आचार्य गार्डन
आचार्य गार्डन
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"नमस्ते!"
"अस्सलाम वालेकुम!"
"जी मैं आपको कई दिनों से यहां देख रहा हूं, पर उससे पहले कभी नहीं देखा। क्या आप यहां नए आए हैं?" कादरी जी ने पूछा।
"जी हां, मेरी पोस्टिंग कुछ हफ्तों पहले ही यहां हुई है। मुझे कहना पड़ेगा कि जितनी रुचि यहां के बच्चों की पढ़ाई को लेकर है उतनी कहीं नहीं है।"
"जी सुन कर खुशी हुई।" कहते हुए कादरी जी मुस्कुरा कर अपने रास्ते चल दिए। कादरी जी यानी कि अहमद रजा उद्दीन कादरी जब मस्जिद से घर जाते तो वह इस नए उस्ताद (शिक्षक) को देख कर खुश होते और सोचते "कितनी सादगी से पढ़ाते हैं।"
कादरी जी को बचपन से ही पढ़ने और पढ़ाने का काफी शौक था। लेकिन 9 साल की उम्र में ही उनके अब्बू की नौकरी छूट गई और उनकी पढ़ाई भी। पढ़ाई को छोड़े हुए उन्हें 40 साल हो चुके थे लेकिन उसका दुख आज भी उनकी आंखों के आंसूओं की चमक में दिख ही जाता। उनकी बीवी
25 साल की उम्र में ही चली गई। ऐसा नहीं था कि वह अकेले थे, उनकी एक बेटी थी जोया। बस इतना था कि जोया को अब पढ़ा लिखा कर विदेश में नौकरी करनेभे ज दिया। जोया की कमाई 2 लोगों के लिए खूब थी।
इसीलिए उन्होंने अपने कपड़ों की दुकान भी किराए पर चढ़ा दी थी। कुछ 4-5 महीनों में जोया आती लेकिन दो या तीन दिनों में चली जाती थी। आज स्कूल के बच्चों की जल्दी छुट्टी हो गई थी इसलिए राम प्रताप जी ने कादरी साहब से चाय के लिए पूछा।
"नमस्ते!"
"अस्सलाम वालेकुम!" "क्या आप चाय पीना पसंद करेंगे? यहां पास की टपरी पर बहुत अच्छी मिलती है।"
"जी हुजूर! बिल्कुल।"
"वैसे क्या मैं जान सकता हूं कि आप कहां के रहने वाले हैं?" कादरी साहब ने चाय का कूलर लेते हुए पूछा।
"जी मैं राजस्थान का रहने वाला हूं।" राम प्रताप जी ने चाय पीते हुए कहा।
"अच्छा वैसे मैं कुछ
पूछना चाहता था?" राम प्रताप जी ने कुल्हड़ रखते हुए कहा।
"जी हां पूछिए।" कादरी साहब ने इजाज़त दी।
"क्या आप मुझे उर्दू सिखाएंगे? देखिए अब मना मत कीजिए,
बस यह मेरा शौक है या मेरी जिद़-नई भाषा सीखना।" कादरी साहब अब अपनी खुशी लफ्जों में जाहिर कैसे करते हैं?
"जरूर!"
"तो फिर कब से सीखाना शुरू करेंगे?" राम प्रताप जी ने पूछा। "मस्जिद की पिछली वाली गली में एक 'आचर्य गार्डन' है वहां पर हम कल 5:00 बजे मिल सकते हैं।"
"ठीक है।" कहकर राम प्रताप जी चले गए। अगले कादरी साहब ने 2-3 किताबें पढ़कर अपना वक्त गुजारा। 5:00 बजते ही वह अपने घर से निकले और मस्जिद के पीछे वाली गली में जा पहुंचे।
"आ गए आप चलते हैं! बस यही है गार्डन।" कादरी जी ने छोर की तरफ इशारा करते हुए कहा। बगीचे में पहुंचने पर एक घंटा पढ़ाया और फिर कहा "बस आज के लिए इतना ही। चलिये अब घर चलते हैं।" दोनों मस्जिद के पीछे वाली
गली में पहुंचे, तब रामप्रताप जी ने कहा "आप बहुत ही अच्छा पढ़ाते हैं। मैं तो कहता हूं आप भी शिक्षक की नौकरी कर लीजिए स्कूल में।" और हँसने लगे। ये ऐसे लफ्ज़ थे जिन पर एक लम्हे के लिए कादरी साहब के चेहरे पर मुस्कुराहट आई और दूसरे ही पल आंखों में आँसू। "अरे आपकी आंखों में आँसू!
मैंने कुछ गलत कह दिया तो माफ कीजिएगा।"
"नहीं-नहीं बस कुछ पुराना याद आ गया था।"
"जी मैं जान सकता हूं क्या याद आ गया?"
"जी मुझे बचपन से ही पढ़ने-लिखने का शौक था, लेकिन 9 साल की उम्र में मेरे अब्बू की नौकरी छूट गई और मेरी पढ़ाई। मेरा शौक बचपन का कोई हिस्सा बनकर रह गया। वक्त आंखों के आगे इतना जल्दी निकल गया की किसी से कुछ कह नहीं पाया। खैर जाने भी दीजिए।" कादरी साहब ने भारी आवाज़ में कहा।
रामसप्रताप जी इतना सुनकर अपने घर चले गए। पूरी रात राम प्रताप जी कादरी साहब के बारे में सोचते रहे कि कैसे इतने सालों बाद भी उनकी आंखों में अपने एक सपने के लिए चमक थी पर कैसे उन्होंने आसानी से इस सपने को वक्त के हवाले कर दिया। वह सोचते रहे कि कोई ना कोई रास्ता जरूर होगा जिससे कादरी साहब की तकलीफ़ कम करी जा सके। और सुबह उठकर उनके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आई शायद उन्हें रास्ता मिल गया होगा।
रामप्रताप जी 5 बजते ही बगीचे में गए और देखा कि कादरी साहब वहां उनका इंतजार कर रहे थे। "चलिए अब मुझे बताइए कि मैंने कल आपको जो याद करने के लिए दिया था, वह आप याद करके आए हैं?"
"हां!"
एक घंटा बीत गया, अब कादरी साहब ने वापस चलने को कहा तब -"जी कल मैं आपसे पूछना भूल गया था कि आप फ़ीस कितनी लेंगे?"
"अरे नहीं-नहीं! इल्म जो मेरे पास है उसे बांटने के लिए फ़ीस की क्या जरूरत?"
"नहीं कुछ तो लेना पड़ेगा आपको।" रामप्रताप जी ने कुछ जो़र दिया। पलक झपकते ही राम प्रताप जी ने कहा
"क्यों ना मैं आपको पढ़ाऊ और आप मुझसे?"
"अरे क्या मज़ाक कर रहे हैं आ!प मेरी उम्र है क्या पढ़ने-लिखने की?"
"क्यों नहीं है! वैसे भी इंसान अपनी आखिरी सांस तक कुछ न कुछ सीखता रहता है।" कादरी साहब ने इस बात पर गौर किया और कहा "बात तो आपकी ठीक है पर मैं अब पढ़ कर करूंगा क्या?"
"देखिए जैसे आप मुझे पढ़ा रहे हैं वैसे आप पढ़कर ऐसे बच्चों को पढ़ा दीजियेगा जो स्कूल नहीं जा सकते।"
यह सुझाव सुनकर कादरी साहब की आंखों में फिर अपने सपने के लिए चमक दिखाई दी। दिन,दिन के बाद हफ्ते हफ्तों के बाद महीने और महीनों के बाद साल गुजरते चले गए,करीब 3 साल।कादरी साहब आज पांचवी कक्षा तक के बच्चों को आसानी से पढ़ाते हैं।कहां?-आचार्य गार्डन में।
रामप्रताप जी की पोस्टिंग फिर से राजस्थान में हो गई,लेकिन वह एक बात जरूर सिखा कर गए कि कभी कभी किसी के सपने पूरे करने की कीमत बहुत कम होती है जैसे कि कुछ हौसला बढ़ाने वाले लफ्ज़।