वो
वो
मैं उसकी खरीदी भी कोई जागीर नहीं थी कि वह जैसे चाहे मुझे उस रुख में डालता है। बहुत कुछ और बहुत ज्यादा उसके लिए समर्पण था मेरा लेकिन जब हद पार हो गई तो मुझे एक कदम उठाना ही पड़ा। उठाते भी क्यों ना आखिर क्यों रो-रोकर सिसक सिसक कर अपने शरीर को खोखला बना कर जीते रही हूं यह समझ में नहीं आता था की और किस अपराध की सजा मिल रही थी मुझे यह भी नहीं समझ में आता था वह अपने आप को क्या समझता था कि पितृसत्तात्मक इस समाज में और मुझे अपनी गुलाम बनाकर रखेगा। मैं उस जमाने की स्त्री तो नहीं कि गाली खा कर अपना शोषण करवा कर भी घर में एक बर्तन की तरह कोने में पड़ी रहूं। मेरा स्वाभिमान मुझे इसकी इजाजत नहीं देता था और कर भी क्या बहुत झकझोर कर रख दिया था। मुझे अंदर तक से इंसान ने वह देखने में दूसरों को बहुत भोला-भाला और सीधा साधा लग सकता था क्योंकि वह बहुत कम बोलता था।
मेरी उस से मुलाकात नहीं हुई थी समाज के रीति-रवाजों के अनुसार विवाह हुआ था वह भी माता-पिता के मर्जी के अनुसार। वह मेरे दिन का सबसे बेहतरीन पल था मेरी जिंदगी का मेरे अनुसार क्योंकि मैंने जो सपने सजाए थे वह आज पूरे होने वाले थे। इस लड़का मुझे भी देखने आने वाला था उसके परिवार वाले और वह मुझे देखने आए बात यहीं तक नहीं मुझे देखते ही उस लड़के में कोई खास बात नजर नहीं आई। मैंने बहुत चाहा कि उसे सवाल करूं पर मैं कर नहीं पाई मेरी ही ताऊ जी की बेटी ने उनसे सवाल किया जिस पर उनके जवाब को सुनकर मुझे उस व्यक्ति की व्यक्तित्व में कोई खास बात नजर नहीं आई। मैंने घरवालों से कहा कि वह बोलचाल में अच्छा नहीं है पर सपने दबाकर मुझे बोल दिया कि उसकी सरकारी नौकरी है और बोलचाल तो तू खुद ठीक कर लेगी पुलिस वाले तो होते ही ऐसे हैं और मैंने वह फैसला मंजूर कर लिया। और मैं 4 फरवरी 2013 को विवाह करके अपने ससुराल आ गई लेकिन मैं वहां कि आपको एक एक घटना का वर्णन नहीं करवा सकती क्योंकि जो मेरे साथ हुआ है उसे सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे पर मैं उस व्यक्ति की बातों को गालियों को सहन कर दी गई।
मुझे नहीं समझ में आता उसका प्यार था या अत्याचार पर वह मेरे बिना एक पल भी नहीं रहता था मुझे अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देता था उसकी बदतमीजी की हद यह थी कि वह अपने माता-पिता को भी गाली ही देता बात करता था और मुझे भी बिना गाली कि नहीं बोलता था जब देखूं मैं उसकी खेलने का साधन तो बन गई थी उसने सबके सामने मेरा अपमान तो किया प्यार करने का तरीका उसका अकेलेपन में होता था वह कैसा होता है वह प्यार नहीं कहा जा सकता। वह बस अपनी एक जरूरत थी और सही मायने में तो उसने मुझे अपनी जरूरत के लिए ही हमेशा प्रयोग किया है और ना जाने मैं भी उसके झांसे में क्यों आ जाती थी। समझ में नहीं आता जबकि शादी के 10 साल बीत चुके हैं इन 10 सालों में उसने मुझे कोई सुख किसी प्रकार की कोई खुशी नहीं दी थी उसे खाना दिया जाता तो तू उसको फेंक देता था। उस खाने में जो कमियां निकाल कर मुझे गाली देता था और कहता था कुछ करना ही नहीं आता करना ही नहीं चाहते मेरे हर काम में नाम रखना उसमें कमी निकालना उसकी आदत सी बन गई थी ऐसा नहीं है कि वह मेरे ही काम में कमियां निकालता था वह अपनी मां अपने पिता अपनी बहन को भी प्यार नहीं करता था वह उन्हें भी उसी प्रकार गाली देता था और कन्या निकालता था पर मुझे बहुत बुरा लगता था क्योंकि उसके मन में स्त्रियों के प्रति कोई सम्मान नहीं था वह पति कहलाने के लायक ही नहीं था वह पति के नाम पर कलंक का उसके अत्याचारों को दुनिया नहीं समझ सकती थी क्योंकि दुनिया के सामने वह सीधा साधा भोला भाला और कभी झुंझला कर बस केवल गुस्सा ही प्रतीत करता था जिसे समाज केवल सामान्य मानता थ और क्या था था कि हमें एडजस्ट करना आना चाहिए हमें हर चीज को सहन करना चाहिए जो मैं करती रही कुल मिलाकर मैं समायोजन ही कर रही थी अगर मेरी अंतरात्मा से पूछा जाएगा तो मैं इस दुनिया में सबसे ज्यादा नफरत उसी इंसान से करती हूं क्योंकि जो चीज उसने मुझे दिए हैं वह दुनिया में कोई नहीं दे सकता वह अपनी नजरों में खुद को अच्छा समझता है लेकिन समाज उसे गलत ही समझता है क्योंकि अगर मैं उसकी एक-एक बातों का वर्णन करूंगी तो धिक्कार है उसके जीवन पर और उसके बारे में जितना कहा जाए उतना ही कम है मैं बहुत आहत हूं आधा तू इतना कहते हुए अपनी वाणी को विराम देती हूं।
