टोटका
टोटका
शादी के सम्पूर्ण्ं संस्कार कुशलता पूर्वक संपन्न हो गये थे।
कहीं कोई रोड़ा नही अटका, न फूफा रुठे, न सालियां रिसाई, बस अब विदा की बेला थी। हम अपनी अर्धांगनी को विदा कराने को व्याकुल, कि तभी अंदर से आर्तनाद सुनाई पड़ा।
औरतों की समवेत सिसकियाँ सुनाई पड़ने लगी। सबसे ज्यादा आहत हमारी सासू मां, बार बार पछाड़े खा रही थी। दो चार औरतें उन्हें पंखा झल रही, कोई पानी के छींटे मार रही उनके मुहँ पर। बुआ सास आंसू पोछते बोली- लला, बिटिया का ख्याल रखना, भाभी की मनो, जान बसती उसमें।
साली जी जार जार रोती बोली- जिजाजी, दीदी को कभी ऊँची आवाज मे बोलना भी मत, वरना---"
रोते रोते उसने भी धमकी दे दी। पूरा महिला वर्ग ऐसे रो रहा था मानो हम कोई रावण है और उनकी बिटिया का हरण करके ले जा रहे हैं और बिटिया के हाल तो सबसे बुरे, कभी मां, कभी बुआ, भाभी, नानी, सहेली सबसे लिपट कर रोते रोते चेहरे के मेकअप का सत्यानाश कर लिया।
भांवरों के समय की अप्सरा इस समय भावुक दृश्य ने मन विगलित कर दिया। मन ने कहा की धिक्कार है तुझे, इतना निकृष्ट, जघन्य अपराधी हो गया तू। इतने लोगों की आत्मा को दुखी करेगा तो नरक मे भी जगह नहीं मिलेगी और हमने एलान कर दिया, "मैं आप सबको दुखी नहीं करना चाहता, अपने जान से ज्यादा प्यारी बेटी को अपने पास रखे।" बारातियों से प्रस्थान करने को कहा।
सन्नाटा छा गया। सिसकी की भी आवाज नहीं। सास की मूर्छा गायब हाथ जोड़ बोली- लाला,ऐसा जुल्म न करो, ये तो तुम्हारी अमानत है। अब ही विदा किये देते हैं। घबरा हमारी विवाहिता भी गई, पुन:अप्सरा सा रुप लिये हमारे बगल में आकर मुस्कराती खड़ी हो गई। नानी सास घुटनों को सहलाती, धीरे धीरे आई, हमारी बलाएँ ली बोली- ए मोर लल्ला तुम तो रिसाय गये। जनी मानस बिटिया की विदा समय खूब रोय तो जनो, बिटिया ससुराल मे खूब सुखी रहत है। टोटका है जे तो।