वतन की मिटटी की खुशबू
वतन की मिटटी की खुशबू
आज अमेरिका में सभी भारतीय फ्रेंड्स इकट्ठे हुए बहुत मौज मजे कर रहे थे।
सब अपने अपने दिल की बात कह रहे थे ।
उसी समय हल्की हल्की बरसात होने लगी मगर मिट्टी में वह खुशबू नहीं थी जो अपने वतन की मिट्टी में आती है। क्योंकि वहां तो उसकी खाली मिट्टी नहीं होती है उस पर कॉकपिट बिछाई हुई होती है। तो वह सोंधी सोंधी खुशबू नहीं आती है।सब अपने वतन की मिट्टी को ही याद कर रहे थे।उसमें से कुछ फ्रेंड्स तो अपने उस दिन को याद कर रहे थे जब वे अपना वतन छोड़ के आए।वतन की हर बात उनको याद आ रही थी ।
उसी में से एक फ्रेंड ने कहा मेरा मन अब यहां रहने का नहीं है मैं तो वापस अपने वतन में जाऊंगी और अपने परिवार के साथ वही सेटल होंऊंगी अपना देश अपने देश की खुशबू तो अपने देश की ही होती है।
वतन की मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू बरसात के समय में कितनी अच्छी लगती है।
परदेस में पैसा भले मिलेगा अपने देश जैसा प्यार और वतन की सोंधी सोंधी खुशबू नहीं मिलेगी।
सारी दोस्त उसको बोलती है यह तो सब कहने की बातें हैं जो एक बार यहां आ जाता है डॉलर में फंस जाता है ।वह वापस अपने देश को नहीं जाता खाली याद ही करता है।
मगर उनकी वह दोस्त जो भारत को बहुत याद करती थी और वापस भारत आना चाहती थी। वह वहां से भारत आई और भारत में अच्छी तरह सेटल हुई।
और वह बहुत खुश है अपने वतन में अपने देश के हित में काम करते हुए देश की सोंधी सोंधी मिट्टी बरसात के टाइम में उसकी सोंधी सोंधी खुशबू लेते हुए वह अपनी दोस्त को फोन करती है कि मैं जो कह रही थी वह मैंने कर दिखाया। हम लोग यहां अच्छी तरह से सेटल हो गए ।
हम तो तुमको भी यही कहेंगे कि तुम भी यहीं आ जाओ भारत में भी कोई कमी नहीं है सब कुछ अच्छा ही है। अपना देश तो अपना देश ही है यहां जो अपनापन है जो प्यार है जो मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू है या कहीं और नहीं और जितने पैसे में चाहो उतने पैसे में घर चल सकता है।
इसीलिए कहती हूं " घर आजा परदेसी तुझको देश पुकारे।"
