उत्सव
उत्सव
समय जैसे थम सा गया था। आज एक सप्ताह पूरा हो गया था लेकिन रोहित का फोन नहीं आया। रीमा कभी पति से उलझती, कभी फोन डिपार्टमेंट को कोसती, हर थोड़ी- थोड़ी देर में फोन के तार चेक करती।
"रीमा सब्र से काम लो गर्व महसूस करो कि बेटा देश की रक्षा कर रहा है। सौभाग्य समझो हमारा कि इस कारगिल युद्ध का हिस्सा बन पाया वो।
रोहित भारतीय वायु सेना में पाइलट अफ़सर था। बंगलौर में एक साल की ट्रेनिंग पूरी कर अवंतीपुर (जम्मू- कश्मीर) में नियुक्त था जब कारगिल युद्ध का एलान हुआ।
रोहित को जब भी मौका मिलता अपनी खैरियत बता देता, मगर आज एक सप्ताह हो रहा था उसकी खबर नहीं थी।
ध्यान बांटने के लिए रीमा ने टीवी लगा लिया। उसका पसंदीदा विज्ञापन चल रहा था जिसमें एक यूवक घर लौट रहा है और उसकी माँ लड्डू बना रही है शायद किसी उत्सव की तैयारी हो रही है।
रोहित को भी बेसन के लड्डू बहुत पसंद हैं। विज्ञापन में माँ तैयारी के दौरान कहती है- आते ही कहेगा माँ लड्डू। रीमा को ये सीन बहुत पसंद था, मगर आज टीवी में भी मन नहीं लग रहा था उसका।
तभी फोन की घंटी बजी, रीमा के पति ने झट से रिसीवर उठाया। उनके चेहरे के भाव बदल रहे थे। रीमा साँसे थामे खड़ी इंतजार कर रही थी।
उन्होंने फोन रीमा की ओर बढ़ा दिया।
"माँ हम जीत गए, मैं घर आ रहा हूँ लड्डू बना कर रखना।"
"हाँ बेटा" रीमा और कुछ बोल न सकी, उसकी आँखें नम थी।
पति की ओर देखते हुए उसने जोश में कहा " जल्दी कीजिए, उत्सव मानना है, रिश्तेदारों को बुलाना है, लड्डू बनाना है, कितनी तैयारी करनी है। बेटा घर आ रहा है।"
