वो भी तो बेटी है
वो भी तो बेटी है
गीता की शादी में तकलीफ़ थी,कारण था उसका विकलांग होना। कोई भी अच्छा लड़का उसे अपनाता कैसे ?
काम करने में बेहद खूबसूरत हर चीज़ में आगे बस दौड़ नहीं पाती थी।
पीसीएस बनने का सपना गीता की ज़िंदगी का सबसे बड़ा सपना था, वो जी जान से दिल लगाके मेहनत कर रही थी लेकिन उसकी शादी जैसे तैसे तय हो गई। पिताजी बोले अब पढ़ाई छोड़ो मुश्किल से एक लड़का मिला है, शादी हो गई और गीता ने पढ़ाई भी छोड़ दी।
गीता अब ससुराल में नई थी,जेठ, जेठानी, सास, ससुर और एक ननद, गीता
को पति ने शादी से पहले कई सपनें दिखाए थे जो अब गीता उन्हें मुक्कमल होने का सोचती थी।
लेकिन ससुराल आयी तो सास ने कहा कि अभी कहाँ पढ़ोगी लिखोगी अभी तो शादी हुई है। गीता चुप रही।
उसकी उसकी ननद से बहुत पटती थी । वो एम एस सी फाइनल ईयर में थी। गीता और उसकी ननद वर्तिका की बहुत पटने लगी, वर्तिका को भी पीसीएस बनने का ख्वाब था, दोनों ननद भाभी में बहनों जैसा प्रेम हो गया था।
गीता और वर्तिका इतनी घुल मिल गयीं थी कि उनको ये भी याद नहीं रहता कि वो दोनों बहनें नहीं ननद और भाभी हैं।
सास की डाँट से वर्तिका हमेशा अपनी भाभी को बचा लेती और अपनी माँ को भी समझाती।
गीता की जेठानी को वर्तिका बिल्कुल पसंद नहीं थी जैसा हर ननद भाभी में होता है।
वर्तिका को भी गीता की जेठानी से कोई लगाव नहीं था। वर्तिका पढ़ना चाहती थी, पीसीएस की तैयारी करना चाहती थी, उसने माँ से ज़िद की और कोचिंग सेंटर जॉइन कर लिया। 3-4 घंटे के लिए अब वर्तिका घर से बाहर रहने लगी जिससे गीता का मन अब घर में कम लगने लगा। वर्तिका से जब गीता ने ते बात बताई तो वर्तिका अपने भइया से बोली।
"भइया भाभी को भी कोचिंग करने दो न वैसे भी भाभी भी पीसीएस की तैयारी कर रही थीं शादी से पहले"।
लेकिन गीता के पति संजय ने मना कर दिया।
गीता थोड़ी दुखी हुई लेकिन उसने अपना भाग्य समझ कर कुछ नहीं कहा।
वर्तिका ने गीता के साथ अपनी कोचिंग की पढ़ाई बाँटनी शुरू कर दी। दोनों मिलकर खूब पढ़ती थी। संजय के आते ही वर्तिका झट से गायब हो जाती थी।
धीरे धीरे समय बीतने लगा लेकिन वर्तिका का सिलेक्शन नहीं हो पाया।
घरवालों ने उसका ध्यान हटाने के साथ साथ शादी के लिए लड़का देखना शुरू करदिया। भाग्य से लड़का आईएस ऑफिसर था। शादी धूमधाम से हुई और जीवन कटने लगा।
वर्तिका अब ससुराल की बहू थी साथ में अमर गुप्ता आईएस की धर्मपत्नी। वो खुश थी पर गीता को बहुत याद करती थी। गीता भी उसे बहुत याद करने लगी। सबकुछ पानी की तरह बह रहा था कि एक दिन वर्तिका के पति अमर का एक्सीडेंट हो गया और उसकी मौत हो गई।
घर में मातम था, वर्तिका को लोग जली कटी सुनाते पति को खा गई कुलटा है जाने क्या क्या ?
गीता भी बहुत उदास रहने लगी। किसी ने संजय को सलाह दी कि उसे वर्तिका की नौकरी अमर की जगह लगवा देनी चाहिए जिससे उसे मायके में रखने से भी बच जाएंगे वो लोग और वो भी खुश रहेगी। गीता को वर्तिका के साथ हो रहे व्यवहार से अच्छा नहीं लग रहा था। जहाँ एक तरफ़ जेठानी ताना मारती कभी पड़ोसी।
वर्तिका को घर के लोगों ने काफी समझाया, वो तैयार हो गई और ऑफिस चली गई।
कुछ दिन बाद एक चिट्ठी गीता के नाम से आई। उसमें लिखा था कि गीता को आईएएस की नौकरी की परीक्षा के लिए ऑफिस बुलाया गया है। संजय गुस्से से भर गया। वो चिल्लाया।
वर्तिका सामने ही खड़ी थी। वो बोली-"भइया भाभी विकलांग हैं सोचिये कितने सपनों का गला घोंटकर वो जी रही हैं जीवन भर से इस घर में भी कितने सपने लेके वो आईं थीं। मैं तो फिर भी ठीक ठाक हूँ शरीर से कुछ भी कर लूँगी। जैसे मैं इस घर की बेटी हूँ वो भी तो हैं हम दोनों में फर्क क्यों ?
सब चुपचाप खड़े थे, गौरी ने वर्तिका को गले से लगा लिया। आज ननद भाभी खूब गले लगकर रोयीं।