वह भी एक इंसान है
वह भी एक इंसान है
आज राधा जी ने सत्यनारायण भगवान की पूजा रखी थी, सारी औरतें सोसाइटी की इकट्ठा हुई थी। काजल सुरभि को कोहनी मारते हुए "अरे रश्मि जी को देखो.... कैसे कपड़े पहन रखे हैं। पति तो छोड़कर चला गया और उस पर से यह श्रृंगार।" कहकर दोनों मुंह दबा कर हंसने लगी।
सुरभि बोली "हां अपने हिसाब से इनको सजना, संवरना चाहिए। पति तो है नहीं, दूसरी बीवी रख ली। पता नहीं किसके लिए इतना तैयार होती हैं?" कुटिल मुस्कान के साथ हंसी। फिर पूजा में दोनों मगन हो गई। रश्मि जी के कानों में कुछ बातें पड़ रही थी, उनको सुनकर बहुत बुरा लगा। पर उन्होंने अनसुना कर दिया और पूजा में ध्यान लगा लिया।
रश्मि जी दिल्ली शहर की एक सोसाइटी में रहती हैं। उनके पति पवन सालों पहले विदेश नौकरी के लिए गए और फिर वही के होकर रह गए। वहां पर एक विदेशी महिला के प्यार के चक्कर में फंस उसी से शादी कर ली। और भारत आना छोड़ दिए। शुरू में तो एक-दो साल आए। फिर रश्मि जी और अपने बेटे शुभ दोनों को छोड़ दिया। समय- समय पर पैसा भेज देते, पर वापस आना जैसे वह भूल ही गए। रश्मि जी को लगा भी कि अमेरिका जाने का फैसला पवन का बहुत ही गलत रहा। इससे उनके जीवन में एक भूचाल सा आ गया। बच्चे की पढ़ाई व कैरियर के चक्कर में वह अपने पति पवन के साथ शुरू में गई नहीं। अब पवन उनको भूल ही गये। रश्मि जी की जिंदगी एक बोझ सी बन गई थी पर वह अपने बच्चे को देखकर जीती रहीं। उन्होने कुछ ही सालों में अपने बेटे शुभ की शादी कर दी और बहू आशी आ गई। उनका एक 5 साल का पोता भी है। आशी बहुत ही समझदार और होशियार लड़की है। वह अपनी सासू मां के जीवन की दिक्कतों को अच्छी तरह से वाकिफ है और अपनी सासू मां का बहुत ध्यान रखती है। रश्मि जी को बहू से बहुत सम्बल मिला है।
आज सोसाइटी में इस तरह की बातें सुन रश्मि जी फिर से बहुत दुखी थी। पूजा खत्म हो जाने के बाद प्रसाद लेकर रश्मि जी घर आ गईं और अपने कमरे में बैठी पूजा में हुई बातों को सोचने लगी। बहुत दिन से काम वाली भी इस तरह की बातें कुछ बता रही थी। आज उन्होंने खुद ही सुन लिया। वह सुनकर उनको बहुत ही खराब लगा और वह रो रही थीं। आज जख्म फिर से हरे हो गए थे। तभी उनके कमरे में आशी चाय लेकर आ गई और रश्मि जी की नम आँखे देख बोली "मम्मी जी क्या हुआ"
रश्मि जी ने "कुछ नहीं" कह सिर हिला दिया।
" नहीं मम्मी जी"... बताइए? आशी के ज्यादा जोर देने पर रश्मि जी ने बातें बताई। आशी कों जब पता लगा तो उसे बहुत बुरा लगा वह बोली कि वह लोग कौन होते हैं कुछ कहने वाले? उसने कुछ सोचते हुए कहा "ठीक है मैं देखती हूं ।"
"अरे बहू किसी से क्या झगड़ा करना।"
" नहीं मम्मी जी घबड़ाईए नहीं झगड़ा नहीं करुंगी। पर मैं देख लूंगी। कुछ दिन बाद आदि का बर्थडे है। मैं सब आंटियों को बुलाओगी।
" ठीक है जैसा तेरा मन" कह के रश्मि जी चुप हो गई ।
आशी में कुछ दिनों बाद आदि के बर्थडे में सोसाइटी की सभी मम्मी जी की दोस्तों को आमंत्रित किया। साथ में आदि के दोस्तों को। सभी आंटियां सज- धज के आई। उसने भी मम्मी जी को बहुत ही सुंदर डीप नेक का सूट पहनाया। माथे में बड़ी सी बिंदी, कानों में बड़े-बड़े झाले, हाथों में चूड़ी पहनाकर खुले बाल रखकर तैयार होने को बोला। मम्मी जी का यह सब बातें सुनकर ज्यादा तैयार होने का मन नहीं था। पर आशी ने ज़िद करके मम्मी जी को सुंदर सा तैयार कर दिया।
शाम के समय सब मेहमान इकट्ठा हो गए। केक काटा गया। केक खाते- खाते सोसाइटी की कुछ महिलाएं डेक के तेज बजते गाने में रश्मि जी को देख उनके पहनावे को लेकर बुराई करना शुरू कर दी। आशी कों जो आशंका थी, वही हुआ। बर्थडे की तेज गाने में कुछ आंटी लोगो ने जोर-जोर तेज आवाज में बुराई करना शुरू कर दी। प्लान के अनुसार गाना बंद कर दिया गया। सब चुप हो गए। बच्चे डांस करते-करते रुक गए। "रश्मि जी को शर्म नहीं आती " सुरभि आंटी की यह आवाज वातावरण में गूंज गई।
आशी आंटी के पास जाकर पूछी...." आंटी आप क्या कह रही थीं ? मम्मी जी को किस बात पर शर्म नहीं आती।"
" बेटा कुछ नहीं" दूसरी आंटी बोली "अरे बता दे क्यों नहीं बताती... डरती है क्या?"
" नहीं... नहीं कुछ नहीं बेटा" तभी एक छोटा बच्चा, आदि का दोस्त उनके पास ही खड़ा डांस कर रहा था उसके कानों में कुछ बातें पड़ी थी वह बोला "आंटी कह रही थीं... आदमी साथ नहीं रहता तो यह क्यों सजती है ?"
तब आशी ने बोला "आंटी जी मैं आप सब को बताना चाहूंगी, कि मेरी मम्मी जी एक सुहागन है। वह भी एक नारी है। जैसे आप सबको तैयार होने व सजने-सवरने का मन करता है। वैसा ही उनका भी मन करता है। वह भी एक इंसान है। ठीक है मेरे पापा जी ने इन को छोड़कर दूसरी शादी कर ली। इसमें इन का क्या कसूर है? उन्होंने हमें व हमारी मम्मी जी को छोड़ दिया, पर इन्होंने तो किसी को नहीं छोड़ा। सजना- संवरना तो एक सुहागन का अधिकार है। पापा जी वहां खुश हैं। तो मम्मी जी को भी खुश रहने का अधिकार है।"रश्मि जी अपने आंसुओं को नहीं रोक पाईं और वह जोर जोर से रोने लगी।
" मम्मी जी आप मत रोइए इसमें आपकी क्या गलती है।"
तभी उनकी दोस्त सुरभि व काजल भी एक-एक करके आई और उनको सॉरी बोल कर चुप कराने लगी। "माफ कर देना हमें रश्मि यह समाज हम से ही बनता है पर ना जाने हम क्या मानसिकता रखते हैं। यदि पति भी छोड़कर चला जाए तो ना जाने क्यों हम औरत मे ही कमी निकालते है। उस आदमी को कुछ नहीं कहते, और सोचते हैं कि औरत में हीं कोई कमी होगी जो उसे उसका आदमी छोड़ कर चला गया। हम औरतें ही औरतों की दुश्मन है । माफ कर दो मेरी दोस्त" कहकर सुरभि और काजल भी रोने लगी। रश्मि जी ने उन्हें गले लगा माफ कर दिया। आज रश्मि जी को अपने दुखों का पहाड़ बौना सा लग रहा था।
तभी राधा जी मुस्कुराते हुए बोली कि, ठीक है कल सोसाइटी में तीज का त्यौहार है आशी तुम रश्मि जी को अच्छे से तैयार करके नीचे सोसाइटी के झूले पर लाना। हम सब लोग मिलकर नीचे झूला झूलेंगे और सेल्फी भी लेंगे। उनकी बातें सुनते ही सारी महिलाएं खुश हो गईं। "और देखना सभी लोग अच्छे से तैयार होना। फोटो अच्छी आनी चाहिए फेसबुक पर भी अपलोड करेंगे।" राधा जी ने कहा। राधा जी की बात सुन सारी औरतें हंसने लगी।
रश्मि जी ने आज आशी को गले से लगाते हुए धन्यवाद किया कितनी प्यारी मुझे बेटी मिली है जो मुझे अच्छे से समझती है। मेरी परेशानियों के समाधान के लिये सारी दुनिया का सामना करने को भी तैयार रहती है। राधा जी ने भगवान का शुक्रिया देते हुए मन ही मन कहा, "भगवान ऐसी बहू का सुख सबको दें जो हमारे दुखों का बोझ भी कम कर देती है व सुख- दुख को अपने आप समझ जाती है।"