सूखी रोटी
सूखी रोटी
"अंशु-अंशु !"
"क्या हुआ मां ?"
"अंशु, मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है कि तुम अपना लंच पूरा किया करो।"
"पर माँ, मैंने भी तो आपको कहा है कि यह घर की सब्जी रोटी मुझे नहीं खानी। इट सीमसो बोरिंग मॉम !"
"ठीक है तो आज रात को तुम्हें यह बोरिंग खाना खाने को ही नहीं मिलेगा !
"अंशु खाना तैयार है !नीचे आ कर खा लो।"
"नहीं मां मुझे भूख नहीं है।"
"भूख नहीं है? पहले तो तुम नीचे आओ !"
"हाँ माँ बोलो। "
"खाना नहीं खाओगे तुम?"
"नहीं, भूख नहीं है।"
"क्यों तुमने दिन का खाना भी पूरा नहीं खाया था।"
"पर मां,मैं शाम को अपने दोस्तों के साथ पिज़्ज़ा कॉर्नर गया था और पिज़्ज़ा खा कर आया हूं।"
"अंशु फिर से !"
"अरे सुरभि ! छोड़ो ना तुम भी क्या पूरे दिन इसे डांटती रहती हो।"
"अरे मयंक ! तुम्हें पता नहीं है कि यह....."
"मॉम जस्ट चिल,ओके !"
यह जो आपने दृश्य देखा वह मेरे घर में हर दूसरे दिन की आम बात थी। अंशु यानी मेरे बेटे को बाहर की सैर-सपाटा व खाना बहुत प्रिय था। वैसे सैर सपाटे में कुछ ज्यादा बुराई नहीं, पर बाहर का खाना !"
देखते हैं मेरे घर का संडे कैसे गुजरता है।
"अरे सुनो ! गली की चौथी दुकान है ना, वहां पर मैंने कुकर ठीक करने के लिए दिया था। तो तुम लेकर आना।"
"ठीक है।" मैंने कहा।
"मां आज नाश्ते में क्या बना है?""यह लो तुम्हारा आलू पराठा।"
"आलू पराठा !"
अंशु ने आलू पराठा खाना शुरू किया लेकिन,
"अरे ! कहां जा रहे हो तुम?"बस माँ भूख नहीं है। मैं जा रहा हूं,ओके बाय !"
"पर तुम्हारा यह आधा पराठा कौन खाएगा अंशु?"
कहते-कहते सुरभि चुप हो गई जब उसने देखा कि अंशु उसकी बात को अनसुना कर घर के बाहर चल दिया।
श्रीमती जी कुछ उदास दिखी,खुद से बड़बडा़ने लगी और अचानक मुस्कुराने लगी। मुझे पता था सुरभि के दिमाग में कोई खिचड़ी पक रही थी।
कुछ घंटों बाद मैंने पूछा "क्या खिचड़ी पक रही है?"
अंशु ने घर का दरवाजा खोला ही था कि वह पूछने लगा "क्या !खिचड़ी पक रही है?मैं नहीं खाऊंगा।मेरे लिए सेन्डविच बना देना
।" सुरभि ने अपना सिर पर पकड़ा। खाने के बाद सुरभि ने जैसे किसी सेना के मेजर की तरह आदेश दिया। "कल सुबह 7:00 बजे सब तैयार होकर हॉल में मिलेंगे।" अंशु और मैंने एक दूसरे की तरफ देखा और बिना कुछ कहे, हाँ में सिर हिलाया। सुरभि जैसे पहली बार
आराम की नींद सोई।अगली सुबह मैं और अंशु जब
हॉल में पहुंचे तब सुरभि वहां नहीं थी,
"लगता है मां हमें जगा कर सो गई है। मुझे तो नींद आ रही है मैं जा रहा हूं !" जैसे ही अंशु हंसते हुए जाने लगा बाहर से हॉर्न की आवाज आई।
"अरे ! तुम दोनों खड़े क्या हो अंदर आकर
बैठो। नहीं तो हमें देरी हो जाएगी।" सुनते ही हम दोनों
गाड़ी में बैठ गए।
सुबह हमारी फ्रिज पर हमने एक कागज
चिपका मिला,जिस पर लिखा था 'गाड़ी में चलते वक्त
कोई किसी भी तरह का सवाल नहीं करेगा।' इसलिए हमने
गाड़ी में कुछ ना पूछ ही ठीक समझा। करीब 1 घंटे बाद
हम पहुंच गए, वह इमारत देखने में बडी़ तो थी लेकिन
काफी पुरानी थी।- 'एंजेल्स केयर' एक पुराने से बोर्ड पर लिखा था।
"मां हम यहां क्यों आए हैं?"
सुरभि ने कुछ ना कहा और अंदर चल दी। हम भी बिना कुछ कहे अंदर चल दिए। सुरभि एक लड़की के थोड़ा दूर जाकर रुकी। जिसके हाथ में एक सूखी रोटी थी।
हम सुरभि के पास गए तो सुरभि ने कहा -"देखो अंशु उस लड़की को कितनी छोटी है वह, कितनी मासूम है। उसके हाथ में सिर्फ एक सूखी रोटी है। पर वह सूखी रोटी को ऐसे देख रही है जैसे उसे दुनिया में सारे पकवान मिल गए हैं।
पता है अब वो उस रोटी को आधा खा कर छोड़ेगी नहीं,और ना ही उस रोटी की जगह और पकवान की मांग करेगी।बल्कि वह इस इस सूखी रोटी का अपने पूरे मन से आदर करेगी, भगवान का शुक्रिया अदा करेगी कि आज उसका पेट भरा है। यह सुनते ही अंशु चुपचाप उस लड़की को आंखों में आंसू के साथ देखने लगा।सुरभि ने मुझे पहले
कई बार इस जगह के बारे में बताया था जहां अक्सर
फंड की कमी हो जाती है,और कभी-कभी तो राशन
खरीदने तक के पैसे नहीं होते।
अगले दिन से अंशु का लंच बॉक्स खाली हो कर आने लगा उससे बाहर खाना और घर का खाना बचाना बिल्कुल ना के बराबर कर दिया। सच में आज और अगले हर दिन उस ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करते हैं।