ठंडी राख
ठंडी राख
एक सर्द लहजे में कही गयीं बातों ने रिश्तों की गरमाहट जैसे खत्म कर दी और रह गयी बाकी उन रिश्तों की ठंडी राख जो कभी इधर उड़ती तो कभी उधर बिल्कुल उन बेचैन रिश्तों की तरह।
कल के रिश्तें जो 'बहुत कुछ' थे आज वही रिश्ते जैसे नजरें चुराते हुए लग रहे है......
