STORYMIRROR

Kiran Bala

Drama

3  

Kiran Bala

Drama

विवशता

विवशता

4 mins
559

अब तो जी चाहता है कि ये नौकरी वौकरी छोड़-छाड़ कोई और काम कर लिया जाए। क्या सोचकर इस पेशे में आए थे कि देश की नींव को सुदृढ़ करने में अपना योगदान देंगे किंतु ये नहीं पता था कि महज एक कठपुतली की भाँति प्रशासन के इर्द-गिर्द घूमना पड़ेगा।

(प्रेरणा ने अपने भीतर की पीड़ा को अभिव्यक्त करते हुए कहा ) कहना तो तुम्हारा भी ठीक ही है, मधु ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा।

अरे! ऐसा क्यों कह रही हो, सरकारी नौकरी ऐसे ही थोड़ी मिल जाती है,अब हमें ही देख लो पूरे दस वर्ष हो गए हैं कॉन्ट्रेक्ट पर काम करते -करते अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है बस दिलासा ही मिलता है कि कुछ जरूर करेंगे... प्रकिया जारी है।

तुम्हारा क्या,तुम छोड़ भी सकती हो, तुम्हारे पति अच्छा खासा कमा लेते हैं, मुझसे पूछो कैसे अकेले ही गृहस्थी का बोझ उठाए फिर रही हूँ। (वहीं बैठी मेघना ने भी अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की)

प्रिंसिपल मैम ने सबको अभी मीटिंग के लिए बुलाया है (चपड़ासी ने आकर सन्देशा दिया)

जरूर कोई नया फरमान होगा, अभी -अभी मैम डी.ई. ओ.आफिस से मीटिंग करके जो आई हैं (स्टाफ रूम में खुसर -फुसर शुरू हो गई थी)

देखिए हम सभी लोग अपनी पूरी निष्ठा से अपने कर्त्तव्य का पालन कर रहे हैं किंतु हमारे प्रयासों में अभी भी कमी है, कल ही एक टीम विद्यालय निरीक्षण हेतु आ रही है, इसलिए आप सभी अपने -अपने प्रोजेक्ट के साथ तैयार रहें... PISA, PHOENIX ,NISHTHA और लर्निंग आऊटकम के रिकार्ड को अच्छी तरह से तैयार कर लें।

और हाँ, बच्चों के पाठन के समय आंकलन का प्रतिशत आप सभी ने निकाल लिया हो तो उसकी रिपोर्ट भी तैयार करके आज ही भेज दो। यह अत्यधिक जरूरी काम है ...

एक बात तो मैं कहना ही भूल गई, स्वच्छता पखवाडे़ का आरम्भ भी हो चुका है अतएव जिनको जो भी क्रियाकलाप करवाने को कहा है वो उसी प्रकार अपनी -अपनी रिपोर्ट तैयार करके भेजें। प्रतिदिन के हिसाब से ये सब समय पर हो जाना चाहिए..... (न जाने इस तरह के कितने ही निर्देश प्रधानाचार्या जी ने दे डाले थे)

आफिस से बाहर आते ही फिर से वही चर्चा शुरू हो गई|

विभाग से दिशा निर्देश तो आ जाते हैं किंतु कोई ये नहीं देखता चौहत्तर बच्चों की कक्षा में एक -एक बच्चे की गतिविधि पर पूर्णतया:ध्यान देना कहाँ तक संभव है?

सभी विषयों के अध्यापन हेतु अध्यापकों की संख्या भी कम है, उस पर न जाने कितने रिकॉर्ड तैयार करने पड़ते हैं। जो हैं भी उनमें से कोई न कोई किसी न किसी सैमिनार में भेज दिया जाता है तो कुछएक स्थाई तौर पर बी. एल. ओ. की ड्यूटी पर तैनात होते हैं।उस पर फिर ये कि स्लेबस पूरा नहीं हुआ, नतीजा अच्छा नहीं आया।

(हर कोई अब इस चर्चा में उलझ गया था)

अरे भाई, ले दे ये बीस मिनट का मध्यान्तर ही बचता है तो उसमें भी कभी कभार मीटिन्ग हो जाती है (रमेश ने कहा)

अब किया भी क्या जा सकता है ? कोई ऐसा काम बचा भी है,जो हमसे न करवाया गया हो... जो हमारा करने का काम था, उसे हमें अपने हिसाब से क्यों नहीं करवाने दिया जाता ? अन्य कार्यों के लिए दूसरे लोग नियुक्त क्यों नहीं किये जाते? वैसे बड़े -बड़े दावे किये जाते हैं,

बेरोजगारी हटाने के....( विनोद ने बात को बीच में काटते हुए कहा)

इस तरह के फरमान जारी करने वालों से कोई जाकर कहे कि चार दिन तुम हमारी जगह ये सब करके दिखाओ....कैसा लगता है सत्तर से अधिक बच्चों को एक साथ पढा़ना ? जो तरीके बताए जाते हैं वो केवल कम विद्यार्थियों वाली कक्षा में ही लागू हो सकते हैं।(अजय ने बात बीच में काटते हुए कहा)

अरे भाई ! हम तो केवल प्रशासन के हाथ की कठपुतलियांँ हैं, जिधर नचाएंगे उधर ही नाचना पड़ेगा...

ऐसे में शिक्षा की नींव कमजोर न पड़े तो क्या हो? विभाग भी क्या करे... वो तो खुद सरकार के हाथों की कठपुतली है (विनोद ने अपना पक्ष रखा)।

अब तो शिक्षा कागजी कार्यवाही में ही सिमट कर रह गई है,दो चार फोटो खींच लो, वीडियो बनाकर डाल दो बस अपना रिकॉर्ड पूरा रखो.... ऐसे में शिक्षा के गिरते स्तर की किसे परवाह है !


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama