Arun Gupta

Drama

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Arun Gupta

Drama

संगति का प्रभाव

संगति का प्रभाव

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रोहन अपने घर के पास ही एक विधालय में पढ़ता था उसके पिता चीनी मिल में बाबू थे और माँ एक शिक्षिका थी रोहन पढ़ाई में अच्छा नहीं था जब उसने  कक्षा पाँच की परीक्षा दी वह उसमे पास भी नहीं हो पाया, उसके मित्र उसे चिढ़ाते कोई कुछ भोलूराम कहता तो कोई कुछ यह सुनकर रोहन कोई बहुत बुरा लगता लेकिन वो क्या करता चुपचाप कक्षा में अकेले बैठा रहता उसकी माँ जो एक शिक्षिका थी वह भी बहुत चिंतित रहती की यह पढ़ाई में इतना कमज़ोर क्यों है।

एक दिन सुबह हो गयी रोहन के विधालय जाने का समय हो गया लेकिन रोहन तो उठा ही नहीं माँ ने रोहन को कई बार उठाया लेकिन वो तो अपने विस्तर से हिला ही नहीं रोहन की माँ तेज़ से चिल्लाई सुनते हो रोहन के पापा यह रोहन अभी तक अपने विस्तर से नहीं उठा विधालय जाने को देर हो जाएगी अब आप ही कीजिये।

इसका कुछ मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आता इतना सुनते ही रोहन के पापा रोहन के कमरे में आये तो देखा रोहन चादर में मुँह छिपाये सोने का वाहना बना रहा है उन्होंने रोहन को प्यार से उठाया और पूछा आज तुम विधालय नहीं जाओगे यह सब सुनकर रोहन ने मुँह फेर लिया रोहन के पिता ने प्यार से बोला अच्छा नहीं जाना विधालय तो नहीं जाओ लेकिन एक बात बताओ तुम विधालय क्यों नहीं जाना चाहते कोई समस्या है इतना सुनते ही रोहन ने रोना शुरू कर दिया रोहन को रोता देख उसके पिता ने पूछा क्या हुआ रोहन ने रोते हुए कहा सब बच्चे मुझे चिढ़ाते है मेरा कोई अच्छा दोस्त नहीं है मुझे पढ़ाई समझ नहीं आती मुझे विधालय नहीं जाना।

यह सुनकर रोहन के पिता ने कहा अच्छा यदि यह बात है तो आज मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे विधालय चलूँगा और तुम्हारे कक्षाध्यापक से बात करूँगा लेकिन रोहन ने साफ़ साफ़ मना कर दिया फिर रोहन के पिता ने कहा ठीक है तुम आज मेरी बात मान लो सिर्फ एक सप्ताह चले जाओ विधालय फिर मत जाना यह सुनकर रोहन ने कहा ठीक है चला जाऊँगा लेकिन आप भी मेरे साथ चलना मेरे विधालय और मेरे कक्षाध्यापक से बात करना यह सुनकर रोहन के पिता ने बोला हाँ ठीक है अब तुम तैयार हो जाओ फिर हम चलते है रोहन तैयार हुआ।

और अपने पिता के साथ विधालय पहुँचा उसके पिता ने रोहन से कहा अपने कक्षाध्यापक से मुझे मिलाओ रोहन अपने पिता को अपने कक्षाध्यापक के पास ले गया कक्षाध्यापक रोहन के पिता को देखते ही बोले जी बताये क्या सेवा कर सकते हैं हम आपकी रोहन के पिता ने कहा मुझे कुछ रोहन के विषय में बात करनी है मैं चाहता हूँ आप रोहन पर ध्यान दीजिये इतना सुनते ही कक्षाध्यापक बोले महोदय हम तो सभी पर बहुत ध्यान देते है हमारे लिए सभी एक जैसे है क्या आपको लगता है हम इस पर ध्यान नहीं दें पा रहे। रोहन के पिता बोले आप गलत समझ रहे है मैं चाहता हूँ रोहन को आप और ज्यादा प्रोत्साहित करे और इसे जो आपकी कक्षा का होशियार बच्चा है उसके साथ कुछ दिन बैठाएं जिससे इसमें परिवर्तन हो। कक्षाध्यापक ने अपना मुँह सिकोड़ते हुए बोला यदि आपको लगता है।

इससे इसमें बहुत परिवर्तन होगा तो मैं ऐसा ही करूँगा बाकी इसका भगवान मालिक यह कह कर कक्षाध्यापक वहाँ से चले गए रोहन के पिता ने रोहन को दस रूपए दिए और कहा अब तुम्हे कोई परेशान नहीं करेगा तुम आराम से मन लगा कर पढ़ाई करो। अब रोहन को आगे की सीट पर बैठाया गया कक्षा के उस बच्चे के साथ जो हमेशा प्रथम आता था उसका नाम मोहन था। मोहन के पिता एक गरीब किसान थे,

मोहन भी बहुत मेहनत से पढ़ता था जो भी काम मिलता सभी काम वो समय से पूरा कर लेता मोहन अपने पिता की खेती में भी मदद करता।

कुछ ही दिन में रोहन और मोहन अच्छे दोस्त बन गए मोहन सभी चीज़े बहुत जल्दी समझ लेता और उसकी गणित तो बहुत ही अच्छी थी उसे देख कर रोहन भी मेहनत से पढ़ने लगा जो समझ नहीं आता वो वह मोहन से पूछ लेता मोहन भी उसे अच्छे से समझा देता देखते ही देखते रोहन में बहुत परिवर्तन हो गया अब रोहन कक्षा में अध्यापक द्वारा पूछे गए प्रश्नो का उत्तर देने लगा इससे रोहन के घर वाले बहुत खुश थे और साल के अंत में रोहन अच्छे अंको से उत्तीर्ण हुआ धीरे धीरे रोहन परीक्षा उत्तीर्ण करता गया और उसने इंटर की परीक्षा में पूरे विधालय में दूसरा स्थान पाया उसके पिता उसे डॉक्टर बनाना चाहते थे इसीलिए उन्होंने उसे एक प्रतिष्ठित कोचिंग में उसका एडमिशन करा दिया अब रोहन अपने घर से पाँच सौ किलो मीटर दूर कोचिंग करने चला गया वो वही के एक हॉस्टल में रहने लगा और मेहनत से पढ़ने लगा शुरू में उसने बहुत मेहनत से पढ़ाई की फिर उसकी मुलाकात उसी हॉस्टल में रहने वाले संजू और रोशन से हुई। संजू और रोशन बहुत ही अमीर परिवार से थे संजू के पिता हीरा व्यवसायी थे और रोशन के पिता सर्राफ (ज्वैलर्स ) थे।

दोनों जितने रूपए चाहते घर से माँग लेते उन्हें कोई भी आर्थिक समस्या नहीं होती थी दोनों कोचिंग जाते लेकिन वहाँ बैठ कर फालतू की बातें करते दोनों बहुत मस्त ज़िंदगी बिता रहे थे वो जब भी रोहन को पढ़ते देखते उनका बस उसका मन हटाने के लिए कहते अरे बहुत पढ़ते हो थोड़ा बहुत आनंद भी लिया करो हमारी तरह धीरे धीरे रोहन पर भी उनकी संगती का असर पढ़ने लगा वो उन लोगो के पास ही क्लास में भी बैठने लगा अब क्या था वो भी उन्ही की तरह बातें ज़्यादा और पढ़ता कम था वो दोनों कभी कभी शराब भी पी लेते थे लेकिन रोहन को शराब से डर लगता था।

लेकिन जब संजू का जन्मदिन आया तब संजू ने रोहन से कहा भाई अगर तू मेरा सच्चा दोस्त है तो एक दो घूट पी ले बर्ना मुझे बुरा लगेगा संजू बहुत देर सोचता रहा फिर रोशन बोला रहने दें भाई इसके बस की बात नहीं और यह हमारी दोस्ती के लायक भी नहीं अभी बच्चा है इतने सुनते ही रोहन ने बोतल उठाई और एक बार में ही पूरी पी ली और शराब के नशे में पूरी रात कुछ ना कुछ बोलता रहा अगली सुबह रोहन का नशा जब उतरा तब रोहन को बुरा लगा उसे लगा की उसने गलत किया उसकी पढ़ाई भी नहीं हो पा रही है। वो एक दो दिन संजू, रोशन से दूर रहा लेकिन वो दोनों दूर नहीं रहना चाहते थे वो उसके पास आये और बोले भाई इतना दूर दूर क्यों भाग रहे हो।

अगर तुम चाहते हो की हम तुमसे ना बोले तो ठीक है नहीं बोलेंगे रोहन बोला ऐसी बात नहीं है लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगा जो उस रात मैने शराब पी मुझे नहीं पीनी चाहिये थी यार मेरे पापा के ज़्यादा रूपए नहीं है पता यार मैं पढ़ना चाहता हूँ इतना सुनते ही दोनों बहुत तेज़ हँसे बोले दोस्त हम भी पढ़ना चाहते है और पढ़ भी रहे है लेकिन पूरे दिन किताबो में घुस कर भी कुछ नहीं हो सकता समझे इस आदित्य को देखो तीन साल से दिन रात तैयारी कर रहा है लेकिन नहीं हुआ इसीलिए हम मज़े ले कर पढ़ते है रही बात शराब की तो हर किसी को पहली बार पीने के बाद तुम्हारी तरह ही लगता है।

इसीलिए ज़्यादा नहीं सोचो और हाँ अगर तुम्हे हम अच्छे नहीं लगते तो बोल दो हम तुमसे नहीं बोलेंगे इतना सुनते ही रोहन बोला अरे नहीं ऐसा नहीं है तुम लोग अच्छे हो तो बस मैं ऐसे ही सोच रहा था रोहन तुरंत ही बोल पड़ा आज नई फिल्म लगी है अगर कहो तो देखने चले रोहन ने पहले मना किया फिर उन दोनों की ओर देखते हुए हाँ बोल दिया शाम को 6 से 9 वाले शो में तीन चले गए वहाँ तीनो ने फिल्म देखी और फिर पूरा शहर घूमते हुए रात 12 बजे अपने कमरे में पहुँचे और सो गए रोशन को सिगरेट पीने की लत थी वो बिना सिगरेट के रह नहीं पाता था कोचिंग में 4 घंटे बिना सिगरेट के काटना किसी सज़ा से कम नहीं थे धीरे धीरे रोहन को भी आदत लग गयी रोहन के खर्चे बढ़ चुके थे।

रोहन अपने पिताजी को फोन करता और कभी किताबो के बहाने से या कभी किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए फीस के लिए रूपए माँगने लगा पिताजी बेचारे अपने सभी खर्चे रोक कर रोहन को रूपए देते और जब भी पढ़ाई की बात पूछते तो रोहन का एक ही ज़वाब होता बहुत अच्छी चल रही है इससे पिताजी संतुष्ट हो जाते साल के अंत में जब नीट की परीक्षा का परिणाम आया उसमे रोहन की बहुत ख़राब स्थिति हुई उसके नम्बर बहुत कम आये उससे ज़्यादा संजू के आये लेकिन तीनो के नम्बर ऐसे नहीं आये जिससे उन्हें कोई सरकारी या अच्छा प्राइवेट संस्थान अपने यहाँ प्रवेश दे चूँकि संजू के पिता के पास बहुत पैसा था तो उसने किसी अच्छे प्राइवेट संस्थान में पेड सीट पर प्रवेश की बात कर ली उसने रोहन और रोशन से भी अतिरिक्त धन देकर प्रवेश की बात कही रोशन के पास भी बहुत रूपए थे उसने अपने पिता को समझाया और प्रवेश ले लिया अब बचा रोहन वो क्या कहता उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।

फिर उसने संजू के समझाने पर अपने पिता से बात की। रोहन अपने पिता से बोला मैं जानता हूँ मेरे नम्बर अच्छे नहीं आये है लेकिन मैं डॉक्टर बनना चाहता हूँ मेरे दोस्तों के पिता ने अतिरिक्त धन दे कर उनका प्रवेश करा दिया है वो डॉक्टर बन जायेंगे मैं रह जाऊँगा अगर हो सके तो आप भी कुछ कीजिये रोहन अपने पिता की एक मात्र संतान था तो उसके पिता बोले मेरा जो भी है सब तुम्हारा है मैं बहुत कम वेतन पाता हूँ और तुम्हारी माँ एक प्राइवेट स्कूल में अध्यपिका है हम दोनों के पास इतना धन कहाँ जो उस कॉलेज को दें दें लेकिन यह मकान और गाँव में कुछ ज़मीन है कहो तो इसे बेच दें रोहन बोला नहीं इतने में रोहन की माँ आयी और बोली ऐसा करते है मेरा सारा ज़ेबर और गाँव की ज़मीन बेंच देते है फिर हो जायेगा इसका प्रवेश उस कॉलेज में रोहन के पिता ने ऐसा ही कर के सारी ज़मीन और ज़ेबर बेच कर रोहन का दाखिला करा दिया यह सोच कर की अगर डॉक्टर बन जायेगा तब इससे ज़्यादा ज़मीन और ज़ेबर खरीद लेंगे।

तीनो अब एक ही कॉलेज में डॉक्टर बनने के लिए पहुँच गए वो पढ़ाई कम और इधर उधऱ मस्ती ज़्यादा करते कई बार उन्हें कक्षा से बाहर कर दिया जाता रोहन को जब अपनी ज़मीन और माँ के दिए ज़ेबर याद आते तब दो दिन बहुत गंभीर हो कर पढ़ता और फिर वही मस्ती।

अब इन तीनो की दोस्ती कुछ ऐसे लड़को से हो गयी जो बहुत ही अमीर थे और जो रोज शाम को पार्टी किया करते थे अब रोहन के खर्चे और बढ़ गए जो घर वाले भी पूरा नहीं कर सकते थे रोहन परेशान रहने लगा उसे शराब की लत लग गयी उसने कॉलेज जाना छोड़ दिया और जहाँ भी उसे फ्री की शराब मिलती उन लोगो से दोस्ती करने लगा उसका पढ़ाई में मन ही नहीं लगता पहली परीक्षा में ही वो सभी पेपर में फेल हो गया अब उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे या क्या करे यदि पिताजी को पता चलेगा तब क्या होगा।

माँ क्या सोचेंगी संजू और रोशन भी फेल थे लेकिन वो जानते थे यदि फेल हुए तो अपना व्यवसाय संभाल लेंगे दोनों ने ऐसा ही किया वो दोनों बापस अपने घर लौट गए लेकिन रोहन क्या मुँह लेकर अपने माँ पिताजी के पास जाता इसीलिए रोहन ने आत्म हत्या की सोची और नींद की कई गोली एक पैकेट से निकाली जैसे ही वो सारी गोली उसने अपने हाथ में ली इतने में माँ का फ़ोन आ गया माँ बोली क्या हाल है डॉक्टर साहब इतना सुनते ही रोहन बहुत तेज़ रो पड़ा रोहन की माँ रोहन के रोने की आवाज़ सुन डर गयी बोली क्या हुआ मेरे बेटे ऐसे क्यों रो रहा है रोहन बोला मुझे माफ़ कर दो माँ मैने आपको और पिता जी को धोखा दिया है माँ बोली क्या हुआ पूरी बात तो बता रोहन ने रोते हुए कहा मैं सभी पेपर में फेल हो गया हूँ अब मैं डॉक्टर नहीं बन पाऊँगा इतना सुनते ही माँ के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी माँ ने खुद को सँभालते हुए कहा कोई बात नहीं फिर मेहनत करना रोहन बोला नहीं मैं अब आपको और कष्ट नहीं देना चाहता इसीलिए मैं आत्म हत्या करने जा रहा हूँ मुझे माफ़ कर देना माँ चिल्लाई पागल मत बनो।

तुम्हारे सिवा हमारा कोई नहीं है गलती हमारी भी है हमने तुम पर ध्यान नहीं दिया सिर्फ रूपए दिए और फिर तेज़ से चिल्लाई रोहन के पापा जल्दी आओ देखो रोहन क्या कह रहा है रोहन के पिता ने जल्दी से फ़ोन पकड़ा और कहा क्या हुआ बेटा रोहन ने उन्हें सब कुछ बता दिया की वो शराब सिगरेट सब पीने लगा है उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता अब वो पढ़ नहीं सकता और वो सभी पेपर में फेल भी हो गया है।

रोहन के पिता ने उसे समझाया की तुम पढ़ाई में फेल हुए हो ज़िंदगी में नहीं मेरी बात मानो तुम बहुत अच्छे रहे हो पढ़ाई में कोई बात नहीं अगली बार मेहनत करना ज़रूर सफल होंगे रोहन बोला अब मैं आपको और परेशान नहीं करना चाहता इसीलिए मैं अब मरना उचित समझता हूँ।

रोहन के पिता फ़ोन पर रोते हुए बोले तू मेरा आखिरी सहारा है अगर तू डॉक्टर नहीं बना तो क्या हुआ कुछ तो बन ही सकता है लेकिन तू मुझे अकेला छोड़कर जाना चाहता है तो चला जा शायद मैं कुछ गलत कर्म किये होंगे जो मुझे इतनी बड़ी सज़ा देगा तू इतना सुनते ही रोहन ने सारी गोलियाँ फेंक दी और अपने पिता से बोला मुझे माफ़ कर दो मैं डॉक्टर नहीं बन सकता लेकिन एक अच्छा बेटा बनूँगा और कभी ज़िंदगी में दोस्त नहीं बनाऊँगा।

रोहन ने एस एस सी की तैयारी शुरू की और एक साल में ही इनकम टैक्स में बाबू बन गया और शान से अच्छा जीवन जीने लगा उसके पिता जी फक्र के लोगो से कहते मेरा बेटा इनकम टैक्स विभाग में है। 

शिक्षा

अच्छा वातावरण और अच्छी संगति ही आपकी सफलता में सहायक होते है हमेशा अच्छे लोगो से ही मित्रता करना चाहिये क्यूँकि एक गलत व्यक्ति आपकी दिशा बदल कर आपको कुमार्ग पर ले जा सकता है और हर अभिभावक को अपने बच्चे के क्रियाकलाप पर ध्यान रखना चाहिये। 


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