वह स्कूटी वाली लड़की
वह स्कूटी वाली लड़की
संजू और मैं उस समय कालेज से अपने कमरे की ओर वापस लौट रहे थे। हम माल रोड पर अल्मोड़ा बुक डिपो के पास पहुंचे ही थे कि एक स्कूटी ने पीछे से आकर संजू को टक्कर मार दी। संजू भड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा और उसके ऊपर वह स्कूटी वाली लड़की। स्कूटी बायीं ओर दीवार से टकराकर रूक गई।
लड़की हड़बड़ाती हुई उठी और संजू से बोली- "आ... आई एम रियली सारी। पता नहीं ये कैसे हुआ ?"
संजू घुटना मलासते हुए उठा- "कोई बात नहीं मैडम। होता है कभी-कभी।"
"ओह, चोट तो नहीं आई आपको ?" लड़की ने संजू के घुटने की ओर देखते हुए कहा।
"नहीं, बस ठीक है। चोट शायद आपको लगी है।" संजू ने लड़की के घुटने की ओर देखते हुए कहा।
"नहीं, मैं बस ठीक हूँ।"
"नहीं, आपकी जींस घुटने के पास फट गई है, तब कह रहा हूँ।"
"नहीं, यह पहले से ही ऐसी है।" लड़की मुस्कुराई।
"ओह।" संजू के भी होठों पर मुस्कान तैर गई।
तब तक मैं स्कूटी खड़ी कर चुका था।
"आपकी स्कूटी की हैड लाइट टूट गई है।" मैंने कहा।
"कोई बात नहीं। जान बची तो लाखों पायें।" लड़की ने स्कूटी में बैठते हुए कहा।
"हाँ, बिल्कुल सही बात है।" संजू ने समर्थन किया।
लड़की ने पुनः संजू की ओर देखकर सौरी कहा और स्कूटी स्टार्ट कर चलती बनी।
लड़की का इस तरह अनायास टकराना संजू के लिए ही फायदेमंद रहा। संयोग से यह लड़की भी कालेज में एम० एस० सी० की छात्रा थी और संपन्न परिवार से भी संबद्ध थी। दोनों की मुलाकात कालेज में हुई और दोनों के बीच दोस्ती हो गई। फायदा इसलिए कह रहा हूँ कि जब भी संजू का मन घूमने को करता, वह शिवानी को फोन करता और दोनों स्कूटी में बैठकर खूबसूरत वादियों में घूमने निकल पड़ते।
संजू इस लड़की के साथ इतना घुल-मिल गया था कि अब उसके बिना उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। एक दिन की बात है। उस समय रात के दो बज रहे थे। उस समय मैं सोया हुआ था। अचानक कमरे में कुछ आवाजें गूंजने लगीं। मैं नींद से जागा तो पता चला कि संजू नींद में 'शिवानी-शिवानी' बड़बड़ा रहा था। शायद उसने कोई सपना देख लिया था।
संजू, शिवानी को अपने घर भी ले गया। ताज्जुब की बात यह है कि उसने अपने घरवालों को भी बता दिया कि वे दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं। घरवालों ने भी उसे कुछ नहीं कहा, लेकिन जब उसके पिताजी को यह पता चला कि लड़की एस० सी० वर्ग की है तो, उन्होंने संजू को खूब खरी-खोटी सुनाई- "साला खानदान का नाम डुबाने पर तुला हुआ है। और लड़कियां नहीं हैं क्या, जो तू नीच जाति की लड़की से ही शादी करेगा ! बेकूफ कहीं का। पढ़-लिखकर कहाँ तो अकल आयेगी साले की बुद्धि बाकी-बाकी भ्रष्ट हो रही है।"
घरवालों के विरोध के चलते संजू ने शिवानी से शादी का खयाल तो त्याग दिया, किंतु दोनों के बीच प्यार अब भी बाकी था।