वक़्त ने सब सिखा दिया
वक़्त ने सब सिखा दिया


अगर मैं अपनी बात करूं, तो मैंने जिंदगी में कभी इतना बुरा वक़्त नहीं देखा, हमेशा से ही जो चाहा वो ही पाया और एक आशा हमेशा जीने की खुशी देती रही, मैं एक स्टूडेंट हूं जो अपनी पढ़ाई के लिए अपने घर से दूर, दूसरे शहर में हॉस्टल में रहती हूं। हाल ही की बात है जब होली का त्यौहार ख़तम हुआ, छुट्टियां मना कर घर से वापस आयी, और अगले दिन खबर मिली कि लॉकडाउन हो गया है जो जहाँ है वहीं रहेगा, ना कोई आ सकता है ना कोई का सकता है, बस फिर क्या था इससे बुरा और क्या हो सकता है जबकि हमारी मां ने बोला भी कि एक दिन और रुक जा पर हम नहीं माने और निकल पड़े अपने हॉस्टल के ओर। लॉकडाउन हुआ तो हॉस्टल की लगभग सारी लड़कियाँ जो नज़दीक रहती थी वो अपने घर चली गई, बचे हम और मेरी कुछ एक दो सहेलियां, जो कोई यूपी से था तो कोई बिहार से, पूरे हॉस्टल में गिनचुन के 4-5 लड़कियाँ ही रह गई।
हमें हॉस्टल में ही बन्द कर दिया गया ,हम बाहर भी नहीं जा सकते थे, और रही बात खाने की तो हमने पूरे 3 महीने तक एक ही सब्जी खाई, हम तीन महीने तक हॉस्टल में क़ैद रहे, यहां तक हॉस्टल में सफ़ाई कर्मचारी का आना भी मना हो गया था, हम खुद ही हॉस्टल कि पूरी सफ़ाई करनी पड़ती थी, जैसे तैसे दिन कटे सच कहूं तो बहुत मुश्किल लगा अपने घर से दूर रहना, ऐसे वक़्त में अपनों की जो याद आती हैं वो तो बहुत ही अलग ही हो जाता है, पूरे तीन महीने बाद घर वापस जाने के लिए हमारे लिए इंतज़ाम किया गया, जब बाहर निकले तब पता चला जो हम झेल रहे है वो तो कुछ भी नहीं है, हमारे पास फिर भी छत तो थी , खाने को भी था ही , पर जो मज़दूर लोग की हालत थी, वो अलग ही मंजर था जब हमने अपनी आंखों से जो बेरोजगार लोग है या जो मजदूर है अपने बीवी बच्चों के साथ घर पैदल जाते हुए देखा। सचमुच यह सच है कि दूसरों का दुख देखो तो अपना हमेशा कम लगेगा। और तब से इसे लॉकडाउन ने मुझे सबसे पहले अपनों कि होने की वैल्यू बताई और दूसरी चीज यह हमेशा हर अच्छे या बुरे वक़्त के लिए तैयार रहो क्योंकि पता नहीं कब क्या हो जाए।