Savita Singh

Inspirational

4.9  

Savita Singh

Inspirational

उलझे हुए रिश्ते

उलझे हुए रिश्ते

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काफ़ी दिनों से मेरा मन हो रहा था मैं इस विषय पर कुछ लिखूँ, रिश्ते मतलब ,सास बहू ,देवरानी जेठानी ,नन्द भाभी समाज की कसौटी पर महिलाओं के ही ख़ासकर ससुराल के रिश्ते ही रहे हो सकता है आदमियों के इसलिए नहीं होते की वो घर में नहीं रहते टकराने का मौका कम मिलता है !

सबसे पहले सास बहू का ही रिश्ता आता है जो सास प्यार करती बहू को वो स्वयं भी और लोग तो कहते ही हैं बहू को बेटी की तरह मानती हैं क्यों ?क्या बहु नाम का रिश्ता प्यार करने के लिए नहीं होता ! अगर आप अपनी बहु को ख़ूब प्यार करिये लेकिन बहु को क्योंकि बेटी तो वो किसी की है ,उसके माता पिता भाई बहन हैं सबको छोड़कर नितांत अजनबी लोगों में आई है वो नए रिश्ते रोपेगी न की सारे अपने रिश्ते भूल कर वो अचानक से दूसरे की बहन बेटी सब बन जाएगी, ऐसे में आप उसका सहयोग करिये जो रिश्ता है उसी के नाम से उसकी गरिमा और प्यार हो, आपने बोला तो मैं बेटी की तरह मानती हूँ बहु की तरह मानिए वरना माँ बेटी को थप्पड़ भी मार सकती है ऐसे ही देवर जेठ जेठानी नन्द को कहते हैं भाई बहन की तरह लेकिन भाई बहन में झगड़ा मार पीट सब होता है लेकिन क्या ससुराल में ये होता है नहीं न ,वहाँ रिश्तों की अलग मर्यादा होती है प्यार से आप उन मर्यादाओं का पालन करिये और देखिये अपनापन पाकर कैसे वो अपनी माँ के साथ आपको भी अपनी माँ बना लेती है और हर सदस्य को अपना लेती है !और ये मैं केवल भाषण नहीं दे रही हूँ वास्तविकता में मेरे घर में में मेरे मायके ससुराल दोनों में मेरे बड़े प्यारे रिश्ते हैं !

इसके बाद बात आती है कपड़ों की तो बेटियां चाहे जो पहने बहुओं को थोप दिया जाता है ये पहनो ऐसे रहो आखिर क्यों ?

हम बेटियों को लक्ष्मी का रूप मानते है और बहू का गृह प्रवेश लक्ष्मि रूप में ही करवाते है तो जो कपड़े पहने बेटी को देख सकते हैं बहू को क्यों नहीं ?

खैर !इस परेशानी से तो थोड़ी पढ़ी लिखी और हमारी पीढ़ी में काफ़ी बदलाव आया है जब हम ख़ुद हर ड्रेस पहनते हैं तो बहुओं को क्यों रोकेंगे और कपड़ों का क्या जगह लोग और माहौल देख कर dressup होते हैं सब लोग बहुत कम बेवकूफ़ होते हैं जो कही भी कुछ भी पहन कर चले जाते है हमलोग ही हैं गाँव साड़ी पहन कर जाते है गाँव की सीमा नज़र आते ही अपने आप हाथ उठ जाते हैं पल्लू लेने के लिए जबकि पाबन्दी या बंधन जैसा कुछ नहीं है !

और अब दान दहेज़ वाली बातें इसमें भी मैंने महिलाओं को ही आगे देखा है ये भी आना चाहिए वो भी आना चाहिए ,और बहु के घर से सामान आने के बाद महिलाएं ही मैंने देखा है कूद कूद कर झांक

झाँक कर देखती हैं और सास लोग दिखाती हैं और उसी में कोई न कोई नुक्स निकालने से बाज नहीं आती भले ही उधर सब छोड़ आई हुई लड़की बैठी रो रही हो !ऐसे में आपका कर्तव्य तो ये बनता है की आप बेटी समझ कर नहीं अपनी बहु को प्यार करिये देखिये धीरे धीरे वो कैसे सारे रिश्ते उनके रूप में सम्मान सहित अपना लेती है एक रिश्ता बनाने के लिए दूसरा भूलना नहीं होता !

आज बहुत कह लिया मैंने शायद मेरी कुछ बहने नाराज़ हों लेकिन मेरी प्यारी बहनों ये मैं भाषण देने के लिए नहीं अपने इतने जीवन के अनुभव को साझा कर रही हूँ क्योंकि मेरे ससुराल या मायके दोनों रिश्तों से संतुष्ट और बहुत ख़ुश हूँ !

अगर हम औरतें एक दूसरे का सहयोग करें तो हमारी आधी समस्या का समाप्त हो जाए !

मैं उन दरिंदगी वाली परेशानियों की बात नहीं कर रही हूँ जो आये दिन हो रही हैं!


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