वह दर्द में भी खामोश थी
वह दर्द में भी खामोश थी
वह बड़े दर्द में थी। कराह रही थी, लेकिन पीड़ा को जता नहीं रही थी। भीतर-ही-भीतर उसे चुपके से पी रही थी। कुछ बोलने का प्रयत्न कर रही थी, लेकिन बोल नहीं पा रही थी। जब उसकी आँखें कुछ मुँदती सी प्रतीत हुई, तो पास बैठे परिजन चिल्ला उठे - "अरी! मुँह खोल, कुछ तो बोल, और ना सही तो अपनी अंतिम इच्छा ही बता दे .. ।"
टूटती साँसों में दबी-घुटी जुबान में - "जब मैं बोलना चाहती थी, किसी ने बोलने नहीं दिया, जब बोलने का अवसर मिला तब… ।"
एक जोर की हिचकी के साथ - अंतिम इच्छा को जहन में दबाए, वह बिना बोले, हमेशा के लिए खामोश हो गयी।