वृद्धाश्रम में हूं
वृद्धाश्रम में हूं


वो मासूम सा चेहरा, जिसकी मुस्कुराहट देख मेरी सारी थकान मिट जाती थी। जब कभी तू रोता तो मैं तुझे हँसाने के कितने प्रयास करता। घोड़ा बनकर , कभी पीठ पर बैठाकर, तो कभी तुझे उछाल कर तेरी खिखिलाती हँसी देख मैं भी खुश हो जाता। लगता मानो दुनिया की सारी खुशी मुझे तेरी ख़ुशी से ही मिल जाएगी। ऑफिस से जब मैं घर आता, तेरी उम्मीद भरी निगाहें मेरे जेब को देखती जैसे उसमें कुछ तो मैंने लाया ही होगा! एक चॉकलेट से भी तू इतना खुश हो जाता जैसे दुनिया की सारी ख़ुशी मिल गई। तेरी मां के जाने के बाद मैंने तुझे मां की कभी कमी ना महसूस होने दी। तुझे कभी अकेला ना छोड़ता, जिससे कभी तुझे अकेलेपन का एहसास ना हो ।
अपना घर रहते मैं वृद्धाश्रम में हूं। मुझे आज तेरी बहुत याद आ रही है, आज तेरी कमी महसूस हो रही है। मुझे हर दिन अकेलेपन का एहसास होता है।लगता है मानो कुछ खोया है मैंने। शायद मेरी परवरि
श में ही कोई कमी रह गई होगी। शायद सारी जिम्मेदारियां खुद निभाते निभाते शायद तुझे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराना ही भूल गया। तभी तो तूने मुझे बोझ मानकर घर से निकाल इस वृद्धाश्रम में छोड़ दिया। जब तेरी जिम्मेदारियां निभाने की बारी आई तो तूने मुंह मोड़ लिया।
जब एक पिता के रहते बेटा कभी अनाथ नहीं हो सकता तो बेटे के रहते एक पिता अनाथ कैसे हो सकता है? आज मैं वृद्धाश्रम में अकेला अपनी अंतिम सांसे गिन रहा हूं। लेकिन निराश नहीं हूं क्योंकि मुझे पूरा यकीन है जब तुझे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होगा, जब मेरी याद आएगी तो तू जरूर आएगा। मेरे जीवित रहते या मरने के बाद ही सही , कम से कम मेरी चिता को मुखाग्नि तो मेरा बेटा ही देगा।