विनाश काले विपरीत बुद्धि
विनाश काले विपरीत बुद्धि
आज मोनी बहुत खुश थी। आखिर क्यों ना हो उसको मन मांगी मुराद मिल गई थी। कितने दिनों से वह पीछे पड़ी थी, बाहर जाकर, रह कर पड़ने की इजाजत मिल गयी थी। वह अब आजाद परिंदा होगी। कोई भी रोक-टोक नहीं होगी। जो मर्जी का चाहेगी, वह करेगी।
पापा के डिसिप्लिन से तंग आ गई थी। सब काम टाइमटेबल से करना पड़ता था दोस्तों के साथ बाहर भी नहीं जा सकते थे। उसने पढ़ाई का कितना हवाला दिया तब जाकर पापा माने और बाहर भेजने के लिए तैयार हो गए।
वह मम्मी से कुछ सामान लेने उनके कमरे में गई। तो उसने देखा मां, पापा बात कर रहे हैं। मोनी उनकी बातें सुनने लगी। पापा कह रहे हैं, नही मैं अपनी बेटी का और दिल नहीं दुखा सकता। इसलिए उसे मजबूरी में भेजना पड़ रहा है।और यह उसके भविष्य के लिए भी अच्छा होगा। मै इतनी सख्ती इसलिए करता था कि उसका भविष्य सुधरेगा। आजकल इतना जमाना खराब है कि हम बच्चों को खुला छोड़ नहीं सकते। खराब संगति मिल जाती है। मगर मोनी पर मुझे पूरा विश्वास है मैंने उसे इतने अच्छे संस्कार दिया है। कि वह सही राह पर चलेगी। इतना सुनते ही मोनी सोचने लगी पेरेंट्स तो ऐसा ही सोचते है। वह हमें बच्चा समझते है मगर हम भी समझदार हो सकते हैं। हमें भी तो आजादी चाहिये।
और समान ले जाकर अपनी पेकिंग करने लगी।