Tanishka Dutt

Comedy

4.3  

Tanishka Dutt

Comedy

टाकीज़

टाकीज़

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"बदन पे सितारे लपेटे हुए!"

"ये घर में ऐसे फिल्मी गाने कौन गा रहा है? -दादी ने छड़ी उठाते हुए पूछा। ज़ाहिर है, घर में दादी जब गीता पढ़ रही हो और गीता नाम की लड़की 'बदन पे सितारे लपेटे हुए' गाएगी तो तकलीफ़ तो होनी ही है। ऐसी भावपूर्ण धमकी सुनकर गीता जैसे स्तब्धत रह गई।

'PRINCE'- शम्मी कपूर के जलवे की एक और अनोखी फिल्म।

शाम पाँच बजे गीता जैसे उड़ती हुई पहुंची जगजीत के घर। हमेशा की तरह जगजीत और मनजीत अपनी पढ़ाई में बिल्कुल मग्न, दुनिया के सैर-सपाटे से तो जैसे दोनों बिल्कुल अनजान-सी थी। उन्हें नई-पुरानी हर फिल्म की दास्तान सुनाने आती थी गीता पर इस बार गीता जगजीत और मनजीत के साथ 'PRINCE' देखने को बेताब-सी थी।

"जगजीत-ओ जगजीत!" जगजीत ने अपना चश्मा उतारे हुए गीता की तरफ बिना देखे पूछा

-"हाँ! अब कौन-सी पुरानी फिल्म की कहानी सुनानी हैं?"

"पुरानी नहीं, नई!" मनजीत ने अपनी आँखें विज्ञान की किताब से

हटाई और आश्चर्यचकित होकर पूछा-"क्या!"

"हाँ! इस बार हम नई फिल्म देखने जाएंगे।

"जगजीत को एक समय के लिए ऐसा लगा जैसे कल की परीक्षा के अंकों का गीता पर गहरा असर हुआ है। गीता ने रेडियो चालू किया और गाना बजा,"हम ही जब न होंगे तो, ऐ दिलरुबा! किसे देखकर हय! शर्माओगी?"

"यह वही फिल्म है ना, 'PRINCE'?"- मनजीत ने अपनी विज्ञान की किताब बंद करते हुए कहा।

"हाँ कक्षा में उर्मिला कह रही थी की इस में शम्मी कपूर है!" और यह कहकर गीता ने रेडियो की आवाज़ बढ़ा दी। "ठीक है! तो हम तीनों कल प्रताप टाँकीज़ के बहार पूरे एक रूपये लाकर मिलेंगे।" पूरी रात जैसे गीता, जगजीत और मनजीत की उलझनों में गुज़री। एक तरफ माँ से इजाज़त लेने की फिक्र, तो दूसरी तरफ शम्मी को पहली बार बड़े पर्दे पर देखने का उत्साह। दोनों तरफ के भाव उन तीनों को और यह जंग तीनों को जीतनी थी। गीता ने

अपना पूरा मनोबल जुटाया और एक झटके में सब कह डाला। माँ को पहली बार में ऐसा लगा जैसे उन्होंने किसी सरपट चलती ट्रेन की आवाज़ सुनी हो थोड़ी देर के बाद जब उन्हें बात समझ में आई तब उन्होंने पीछे पड़े शक्कर के डब्बे में से साठ पैसे निकाल कर गीता के हाथों में थमाए। गीता को एक बार के लिए यह सपने जैसा लगा। दोपहर ढाई बजे तीनों प्रताप टाँकीज़ के बाहर अपनी-अपनी मुंगफलियों की थैलियों के साथसे किसी की सीटी बजाने की आवाज़ आई। शम्मी कपूर के डायलोग पर ऐसी सीटियाँ बजना काफी आम बात थी लेकिन जिसने सिटी बजाई, वो कुछ आम न थी इस टाकीज़ में। गीता ने जब अपनी नज़रे पलटाकर गौर से देखा, तब इस बार उसे ऐसा नहीं लगा जैसे वो सपना देख रही हो क्यूँकि ऐसा कुछ उसके सपने में भी नहीं हो सकता था। हाँ! वहाँ थी शम्मी कपूर की सबसे बड़ी फैन , गीता की दादी। फिल्म खत्म होते ही जब चारों बाहर टाकीज़ के बाहर मिली तब कुछ देर के लिए

सन्नाटा-सा था। अचानक ही दादी हँसने लगी और गाने लगी-"बदन पे सितारे लपेटे हुए! "



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