वीरांगना का सफर
वीरांगना का सफर
जब ईश्वर से सृष्टि बनायी तब वह स्त्री की रचना करना भूल गये। बाद में उन्हें अपनी भूल ध्यान आयी। फिर नारी की रचना की। नारी ने सृष्टि को आगे बढाया।
वैसे नारी हमेशा पुरुष की सहचरी रही है। यह नारी का विशाल हृदय ही था कि उसने सब कुछ करते हुए किसी का भी श्रेय नहीं लिया। हमेशा पुरूष को आगे रखा।
पर पुरुष नारी की महानता को भूल गया। उसे कमजोर समझने लगा। पुरुष को भ्रम होने लगा कि वही नारी का रक्षक है। नारी को हमेशा उसके सहारे की आवश्यकता होती है।
सच बात तो यही है कि अधिकांश नारियां भी खुद को भूल गयीं। खुद को कमजोर समझने लगी। पुरुष की गलत बात का प्रतिवाद करने से भी बचती रहीं।
पर आखिर कब तक। एक छोटी सी चिंगारी पूरे गांव को राख कर सकती है। एक बार मन से शक्तिहीनता का भ्रम निकलते ही नारी किसी भी असाध्य को साध्य कर सकती है। केवल तलवार और बंदूकधारी ही वीरांगना नहीं होती हैं। जो अन्याय को देख उसका प्रतिवाद कर सके, जो दूसरी नारियों को भी उसकी शक्ति से परिचित कर सके, वह भी वीरांगना ही होती है।
नवरात्रि का समय। जगह जगह कन्याओं को भोजन कराया जा रहा था। माता रानी की कृपा की सभी को जरूरत होती है। आखिर माता रानी ही तो संसार को पालती हैं। उनकी कृपा के बिना भला क्या संभव है। भगवान राम भी रावण को युद्ध में हरा नहीं पा रहे थे। फिर माता रानी की आराधना से ही वह विजय प्राप्त कर पाये। शुंभ, निशुंभ और महिषासुर मर्दिनी माता की गाथा हर मंदिर और घर में सुनाई जा रही थी।
एक घर में एक वृद्धा माता रानी की उपासना बहुत श्रद्धा से कर रही थी। आखिर उसकी पुत्रवधू दूसरी बार पेट से थी। ठीक है कि पहली संतान सब अच्छी लगती है। एक बार कन्या दे दी। पर इस बार तो पोता ही होना चाहिये। वंश को बढाने बाला ही चाहिये। निश्चित ही माता रानी इतनी निर्दयी नहीं होंगी कि अपनी भक्तिन पर कृपा न करें। पूरे कस्बे में निर्मला देवी का माता की भक्ति में नाम था। जगराता में भक्ति भाव से जब माता के गीत गातीं थीं तब भक्ति के गीत सुनकर भक्त झूमने लगते थे। फिर भी बेटा और बेटी का भेद उनके मन से नहीं मिटा।
आज वह अपनी पुत्रवधू रजनी को डाक्टर को दिखाने ले जा रही थीं। रजनी एक पढी लिखी लड़की थी। जिसके माता पिता ने उसे आरंभ से ही परिवार से मिल जुलकर रहने की शिक्षा दी थी। रजनी इस बात को निभाती आयी थी। उसका विवाह भी उसके माता-पिता ने ही तय किया था। अपनी तरफ से उसने अपने ससुराल जी में कोई कमी न छोड़ी थी। पर शायद एक कमी रह गयी। जब उसे पहली संतान बेटी हुई, तभी से निर्मला देवी का मन उससे कुछ फिर गया। वह तो माता रानी की फिर से कृपा हुई। रजनी दूसरी बार गर्भवती थी। इस बार निर्मला देवी कोई कमी नहीं रखना चाहती थीं। न तो पूजा पाठ में और न ही दूसरे तरीकों में। डाक्टर उनकी जानकारी की थी। उससे गुपचुप बात हो चुकी थी। वैसे तो बेटा ही होगा। पर यदि कुछ कमी निकली तो चुपचाप इसकी भी व्यवस्था कर दी जायेगी। विपत्ति के समय उठाये गये कदम कभी भी अधर्म नहीं होते हैं। आपदधर्म कहलाते हैं।
जहाँ एक तरफ माता रानी की आराधना हो रही थी, वहीं दूसरी तरफ धोखे से रजनी के गर्भ में स्थित माता रानी के प्रारूप कन्या को जन्म से पूर्व ही मारने की तैयारी थी। वहीं कोई और भी इस घटना को सही समय पर रोकने और अपराधियों को सजा दिलाने को तैयार था।
ऐन मौके पर सभी सबूतों के साथ डाक्टर और समस्त स्टाफ को इंस्पेक्टर नंदनी ने गिरफ्तार कर दिया। निर्मला देवी को भी गिरफ्तार किया गया। खुद की सहेली के माध्यम से अपनी सास को गिरफ्तार कराने बाली रजनी को फिर अपनी ससुराल में जगह नहीं मिली।
फिर जन्म हुआ एक वीरांगना का। अकेले खुद का जीवन सफर तय करने में समर्थ, अपनी बेटियों का पालन करने में समर्थ, दुनिया की आलोचनाओं का प्रतिउत्तर देने में सक्षम, बेटियों को बेटों के समान ही मजबूत बनाने में सक्षम, यही तो वीरांगना की पहचान है। धीरे-धीरे अनेकों आलोचनाओं का जबाब देते देते रजनी ने अपनी पहचान बना ली।
निर्मला देवी का अंत समय नजदीक था। आज तक वह अपनी बहू से नफरत करती आयीं थीं। जबकि रजनी के बयानों के बदौलत ही उन्हें अदालत ने संदेह का लाभ दिया था। रजनी की बड़ी बेटी अर्चना डाक्टरी की पढाई पूरी कर चुकी थीं। छोटी बेटी भी एम बी ए की छात्रा थी।
इतने समय बाद रजनी को उसकी सास का बुलावा आया। पुरानी गलतियां भला कैसे सही होती है। फिर भी यदि अंत समय पर उनकी मांफी मांग ली जाये तो परलोक में अधिक कष्ट नहीं झेलने पड़ते। पर क्या रजनी अपनी सास को क्षमा कर पायेगी। पुरानी बातों को भूल पायेगी। मन से किसी के लिये भी कोई दुर्भाव न रखना वीरता की निशानी होती है। रजनी चल दी एक और वीरता का परिचय देने। सास के परलोक गमन से पूर्व उन्हें आश्वस्त करने कि उसके मन में उनके प्रति कुछ भी बुरा नहीं है, एक वीरांगना चल दी।
