टीस
टीस
पिछला कुछ समय शारीरिक समस्याओं के हत्थे चढ़ गया था। हालांकि उसके लिये ये आम बात थी। पर शायद सब सहज न थे। आज फिर एक नई परेशानी ने बवाल मचा रखा था। इलाज भी जरूरी था समय पर।
वो बावली सी हो उठी पर सुकेश ध्यान ही नहीं दे रहे थे। बार बार कहने पर जो जवाब मिला सुनकर वह सन्न रह गई,
"एक और नयी समस्या ! तुम्हारी समस्याओं का कोई अन्त नहीं, रोज एक नयी समस्या लेकर खड़ी हो जाती हो।"
पर इस बार शब्द बाणों से बीन्ध गई। घर की सारी समस्याओं का हल करने वाली खुद अपनों के लिये ही समस्या कब बन गई पता ही न चला। कुछ क्षणों में दर्द एक टीस बन गया। दो अश्कों ने समेट ली दास्तान। अपने भीतर अब वो कोमलांगी, मन से कठोर होने का निर्णय ले चुकी थी एक टीस के साथ।