तुम आश्रिता नहीं
तुम आश्रिता नहीं
राधिका बहुत ही गुणवान थी, पढ़ाई में भी अव्वल आती और हर तरह की कला में उसकी रुचि थी। वो आगे नए आयामों को छुना चाहती थी पर वो ऐसे परिवार में थी जहां लड़कियों की एक ही मंज़िल थी शादी करके ससुराल जाना।
बिना विद्रोह वो शादी कर ससुराल आ गई। पति ने पहले दिन हाथ में हाथ लेकर कहा, अब हमारे नए जीवन की शुरुआत है, तो मैं चाहता हूं कि तुम वो बनो जो तुम चाहती हो, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तुम खुश रहोगी तो ये परिवार रहेगा।
राधिका की आंखों में दबे हुए सपनों ने फिर उड़ान भरी और उसकी खुशियों की शुरुआत हुई।