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Deepak Dixit

Abstract

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Deepak Dixit

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वर्षों की मेहनत

वर्षों की मेहनत

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तेजप्रताप से मेरी मुलाकात बारह साल बाद हो रही थी। उसको कुश्ती में एक राज्यस्तरीय सम्मान मिला था और मुझे जिलाधिकारी की हैसियत से उस सम्मान समारोह में विशेष अतिथि का दर्जा दिया गया था।

बरसों पहले गॉंव के उस स्कूल का नक्शा मेरे जहाँ में उभर आया जहाँ हम दोनों ही एक कक्षा में पढ़ रहे थे। वहां भी एक दिन इसी तरह हम दोनो स्कूल के एक मंच पर उपस्थित थे- मैंने क्योंकि हाई स्कूल में पूरे ज़िले में सर्वाधिक अंक पाए थे और उसने ज़िले स्तर का एक कुश्ती की प्रतियोगिता जीती थी।

यूँ तो हम एक ही कक्षा में थे पर हमारी कोई ख़ास दोस्ती नहीं थी। में कक्षा में सबसे आगे बैठता था और वह सबसे पीछे की बेंच पर। पर उस दिन मंच पर एक साथ आने से हमारी बोलचाल शुरू हो गयी जो धीरे धीरे दोस्ती में बदल गयी।

वह मेरे कक्षा में प्रथम आने का राज जानना चाहता था और मैं उसके बलिष्ठ शररीर और मज़बूत पकड़ का।एक दिन मैंने उससे पूंछा , " दोस्त, तुम्हारी इस सेहत का क्या राज है ?"

उसने बताया कि वह गांव के एक संपन्न परिवार से है जहाँ लोग पीढ़ियों से खेती के साथ पहलवानी का भी शोक रखते है। खाने पीने की कोई कमी नहीं है। जब वह दस साल का था तो उसके पिता एक भैंस का छोटा सा बच्चा लेकर आये।

यह कथा सुनते हुए वह आगे बोला , “ना जाने क्यों, मुझे उससे बेहद लगाव हो गया। मैं रोज शाम को घूमने जाता और पूरे गांव का एक चक्कर लगता था जो करीब पांच मील का होता था। एक दिन मैं उस भैंस के बच्चे को अपने कंधे पर बैठा कर घूमने निकला तो मुझे बेहद अच्छा लगा। फिर तो ये मेरी दिनचर्या में शामिल हो गया। रोज मैं उसे अपने कंधे पर बिठाता और गांव का चक्कर लगता। धीरे धीरे बच्चा बड़ा होकर एक विशालकाय भैंस बन गया पर मेरे लिए तो उसको उठा कर पूरे गांव मैं घूमना एक सहज और नियमित घटना थी।

इस छोटी सी बात से और अच्छे खान पान से मेरी काया बलिष्ठ होती गयी जिसको देख कर मेरे चाचाजी जो एक पेशेवर पहलवान थे, उन्होंने मुझे कुश्ती के दांव पेंच भी सीखना शुरू कर दिया। इस तरह मैं यहाँ तक पहुंचा हूँ। पर अब तुम मुझे बताओ कि तुम कैसे हमेशा कक्षा मैं प्रथम आ जाते हो और इतने मुश्किल सवाल चुटकियों मैं हल कर लेते हो?”

मैंने कहा , " दोस्त, घर में शुरू से ही मैं अपने माता-पिता पिता को जानवरों की तरह लड़ता देखता आया हूँ जिससे मेरा मन अक्सर परेशान रहता है। अपनी इसी परेशानी को दूर करने के लिए मैं अक्सर किताबों में अपने आप को खोकर शांति पाता हूँ जिससे मेरा मन हल्का हो जाता है। और मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूँ अत: मेरी तमन्ना ही कि मैं अभावो की नर्क भरी जिंदगी से निकल कर को बड़ा सरकारी अफसर बन सकू। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए मैं औरों के मुकाबले अपनी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देता हूँ।"

आज इतने दिनों बाद में अपने और तेजप्रताप के सफल जीवन को देख कर सोच रहा था कि हमारी कक्षा में तो पचास से भी ज्यादा लोग थे पर उनमें से अधिकांश अपनी जिंदगी में कुछ ख़ास नहीं कर नहीं पा रहे हैं और अक्सर अपनी किस्मत को कोसा करते हैं। पर अब मेरी समझ में आ चुका है कि एक अच्छी जिंदगी किस्मत के सहारे नहीं बल्कि बरसों की मेहनत और तपस्या से हासिल कि जाती है। ईश्वर करे ये बात उन लोगों की समझ में भी किसी तरह से आ जाए। 


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