विवाह
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तो समझ ही नहीं आता कि तुम्हें शादी से परहेज क्यों है ?"सुधा ने अपनी बेटी मेहुल से पूछा।
"मुझे शादी नही करनी मां।मैं अपनी आजादी से खुश हूं।ये शादी का लडडू खाकर अपनी जिंदगी का टेस्ट नही बिगाडना नहीं चाहती।"मेहुल ने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा।
"मेहुल शादी का मतलब , गुलामी नहीं होता।हमने की तो क्या हम आजादी से नही रह रहे।हमारा तो कोई टेस्ट नही बिगडा।" सुधाजी ने मेहुल को अपना उदाहरण देते हुए कहा।
"सच में मां।आप जो कह रही हैं , क्या ईमानदारी से कह रही हो।मैं मानती हूं उस वक्त आपके पास आपकी रजामंदी की चॉइस नहीं थी, लेकिन मेरे पास है।आप किस आजादी की बात कर रही है , जहां आपको अपनी पसंद का खाना बनाये बरसो हो गये , क्योंकि पापा को आधी वो चीजे पसंद नही खाने में जो आपको पसंद हैं।आप अपने मायके जाने के लिये अपने ही मां बाप से मिलने के लिये परमिशन मांगती हैं, तब ही जा पाती हैं। आज भी जब वो हां बोलते हैं, जहां आपके निजी चाॅइस के कामों को दरकिनार होना पड़ता है बार बार क्योंकि आप सबकी चाॅइस को अपनी मान लेती हैं।क्या कभी पापा ने आपसे परमिशन मांगी दादा दादी से मिलने के लिये ?क्या उन्होंने अपनी इच्छा आपके लिये छोड़ी।आप तो अपनी पसंद के रंग भी नही पहन पातीं।नही बाबा मुझसे नहीं हो पायेगा और वैसे भी आप ही कहती हो ना पति पत्नी के रिश्ते की सांझेदारी बराबर की होती है।तो ये बराबरी सिर्फ ख्याली पुलाव सी क्यों हो जाती है किसी लड़की के लिये।"मेहुल ने अपने मन की बात रखी मां के सामने।
"ये कोई नई बात तो है नहीं।ऐसे सोचने लगे तो दुनिया में शादी ही ना हो।तो क्या शादी ना करने का मन बनाकर बैठी हो।"सुधा ने निरुत्तर होने पर , मेहुल से सवाल पूछा।
"कोई नई बात तो नहीं है अपनी आजादी खोना, ऐसा ज्ञान एक औरत पीढी दर पीढी दूसरी औरत को देती है। ऐसे ही एक पुरूष भी पीढी दर पीढी उसके अस्तित्व को दबाना कोई नई बात नहीं समझ कर उसको एक बीवी की परिधि से ऊपर उठने ही नही देते। मैं शादी एक ऐसे इंसान से करुंगी जिसे हमसफर की तलाश हो बीवी की नहीं।"मेहुल ने अपनी बात को स्प्ष्ट तरीके से कहा।सुधा को मेहुल की बातों में एक मजबूत औरत की झलक नजर आ रही थी।
"मतलब कि लडडू खाना है...."सुधाजी ने मुसकुराते हुए मेहुल की तरफ देखा...."लेकिन खाकर पछताना नहीं है। "कहते ही दोनों ठहाके मारकर हंसने लगीं।
दोस्तों , मेहुल की कही गई बात आज के वक्त की लडकियों की सोच को दर्शाता है।मेरी व्यक्तिगत राय भी इस बात का समर्थन करती है कि अब हम अपनी सोच मे एक मां होने के नाते अपने बच्चो के लिये हमसफर की तलाश करे एक अच्छे पति और अच्छी पत्नी की तलाश की धूरी से निकलकर। शादी का मतलब आपसी सामंजस्य, आपसी सहमती, बराबरी, मित्रता सहभागिता होना चाहिये ना कि गुलामी और दबाईश किसी भी पक्ष के लिये। आपकी इस विषय पर क्या राय है ?अवश्य बताइयेगा।
