वो पत्नी
वो पत्नी


विजय बहुत ही पढ़ने वाला लड़का होता है वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से होता है विजय के पिता की एक छोटी सी कपड़ों की दुकान होती है विजय अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी के लिए प्रयास करता है लेकिन इस गला काट प्रतियोगिता के समय में इतनी जल्दी नौकरी कहाँ मिलने वाली वो फॉर्म भरता है परीक्षा देता है लेकिन असफल हो जाता है विजय की शादी की उम्र हो चुकी है माँ की तबियत ठीक नहीं रहती तो विजय के पिता उससे शादी के लिए कहते है लेकिन विजय मना कर देता है कहता है पिता जी नौकरी नहीं है तो अभी शादी करना ठीक नहीं क्या खिलाऊँगा, लेकिन पिता कहते है अरे सब हो जायेगा तुझे पता है जब मेरी शादी हुई थी उस वक़्त में भी कुछ नहीं करता था लेकिन उसके बाद कमाने लगा और देख तुझे भी तो पाल कर इतना बड़ा कर दिया। विजय कहता है आपका समय और था आज की लड़कियाँ मेरी माँ की तरह नहीं होती जो घर को कैसे भी चला ले विजय के पिता कहते है शादी की भी एक उम्र होती है यदि यह निकल गयी तो कोई नहीं करेगा समझा विजय चुप हो जाता है।
एक दिन सुबह सुबह विजय के पिता के एक मित्र वासु आते है विजय के पिता से कहते है और बताओ राजेश क्या हाल है। राजेश कहते है ठीक है सब कृपा है आप बताये कैसे आना हुआ वासु कहते है की अपना विजय अब बड़ा हो गया है कोई रिश्ता नहीं आया अभी तक राजेश कहते है अभी कोई विचार नहीं बना है वासु मुस्कुराते हुए कहते है यदि आप कहे तो एक सुन्दर लड़की है थोड़ा कम पढ़ी है लेकिन काम काज में बहुत निपुण है यदि आप कहे तो बात करूँ, राजेश सोचते हुए ठीक है तुम पहले उसकी कोई फोटो दिखाना फिर विचार होगा मुझे संस्कारी बहु चाहिये और उसका परिवार भी ठीक होना चाहिये फिर हम बात करेंगे । अगले ही दिन वासु लड़की का फोटो लाकर विजय और उसके पिता राजेश को दिखाते है। राजेश की माँ फोटो देखते ही अरे ये तो बहुत सुन्दर है लेकिन भाई साहब ये खर्च क्या करेंगे वासु कहता है देखो भाभी लड़की बहुत सुन्दर है क्या नाम है इसका विजय की माँ पूछती है, वासु तुरंत उत्तर देता है, भाभी जी, माधुरी नाम है लेकिन इनके पास ज्यादा रूपए नहीं है और हमारा विजय भी कहाँ सरकारी नौकरी में है देखिये मैं कहता हूँ शादी कर दीजिए आज कल का माहौल आप देख ही रही है कोई ख़राब लड़की आ गयी तो समस्या होगी बाकी आपकी मर्जी विजय की माँ विजय की ओर इशारा करते हुए बताओ विजय हाँ कह देता है दोनों की शादी हो जाती है।
माधुरी, विजय से कहती है देखो मैं वी.एस सी. किया है मैं आगे भी पढ़ना चाहती। विजय कहता है की आज कल बहुत ज्यादा कठिन है नौकरी पाना लेकिन अगर तुम्हारा मन है तो पढ़ सकती हो मैं तुम्हें रोकूँगा नहीं माधुरी कहती है क्यों ना किसी बड़े कोचिंग में जा कर तैयारी की जाए तो एक साल में ही नौकरी लग सकती है विजय कहता है बात ठीक है लेकिन बाहर जाने पर खर्चा बहुत होगा इतना रूपया हर महीने कौन देगा यह सुनकर माधुरी तुरंत बोलती है मेरी एक दोस्त दिल्ली में नौकरी करती है अगर तुम कहो तो वहाँ बात करूँ हम दोनों दिन में नौकरी कर लेंगे और बाकी वक़्त हम पढ़ा करेंगे यह सुनकर विजय बहुत जोर से हँसता है कहता है इतनी साल से मैं दिन रात मेहनत कर रहा हूँ तब तो लगी नहीं नौकरी अब पूरे दिन काम कर के कैसे लगेगी इतना सुनते ही माधुरी कहती है तुम्हारी सोच ही ठीक नहीं है वर्ना अब तक लग गयी होती, एक बार भी सोच लो आप क्या पता अगर हम दोनों प्रयास करे तो शायद किसी एक की लग जाए । विजय कहता है तुम ठीक कह रही हो लेकिन इस प्रतियोगिता के समय में काम कर के फिर रात में कुछ घंटे पढ़ कर सरकारी नौकरी लेना आसान नहीं है। विजय कहता है ऐसा करते है हम दिल्ली चलेंगे लेकिन मैं नौकरी करूँगा और तुम मन लगा कर पढ़ना माधुरी और विजय दोनों दिल्ली चले जाते है वो दोनों माधुरी की दोस्त से मिलते है लेकिन कोई बात बन नहीं पाती और नौकरी नहीं लगती, विजय दूसरी जगह नौकरी की तलाश करता हुआ एक कंपनी में पहुँचता है कंपनी के एक अधिकारी से वो नौकरी की बात करता है और बताता है की सर मुझे नौकरी की बहुत आवश्यकता है अधिकारी पूछता है क्या तुम कंप्यूटर पर काम कर सकते हो विजय जी सर बिल्कुल कर सकता हूँ बस मुझे थोड़ा सा बता दीजियेगा की क्या काम करना है अधिकारी कहता है हाँ वो तो सात दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है अगर तुम ठीक से काम कर पाए तभी नौकरी पक्की समझना समझे और हाँ यहाँ तुम्हें बारह घंटे काम करना होगा अच्छे से समझ लो फिर बाद में नौकरी छोड़ कर भागो। विजय कहता है देखिये सर मुझे नौकरी की बहुत आवश्यकता है मैं कर लूँगा, अधिकारी ठीक है कल से आओ फिर, विजय कहता है जी सर लेकिन मेरा वेतन क्या होगा, अधिकारी विजय को घूरते हुए सात हजार मिलेंगे। विजय कहता है लेकिन सर ये तो कुछ कम है अधिकारी कहता है करना हो तो आ जाना वर्ना कहीं और देखो समझे।
विजय दिन रात काम करता है, माधुरी भी पूरा समय पढ़ने में लगा देती है फिर उसकी भगवान सुन लेता है और उसका चयन इनकम टैक्स विभाग में हो जाता है दोनों बहुत खुश होते है। माधुरी की पहली पोस्टिंग नागपुर में होती है माधुरी विजय से कहती है देखिये आपने बहुत काम कर लिया अब मैं नौकरी करती हूँ आप घर पर रहे मज़े कीजिए माधुरी की तरफ देख कर विजय कहता है हाँ पता है तुम इनकम टैक्स अधिकारी हो गयी हो लेकिन मैं घर पर नहीं बैठ सकता मैं नागपुर कोई नौकरी ढूंढ अगर घर पर बैठा तो लोग मज़ाक बनाएँगे माधुरी चुप हो जाती है दोनो नागपुर में रहने लगते है कुछ ही दिन में माधुरी के व्यवहार में बहुत परिवर्तन दिखने लगता है उधर विजय को नागपुर में कोई दूसरी नौकरी नहीं मिलती माधुरी बार बार उसे नौकरी ना ढूंढ कर घर की देख रेख को कहती विज
य उससे कुछ कह नहीं पता लेकिन वो सब समझने लगता है माधुरी सुबह सुबह विजय को चाय के लिए उठती है विजय उसे चाय बना कर पिलाता है एक दिन विजय उससे पूछता है की जब तुम पहले नौकरी नहीं करती थी तब तो चाय बना लिया करती थी अब क्या हो गया तुम दफ्तर तो दस बजे जाती हो इतना सुनते ही माधुरी गुस्से में तुम पूरे दिन करते ही क्या हो पहले तुम कंपनी में बारह घंटे काम करते थे यहाँ तो कोई काम नहीं है मुझे बहुत काम होता है तुम क्या चाहते हो अब भी मैं पहले की तरह घर का भी काम करूँ और हाँ एक बात ध्यान रखना आगे से मुझसे ऐसे बात मत करना विजय चुपचाप खड़ा रहता है माधुरी बिना कुछ खाये ही दफ्तर चली जाती है दोपहर में विजय खाना बनाता है और माधुरी के ऑफिस टिफ़िन ले कर पहुँच जाता है माधुरी मीटिंग में व्यस्त होती है वो वहाँ कुछ देर इंतज़ार करता है माधुरी कुछ और अधिकारीयों के साथ सामने से आती दिखती है विजय उसे देख मुस्कुराता है लेकिन वो उसे अनदेखा कर अपने केविन में चली जाती है अपने चपरासी को बोलती है की उनसे पूछो क्यों आये है। चपरासी जाता है और पूछता है हाँ भाई क्या काम है क्यों मिलना है मैडम से, विजय कहता है ये मैडम का टिफिन है इतना कहते ही चपरासी ओह ! तुम नौकर हो मैडम के घर पर आज मैडम टिफिन भूल गयी क्या ? विजय कुछ कह पाता चपरासी आगे कहता है मैडम बता रही थी उनका नौकर ही रोज चाय और खाना बनाता है विजय को बहुत गुस्सा आता है इससे पहले की विजय कुछ कहता नौकर हाथ से टिफिन लेता है और चला जाता है विजय दो मिनट वहाँ खड़ा रहता है फिर वहाँ से चला आता है पूरे रास्ते उस चपरासी की बातें उसके कान में गूंजती रहती है देर शाम माधुरी ऑफिस से लौटती है विजय गुमसुम बैठा होता है माधुरी कहती है मुँह लटकाये क्यों बैठे हो कोई काम नहीं करना तुम्हे खाना बना लिया क्या इतना सुनते ही विजय को बहुत गुस्सा आता है विजय कहता है तुमने मुझे नौकर बना दिया अब तो बाहर वालो को भी तुमने नौकर बता दिया है मुझे माधुरी चिल्लाओ मत घर के काम करने से कोई नौकर नहीं हो जाता और मैं पूरे दिन काम करती हूँ समझे मुँह बंद कर के खाना लगाओ मुझे भूख लगी है तुम्हारी फालतू की बात के लिए मेरे पास वक़्त नहीं है आया समझ इतना सुनते ही विजय की आँख से आँसू आ जाते है विजय कहता है मैं तुमसे ज्यादा पढ़ा हुआ था मैने दिन रात मेहनत कर के तुम्हें अधिकारी बनाया तुम मुझ पर रौब दिखा रही हो, माधुरी चिल्लाती हुई बोली तुमने क्या मेहनत की मैने दिन रात पढ़ाई की है समझे तब बनी हूँ ऐसे ही नहीं बन गयी मेरे पास तुमसे बात का वक़्त नहीं सो जाओ अब इतना कह कर माधुरी दूसरे कमरे में चली जाती है विजय पूरी रात सो नहीं पाता, अगले दिन सुबह माधुरी बिना कुछ खाये ऑफिस चली जाती है, विजय उसे दोपहर में कॉल करता है वो बताती है की उसे आज ऑफिस की तरफ से पार्टी में चलना है तुम भी चलना अगर मन हो तो और खाना नहीं बनाना, विजय कहता है ठीक है शाम को दोनों पार्टी में जाते है ।
वहाँ माधुरी की सहेली माधुरी से पूछती है ये कौन है माधुरी कुछ देर चुप रहने के बाद मेरे पति है, सहेली कहती है अच्छा क्या करते है कभी बताया नहीं माधुरी ये कुछ नहीं करते घर पर ही रहते है अभी जल्द ही कोई व्यवसाय करेंगे उसकी सहेली हँसते हुए जी बढ़िया है लेकिन आज कल घर की भी देख रेख को कोई चाहिये ठीक पति ढूंढ लिया तुमने तेज़ से हँसी ये देख विजय को बहुत बुरा लगा माधुरी में विजय से कहा तुम उस टेबल पर बैठ जाओ और अगर मन हो तो घर भी जा सकते हो मैं आ जाऊंगी लोग माधुरी को नमस्कार, गुड इवनिंग बोल रहे थे। विजय चुपचाप दूर एक कोने में खड़ा हो गया और खुद को कोसने लगा सोच रहा था काश खुद और पढ़ लिया होता या इसे नहीं पढ़ाता तो इस तरह बेज्जत नहीं होता। पार्टी दो बजे ख़त्म होती है दोनों घर बापस आते है विजय माधुरी से कहता है लोग मेरे लिए ऐसा बोलते है तुम्हे बुरा नहीं लगता माधुरी कहती है क्या करूँ जब तुम एक नाकारा आदमी हो तो मैं रोने के सिवा क्या कर सकती हूँ क्या लोगो के मुँह पकड़ लूँ आगे से मेरे साथ कहीं नहीं जाना सब पार्टी का मज़ा बेकार कर देते हो कितने बड़े, बड़े लोग वहाँ थे मुझे तुम्हें ले ही नहीं जाना था इतना सुनते ही विजय कहता है तुमने आज के दिन के लिए ही मुझे नौकरी नहीं करने दी मैने तुम्हें अधिकारी बनाया है समझी तुम एक बात समझ लो जहाँ पति का सम्मान नहीं वहाँ औरत का भी सम्मान नहीं समझी इतना सुनते ही माधुरी वो ज़माने गए तुम मूर्खो जैसी बात मत करो सब मेरी बहुत इज़्ज़त करते है लेकिन तुम्हारे वजह से मुझे हर जगह शर्मिंदा होना पड़ता है अब मेरा दिमाग मत ख़राब करो मुझे नींद आ रही है सो जाने दो यह कह कर माधुरी दूसरे कमरे में चली गयी। विजय पूरी रात रोता रहा एक एक बात उसके दिल को चीरती सी जा रही थी जब सुबह दस बजे माधुरी सो कर उठी तब उसने और तेज़ से चिल्लाई चाय ले कर आओ तब कोई आवाज़ नहीं आयी फिर दोबारा चिल्लाई सुना नहीं फिर कोई आवाज़ नहीं गुस्से में दूसरे कमरे में आयी और देखा विजय पंखे से लटका हुआ है वही मेज़ पर एक पत्र रखा है यह देख कर माधुरी तेज़ से चीख उठती है उसकी आवाज़ सुनकर पड़ोसी आ जाते है फिर मेज़ पर रखे पत्र को माधुरी पढ़ती है उसमे लिखा होता है प्यारी माधुरी अब तुम्हें कोई शर्मिंदा होनी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी तुम्हें मुझे कहीं नहीं साथ ले जाना पड़ेगा तुम खुश रहना। मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी शायद जो मैने खुद ना पढ़ कर तुम्हें पढ़ाया पूरे दिन रात काम किया अब मैं और ताने नहीं सह सकता तुम अपनी ज़िंदगी अच्छे से जिओ तुम एक बड़ी अधिकारी हो और बड़ी अधिकारी बनो सदा के लिए जा रहा हूँ। इतना पढ़ते ही माधुरी बेसुध हो ज़मींन पर गिर पड़ी सभी पड़ोसी उसे भला बुरा कहने लगे।