ट्रक ड्राइवर
ट्रक ड्राइवर
बाबा ने ढाबे पर खाना खाने के लिए अपने मनपसंद ढाबे पर अपना ट्रक रोका। तकरीबन हर महीने इस तरफ का एक फेरा तो लगता ही था और इस ढाबे पर खाना खाने के लिए रुकना उसका रूटीन बन चुका था। सबसे बड़ी बात ढाबे पर उसकी मुलाकात उसके पुराने मित्रों से भी हो जाती थी।
ट्रक से उतरते ही उसकी नज़र सामने खड़े ट्रक पर पड़ी जो उसके बहुत पुराने मित्र का था। उसके होंठों पर मुस्कुराहट खेल गयी। कई महीनों से मित्र से मुलाकात नहीं हो पाई थी और आज अचानक मित्र का ट्रक सामने था इसका अर्थ था कि मुलाकात भी दूर नहीं। धीरे धीरे बाबा सब परिचितों से मिलता है अंदर की तरफ चल पड़ा। उसने सारा ढाबा खंगाल दिया परंतु उसे अपना मित्र दिखाई नहीं दिया।
आखिर बाबा मित्र के ट्रक के पास ही बैठ गया और काफी देर बाद एक महिला वहां आई। बाबा ने पूछताछ की तो पता चला कि उसके मित्र की एक्सीडेंट में मृत्यु हो चुकी है और अब उसकी पत्नी ट्रक चालक के रूप में उसके सामने मौजूद थी।
मित्र की मृत्यु का दुख जहां बाबा की आंखों में दिख रहा था वही अपने सामने एक ऐसी स्त्री को देख कर प्रसन्न था जिसने सम्मान मांगने की बजाए सम्मान योग्य बनने का विकल्प चुना।
बाबा एक ही समय में दुखी भी था और खुश भी परंतु समझ नहीं पा रहा था कि दुख और खुशी दोनों एक साथ कैसे रह सकते हैं ।