धुआं धुआं
धुआं धुआं
"ये कैसी धुआं धुआं सी जिन्दगी बना कर रख दी है तुमने, तुम्हें क्या लगता है अगर इसके गहरे कश न लगाये जायें तो जीवन बर्बाद है", यह कहते हुये अमोद तैश में आ गया,
"नही...मैंने ये तो नही कहा कि इसके बिना जिन्दगी जी नही जा सकती है, पर हर चीज का अपना मजा है,और हर उम्र के अपने अपने शौक हैं", रजत हमेशा की तरह शान्त स्वर में बोला,
"पर शौक जब जी का जंजाल बन जाये, तेरी उम्र का ये शौक जब उम्र को ही रोक दे तब"..?
"उम्र कैसे रुक सकती है इससे ...सब सुनी सुनाई बातें हैं..., लगता है अदिति ने मेरी शिकायत लगाई है, ये भाषा कुछ उसी की लग रही है",
"तुम्हारी गलत फहमी है ये",
"तुम भी पत्नी की भूमिका निभाने लगे...मुझे आजकल अदिति पर हैरानी होती है एक वक्त था जब मेरी सिगरेट के छल्ले उड़ाने की अदा पर मर मिटी थी,"कहती थी तुम्हारी ये अदा बेहद कातिल है,सिगरेट के धुएं से बनती ये आकृतियां तुम्हारी कलाकृतियां सी लगती है, मानो आकाश के कैनवास में तरह तरह के चित्र उभर आये हों",
"तब उसकी ये बातें मेरी समझ में नही आती थी,और आज उसे 'मैं' समझ में नही आ रहा हूँ, अपने पिता के जाने के बाद तो मेरे पीछे ऐसे पड़ी है कि जैसे उनके जाने का दोषी मैं और मेरी सिगरेट हों",
"तुम उसे सच में नही समझते हो रजत..., कभी उससे पूछा वो ऐसा क्यों चाहती है? कारण तो बताये,पर नही तुम क्यों पूछोगे...तुम्हारी इच्छा सर्वोपरि जो हैं,अपने अंहकार से कभी बहार तो निकलो..तभी कुछ समझ में आयेगा...
"तुम्हें गलतफहमी है... मैं किसी अंहकार में नही जी रहा,बस मैं चाहता हूँ कि मेरी स्वतंत्रता का सम्मान हो,
"ये तो तुम्हें पता है उसके पिता की मृत्यु का कारण उनका अधिक सिगरेट पीना था,और अब वह अपने होने वाले बच्चे के खातिर इस धुयें को घर में नही चाहती",अमोद ने असल प्रश्न दागा,
रजत ने चौंक कर अमोद को देखा, "मानो पूछ रहा हो कि तुम्हें भी पता है",
"ये बात तो स्वयं भी मुझसे कह सकती है", रजत कुछ तैश में आता हुआ बोला,
"हां कह तो सकती थी, शायद वो तुमसे एक जिम्मेदार पिता बनने की इच्छा के कारण चुप हो", अब आमोद के स्वर व्यंग्य में डूबे थे,
रजत हैरान सा चारो तरफ देखता रहा, फिर उसने अंगुलियों में फंसी सिगरेट को जमीन में फेंक अपने जूते से मसलकर गहरी सांस ली,किसी उत्तर की प्रतीक्षा में अमोद के चेहरे पर नजरे गड़ा दी।