब समझे जब नन्ही सी सुजाता तन मन से लहूलुहान हो गई।उसकी चीखें, शोर ,डाक्टर अंकल, कुछ कुछ उसके जहन में है , माँ पापा का झगड़े की भी कुछ यादें है , मां पुलिस बुलाना चाहती थी , पर पापा ने "उसे"दो थप्पड़ रसीद बुरा भला कह मामला निपटा दिया।
सालों से पूरा परिवार इस बात को लेकर चुप्पी साधें है,उसे भी मुहं खोलनी की इजाजत नही, ना आंखें भर आने की इजाजत है ,उबरना चाहती है इस दंश से ,इतने सालों से भरे मन को एक पल में रीता करना चाहती है , सब कुछ कह देना चाहती है सुजाता ।आंगन में चुपचाप बैठे अमय की ओर अनायास ही उसके कदम बढ़े और एक सांस में जिन्दगी का सारा दर्द बहा आई सुजाता ।
"अमय अब फैसला तुम्हें करना है, मैंने तो "दर्द तुम्हें देकर अपने लिये दवा ले ली है "।
"मुझ पर इस विश्वास के लिये शुक्रिया" कहते हुये अमय ने सुजाता का हाथ को कस के पकड़ लिया । दोनों की आंखों में स्नेह और विश्वास की बूंदें साथ ही झिलमिला उठीं।
डा. कुसुम जोशी
गाजियाबाद [उत्तर प्रदेश]