ये प्यार नहीं

ये प्यार नहीं

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जैसे ही हीरा घर में प्रवेश करती, लगता घर झिलमिलाने लगा है, पायल की खनखन, कान में लटकते, चमचमाते नकली झुमके...हाथ भर चूड़ियाँ, जब अम्मा आती कहती "नै खानी तै "सारे पैसे तो तू अपने को सजाने में खर्च कर देती है, बच्चों को क्या खिलाती है ...? बोज्यू [भाभीजी] हैं ना मेरे लिये"चहक के हीरा 'माँ' के लिये कहती। बच्चों को खिलायेगा उनका बबा..। हीरा की जिन्दगी के किस्से कहानियां रोंगटे खड़े करने वाले ..और हम बच्चों के लिये तिलस्मी कथा की तरह होते।

आज इतवार का दिन था, सफाई के लिये हीरा कमरे मैं आई, मौका मिलते ही "फिर उस दिन वाले किस्से का क्या हुआ"? हीरा दी कहते हुये हम बच्चों ने उन्हें घेर लिया। हमेशा की तरह बोली "बैना कितना भाग्य पाया अच्छे घर जनम लिया।" "मेरे ही करम खराब थे, ईजा बाबू इतने खराब नहीं थे, मेरी ही अकल मैं पत्थर पड़ा था। पहले तो सब ठीक था, पर चार बहनों के बाद भाई क्या आया, ईजा बाबू तो जैसे हम बहनों को भूल ही गये। उस दिन भी जुम्मन चूड़ी बेचने आया था, अपने कांच के सुंदर बक्से में , "ईजा"ने हम बहनों को न रिब्बन न चूड़ी कुछ नहीं दिलवाया , "पर भाई के लिये कमर डोर, धागुले[हाथ के कड़े] काजल और बहुत कुछ लिया। "कलेजा भक्क हो उठा जलन के मारे मेरा।" जुम्मन ने मौका देख कान की झुमकी हाथ में रखी, और फुसफुसाया -"शाम को गोठ[गाय के रखने की जगह] के पीछे मिलना", उसके मीठे बोलों से दिल में कैसा तूफान सा उठने लगा। "उसी पल मैं पगली हिरुली जुम्मन के प्रेम में पड़ी ....और उसी रात भाग आई",'ये कहती हुयी हँसी, पर उसकी भरी आँखों में 'प्रेम,जलन का अपराध बोध झिलमिलाता हुआ दिखाई दिया।


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