वक्त तो लगेगा न!
वक्त तो लगेगा न!
रिद्धि और साहिल साथ काम करते हुए एक दूसरे के करीब आए। उन्होंने जिन्दगी एकसाथ गुजारने का फैसला भी कर लिया।
रिद्धि साहिल को मम्मी पापा से मिलवाने लाई। दोनों उससे मिलकर बहुत प्रसन्न हुए। साहिल और पापा तो इतना घुल मिल गए जैसे बरसों से एक दूसरे को जानते हों। रिद्धि ने पापा को इतना खुश कम अवसरों पर देखा था। पर मम्मी ने साहिल से कितना कुछ पूछ डाला जो रिद्धि को नहीं भाया। उसके जाने के बाद रिद्धि ने आशा भरी नजरों से उन दोनों से पूछा
" कैसा लगा आप दोनों को साहिल?"
पापा ने तो प्रंशसा के पुल बाँध दिए पर मम्मी? आखिर चल क्या रहा है इनके दिमाग में?
रिद्धि ने प्रश्नवाचक दृष्टि उन पर डाली तो बोलीं
"लड़का तो अच्छा है। पर अपने घरवालों से कुछ ज्यादा प्यार करता है। उन्हें छोड़कर अलग नहीं हुआ तो सारी जिन्दगी तुझे ससुराल में खटना पड़ेगा।"
सुनते ही पापा आग बबूला हो गए
" क्या सिखा रही हो बेटी को? जो तुमने मेरे साथ किया वही शिक्षा बेटी को दे रही हो?"
"आप चुप ही रहिए। हम अलग नहीं हुए होते तो अभी तक उस परिवार में पड़े होते, जहाँ हमारे हिस्से दो छोटे छोटे कमरे थे। हिस्सा माँगा तो व्यापार भी चमक गया, आलीशान घर भी बन गया। तारीफ तो कभी करोगे नहीं, बुराई ढूँढते रहना।"
मम्मी ने तेज आवाज में कहा। पापा दर्द भरी आवाज में बोले
"तुमने मुझसे क्या छीन लिया, तुम कभी समझ ही नहीं पाईं। स्वार्थ का चश्मा चढ़ा रहा तुम्हारी आँखों पर।"
मम्मी फिर शुरू हो गईं
"सुखी रहना है तो इनकी बातें मत सुनना। इनका तो व्यापार था बँटवारा आसान नहीं था, फिर भी मैंने करा लिया। तुम दोनों नौकरी करते हो। जब चाहो अलग हो जाना।"
"पर अलग होना क्यों है? मेरा परिवार फिर भी बड़ा था, मातापिता और तीन भाई सपरिवार एक घर में रहते थे, साहिल की एक बहन है वह भी विदा हो जाएगी। फिर माँ बाप और यही दोनों रहेंगे।"
"अरे हमारी भी एक ही बेटी है। उन लोगों को देखती रही तो बुढ़ापे में हमारा ख्याल कैसे रख सकेगी?"
रिद्धि जानती थी मम्मी स्वार्थी है पर इतनी दूर की सोच पर उसे आश्चर्य हुआ। हँसकर बोली
" छोटी बच्ची नहीं हूँ। अपना भला बुरा समझती हूँ। साथ में रहना है या अलग, निर्णय मेरा होगा"
साहिल के घरवालों को रिद्धि पसंद आ गई। जबतक वे विवाह बंधन में बँध नहीं गए मम्मी लगातार उकसाती रहीं। पापा ने एकांत में कहा
"बेटा बिना वजह परिवार तोड़ने का प्रयास मत करना। इससे तुम्हारा अहम भले संतुष्ट हो जाए पर साहिल तुम्हें माफ नहीं करेगा, जैसे मैं तुम्हारी माँ को नहीं कर सका।"
"साहिल माफ नहीं करेगा ये सोचकर बिना बात दब भी तो नहीं जाऊँगी न?"
पापा को लगा कुछ कहना बेकार है। मम्मी ने चुपके से सब सुना, वह संतुष्ट थीं।
साहिल की मौसी ने जबसे रिद्धि के मम्मी पापा को देखा था वह बेचैन थीं।
मौका पाकर अपनी बहन से बोलीं
"यही परिवार मिला तुम्हें साहिल के लिए?"
"क्या हुआ दीदी? कितनी प्यारी तो है बहू"
"पर इसकी माँ बहुत तेज है। मेरे पड़ोस में रहते थे संयुक्त परिवार में। इसकी माँ ने पूरा घर तोड़ दिया। घर से विवाह तक में नहीं बुलाया
ये सुनकर साहिल की माँ का दिल धड़क गया। साहिल माँ की उदासी भाँप गया। पूछने पर माँ ने सब कुछ बताया। साहिल ने विश्वास दिलाते हुए माँ को धीरज रखने को कहा।
रिद्धि और साहिल के हनीमून से लौटने के बाद जिंदगी पटरी पर लौट आई।
एकदिन साहिल की बहन मृणाल ने कॉलेज फंक्शन में पहनने के लिए रिद्धि की साड़ी माँगी
रिद्धि ने पूछा
"तुमने पहले कभी साड़ी पहनी है?"
मृणाल के न कहने पर वह छूटते ही बोली
"तो सत्यानाश करने के लिए मैं अपनी साड़ी दूँ? गिर पड़ी तो साड़ी तो मेरी फटेगी न?"
बात हँसकर कही गयी लेकिन दिल तोड़ने वाली थी। मृणाल उत्तर देती कि माँ बोल पड़ीं
"ठीक कह रही है रिद्धि! तुझे आदत नहीं है न? मेरी पहन ले कोई"
मृणाल का उतरा चेहरा देखकर रिद्धि को लगा कि उसने गलती कर दी। परन्तु मम्मी को बताया तो उन्होंने खुशी जताई।
साहिल ने माँ और मौसी के साथ एक योजना बनाई।
मौसी ने सप्ताह के लिए नए जोड़े को अपने यहाँ बुलाया।
चार घंटे का सफर था। मम्मी का फोन आया, रिद्धि शहर का नाम बताती कि साहिल बोल पड़ा
"सासुमाँ आप एक हफ्ते बाद रिद्धि से सब हाल लेलेना।"
इसके बाद उन्होंने सप्ताह भर फोन नहीं किया।
मौसी के घर खूब सत्कार हुआ। बराबर में आलीशान तिमंजिला कोठी थी। रिद्धि को मौसी ने बताया कि पड़ोसियों ने डिनर पर बुलाया है तो रिद्धि हैरान रह गयी।
वहाँ जितना अपनापन और प्यार पाया, वो कल्पना से कहीं परे था। घर में हमउम्र युवक युवतियाँ थे जो बहुत प्रेम से मिले। ऐसा लगा जैसे वह कबसे सबको जानती है। एक बुजुर्ग ने आकर रिद्धि के सिर पर आशीर्वाद का हाथ फेरा तो रिद्धि स्वयं को रोक न सकी और बोली
"ऐसा क्यों लगता है कि आप सबको जानती हूँ मैं। लगा जैसे मेरे पापा ने हाथ रखा।"
"क्योंकि ये तेरे बड़े पापा और मैं छोटा पापा हूँ।" दूसरे बुजुर्ग ने आकर कहा।
ओह तो वह अपने घर में खड़ी है और अपनों को जानती भी नहीं? तभी एक वृद्धा ने पास बुला कर गले लगा लिया
"मैं तेरी दादी हूँ। तेरे दादा तो तेरे पापा की राह देखते चले गए। मुझे तू उससे मिलवाएगी न?"
रिद्धि की आँखों से आँसू बहने लगे। इतने प्यारे परिवार से वह दूर थी? पापा सच कहते हैं कि मम्मी ने उनसे क्या क्या छीन लिया। सप्ताह भर अपने परिवार के साथ बिताकर जब वह वापस आई तो परिवार का महत्व उसके सामने स्पष्ट था।
मृणाल आईने के सामने माँ की एक साड़ी कन्धे पर फैलाए खड़ी थी। रिद्धि पूछ बैठी
"कहीं जाने की तैयारी है?"
"हाँ भाभी सहेली की बहन का विवाह है।"
"तो ये फीका रंग पहनोगी? रुको जरा।"
रिद्धि अपने कमरे में जाकर वही साड़ी निकाल कर लाई और मृणाल के कन्धे पर फैलाकर पिछली बार के लिए क्षमा माँगी।
साहिल और माँ बाहर खड़े मुस्का रहे थे। आखिर नए घर को परिवार मानने में थोड़ा वक्त तो लगेगा ना?