Savita Singh

Thriller

4.7  

Savita Singh

Thriller

वो चौबीस घण्टे

वो चौबीस घण्टे

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मैं अपने परिवार यानी की दोनों बच्चों और पति, उस समय बच्चे काफ़ी छोटे थे बड़ा तीसरी और छोटा पहली क्लास में थे, और मेरी सहेली का परिवार ,उसके पति तीन साल का बेटा और छोटी बहन, हम विंध्याचल देवी के दर्शन और भदोही, जहाँ मेरी ममेरी बहन रहती थी वहाँ और मिर्ज़ा पुर में ही स्थित विंढम फॉल घुमते हुए करीब एक हफ़्ते का प्रोग्राम बना कर वो हमारी अम्बेस्डर से वाया रोड जाने को तैयार हुए क्योंकि उसमें दो परिवार आराम से आ जाता था !! रास्ते के अच्छे से खाने पीने का सामान लेकर ,मौसम भी एकदम ठीक, सुबह छः बजे निकले यहाँ लखनऊ से की शाम तक पहुँच जायेंगे भदोही हम वहाँ से एक और गाड़ी लेकर सब चलेंगे! रायबरेली पहुँचते पहुँचते अचानक बादल घिर आये बारिश होने लगी हम और मस्ती में की और अच्छा लगा बारिश में लेकिन बारिश का वेग बढ़ता गया मेरे श्रीमान गाड़ी चला रहे थे उसी में मेरी दोस्त का बेटा बार बार अंकल जी आप गाड़ी बहुत डैन्जर चलाते हो बोले अब थोड़ा डर लगने लगा इन्होंने गाड़ी ड्राइवर को दे दी चलाने को ! थोड़ी दूर गए हम सड़क पर भी घुटने से थोड़ा सा ही नीचे पानी और गाड़ी के कार्बोरेटर में पानी चला गया गाड़ी बंद हो गई ! अब उसका पानी सुखाने के चक्कर में हम दोनों मिल के नौ तौलिया रखे थे, सब गीले हो गई लेकिन बारिश रूकती तो सुखता। 

 तब तक एक आदमी साइकिल से आता दिखा वो रुका और बोला साहेब बादल फटे हैं एक तरफ का गाँव बह रहा था तो उन्होंने सड़क काट दी है दूसरी तरफ पानी जाने के लिए और अब दूसरी तरफ के गाँव वाले इधर सड़क काटने जा रहे हैं आप लोग जल्दी निकलिए नहीं तो फँस जाएंगे और गाड़ी भी बह सकती है यहाँ से तीन किलोमीटर पर क़स्बा है वहाँ दुकानें भी हैं किसी तरह पहुँच जाइये ये सुनते सबसे पहले वर्मा जी यानि मेरी दोस्त के पतिदेव तुरंत उसकी साइकिल माँगे और मेरे बच्चों और अपने बच्चे को बैठा कर कस्बे के पास छोड़ कर आये। और मेरे श्रीमान उस्ताद स्टेयरिंग पर बैठ और हमें उतार दिया की चलिए मेमसाब लोग धक्का मारिये गाड़ी वहाँ तक पहुँचाना है, हालांकि पाँच लोग थे धक्का मारने में लेकिन अम्बेस्डर भारी गाड़ी घुटनों तक पानी और बारिश हमारे हाथ भी फिसल जा रहे थे बिलकुल अधमरे हो गए हम कुछ दूर बचा था तो मैंने तो हाथ खड़े कर दिए की मैं तो अब बेहोश हो जाऊंगी पैदल वहाँ पहुँच जाऊं बड़ी बात है अगर और धक्का दिया तो एक और सामान हो जायेगा उठाने को, ये देख श्रीमान उतर गए और स्टेयरिंग एक हाथ से पकड़कर धक्का ख़ुद भी बगल से देने लगे। किसी तरह राम राम करते हम कस्बे तक पहुँच गए उस जगह का नाम 'करहिया ' था ऐसा नाम लेकिन वो ऐसा याद हुआ की कभी न भूलें हम। 

वहाँ पहुँच तो गए हम लेकिन कहाँ रहेंगे क्या खायेंगे क्योंकि जो हम लाये थे वो तो मस्ती करते खा चुके थे लोगों ने बताया की ये डाकुओं का इलाका भी है उसका इलाज तो श्रीमान ने तुरंत कर दिया क्योंकि अपनी राइफल हम कहीं निकलते हैं तो साथ लेकर ही जाते हैं घर में छोड़ने पर चोरी हो जाये तो बहुत मुश्किल होती है , इन्होंने राइफल निकलवाया की लाओ देखें पानी तो नहीं चला गया इसी बहाने एक हवाई फायर कर दिया अब जो भीड़ हमें घेरे खड़ी थी धीरे धीरे ख़िसक गई। 

वहाँ लाइन से खाली दुकानें थीं उनमें शटर नहीं लगे थे तो कुत्ते, गधे बकरियाँ सब कब्ज़ा किये थी उसके पीछे ही बड़ी से हवेली थी वहाँ के जमींदार ठाकुर साहब की रुकने को खाने को सब वहाँ मिल जाता लेकिन इतना पानी भरा था की जा ही नहीं सकते थे ! श्रीमान जी इधर उधर टहल रहे थे इंतज़ाम के चक्कर में इनको पीछे गाँव का प्रधान मिल गया उससे बात कर करके जान पहचान बना ही लिया इन्होंने। उसने एक दुकान खाली करवाया और रात का खाना बोला हम ले आएँगे जाकर पूड़ी सब्ज़ी घर से , जब इतना हो गया तो हम सब भी आ गए पूरे पिकनिक वाले मूड में की हाय हाय करने से क्या होगा एन्जॉय करें ! वो बस स्टेशन भी था तो चालू मार्का दुकानें काफ़ी थीं, सब निकल लिए इंतज़ाम में की रात और कम से कम कल दोपहर तक कैसे काटा जायेगा ! ये तो ताश की गड्डियाँ मोमबत्ती, डेटॉल झाड़ू सब लाये मेरी दोस्त के पतिदेव बड़ी सी पॉलीथिन और सुई धागा लेकर आये हम महिलाएं गए जैसी भी थीं चादरें तौलिया ये सब लेकर आये क्योंकि हमारी तो सब भींग गई थीं ! अब शुरू की हमने सफ़ाई हे भगवान इतनी बदबू कुत्तों की मुझे तो उल्टी सी होने लगी तो मेरी दोस्त ने कहा सविता तू जा के बाहर बैठ (ग्रामप्रधान जी ने किसी से एक चारपाई दिलवा दी थी ) जा हम दोनो नाक बंद करके कर लेंगे ,जाने क्यूँ दोस्तों के मामले में हमेशा बहुत अच्छी किस्मत रही बहुत प्यारे लोग ही मिले ये मेरी वही दोस्त कृष्णा ही थी जो 35 साल से ज्यादा हो गए अब तो रिश्तेदार भी है। 

कितनी सफ़ाई हुई डेटॉल डाल डाल के लेकिन बदबू जाये न फिर पूरे समय ढेर सारी अगरबत्तियां जला कर गुजारा हुआ ! वर्मा जी बैठ गए पॉलीथिन का जैसे गाँव में सब ऊपर से सिलकर टोपी सी नीचे तक का बना लेते हैं और बारिश में लगाते हैं वो बना लिया बारिश तो बंद हो चुकी थी लेकिन अगर सुबह होती रही तो बाथरूम आई तो कैसे जायेंगे इसलिए बना लिया ! अब ये समस्या की ज़मीन में बिछाएं क्या ग्राम प्रधान से इन्होंने पूछा तो बोला साब बस खाद की बोरियां मिल जाएँगी यहाँ गोदाम से हमने कहा चलो वही सही उसके ऊपर दो चादर डाल दिया चार ही मिली थीं, ये था की बच्चों के दो उढ़ा देंगे हम लोग ऐसे ही सो लेंगे पति लोग दोनों दो तरफ सिर करके सो जायेंगे। 

ये सब सही करके हम ताश खेलने बैठ गए मोमबत्ती की रौशनी में जब तक खेल सकते थे खेला, खाना आया कद्दू की सब्जी और आधी कच्ची पुड़ियाँ मैंने तो नहीं खाया की न खाऊँगी न मुझे अंधेरे में ही सड़क पर जाना होगा मेरी दोस्त ने मज़े से खाया, मैंने मना किया की मत खा कल भुगतेगी लेकिन उसे भूख लगी थी सभी लोगों ने बहुत थोड़ा ही खाया और सोते समय दरवाज़ा न होने से इन लोगों ने सामने चारपाई लगा ली और राइफल हमने चादर के नीचे सिरहाने रख लिया किसी तरह नींद आई ! रात में चारपाई के नीचे से एक कुत्ता घुस आया सबको सूंघने लगा, अब मचा शोर सब एक दूसरे को की तुम्हारा मुँह चाटा उसने बोल कर चिढ़ाने लगे, उठ गए हमलोग उसी समय सड़क से पानी उतर गया था तो ये हुआ जिसको जाना है अभी हो आओ दिन निकल गया तो पानी में घुसकर जगह ढूंढनी पड़ेगी ,जिसको जाना था हो आया अब गप्पें मारते दिन हो गया जेंट्स लोग चले गए की कैसे यहाँ से निकला जाये ये देखने और इधर मेरी कृष्णा को पूड़ी ने गरम किया वो मुझसे सिफारिश करे चलो सविता मेरी समझ में न आये कहाँ जाऊँ इसके साथ जब वो रोने को आ गई मैं और उसकी बहन निकले अब खेतों में पानी में घुस के ढंग की जगह ढूंढी जा रही थी, उसी में उसकी बहन के पैर पर बिच्छू आ गया बड़े आराम से पैर उठा के बोल रही दीदी ये देखो बिच्छू मैंने जल्दी से उसका पैर झटकवाया और वो पानी में गिरा तो तैरने लगा मैंने कहा तुम तो उसको मरा समझकर एक और मुसीबत खड़ी करती वो ठंडा हो गया था शायद इसीलिए डंक नहीं मारा , खैर हमें सफलता मिली थोड़ा ऊँचा बगीचा मिल गया जहाँ सूखा था थोड़ा और कहीं से दिखता भी नहीं ! हम वापस आये तब तक ये लोग आ गए की चलो टटटू मिल गया है जो कटान तक ले जायेगा फिर कटान से खेतों से उतर कर दूसरी तरफ मिनी बसें आ गईं हैं प्रतापगढ तक ले जायेंगे , उस रात वहाँ दो बस दो ट्रक और फँसे थे हमें तो पीठ रखने की जगह और कच्चा पक्का खाने को मिल गया था लेकिन बस वाले तो रात भर बेचारे बिना खाये पिए बैठे ही रह गए, छोटी सी जगह पर जो चाय बिस्किट वगैरह की दुकानें थीं एकदम शुरू में ही ख़तम हो गया सब। 

खैर !हमें तो बाहर निकलने का जानकर लगा जैसे जेल से रिहाई मिल रही हो, फ़टाफ़ट ज़िंदगी में पहली बार हम टटटू पर सवार हो निकल लिए ड्राइवर को गाड़ी के साथ छोड़ पैसे देकर चल दिए हम साथ में राइफल टाँगे डाकुओं की तरह , कटान तक पहुँचकर उतरकर खेतों से होकर उस पार जाकर बस पकड़ी और प्रतापगढ़ p w d के गेस्ट हाउस पहुंचे श्रीमान उस समय PWD में ही नौकरी करते थे वहाँ पहुँच कर बच्चे तो बच्चे हमें भी लगे जैसे कभी बाथरूम नहीं देखा, बिस्तर नहीं देखा कोई बेड पर सोने लगा कोई नहाने घुस गया जब तक खाना बना सब नहा धोकर फिट हो गए सादा सा दाल चावल रोटी सब्ज़ी अच्छे से घी वग़ैरह डालकर बनाया था वहाँ के रसोइये ने, सारे लोग ऐसे खाये की कबके भूखे हैं और सब बोले की सो जाते हैं कल भदोही चलेंगे लेकिन मेरे श्रीमान के आगे कहाँ किसी की चलती है तुरन्त टैक्सी मंगा कर चल दिए इनको चिंता भी हो रही थी की बेचारे ड्राइवर को छोड़े हैं खाना वाना कब कैसे मिलेगा जब तक सड़क नहीं बनती कोई मिस्त्री भी नहीं पहुँच पाता। 

अब हमारा प्रोग्राम एकदम शार्ट हो गया की दर्शन करने निकले थे तो वो तो करना ही है फिर ट्रेन से सीधा वापस ! शाम तक हम भदोही पहुंचे सुबह टैक्सी लेकर विंध्याचल रास्ते में बस आधा घंटा विंढम फाल पर रुका गया वहाँ नहाने और मज़े करने का सोच सोच में ही रह गया ! दर्शन करके रात तक भदोही वापस आ गए सुबह टैक्सी से प्रतापगढ़ वहाँ से ट्रेन से लखनऊ ! यहाँ आते ही मिस्त्री को वहाँ भेजना था !!

बहुत गड़बड़ हुआ हमारे साथ लेकिन उसको हमने एन्जॉय भी ख़ूब किया कभी न भूलने वाली यात्रा हो गई बच्चे छोटे थे लेकिन अभी तक जब कभी हम बात करते हैं तो एक एक बात याद करके हँसते हैं पूरे 24 घण्टे हम फँसे थे वहाँ। 

उससे एक एहसास और उठा की हम एक दिन में इस तरह परेशान हुए जिन्हें हमेशा ऐसे ही खाने सोने रहने के लाले पड़े होते हैं वो बेचारे कैसे अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे होंगे। 

ये थी हमारी छोटी सी यात्रा का बड़ा सा वृतांत। 

  


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