Aniruddha Sastikar

Abstract

2.5  

Aniruddha Sastikar

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तरसे है आज...

तरसे है आज...

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आज 
बच्चो की मुक्त और निष्कपट
मुस्कान देख...
आ गए याद, 

बचपन के वो चिंता मुक्त दिन...
वो -
दोस्तों संग पढना-खेलना,
भाई-बहनों साथ बैठ -
खाना-पीना,
गाना-बजाना,
लड़ना-मनाना,
बाते बनाना...

याद, उन दिनों की महसूस कराती है
कि कितने अच्छे थे,
वो ....

आज 
पैसो में...
दिखावे में...
अपने आप में...
हुए इतने व्यस्त
कि,
भाई-दोस्त के साथ,
दो घडी बात करने का;
न वक्त है, ना ही झुकाव.

वक्त नहीं है आज -
रूठने का...
मनाने का...
गाने का...
सुनने का...
थम से गए हम...
थम सी गयी आवाज़...

आज 
साथ बैठ कर 
एक निवाला प्यार का,
खाने को तरस गए है,
हम...

 

 


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