तलाकनामा
तलाकनामा
लंबे इंतजार और अनेकों कोर्ट की पेशियों के पश्चात आखिरकार जतिन और वंदना का तलाकनामा साइन हो गया । दोनों बिना नजरें मिलाए - अपनी-अपनी राह मुड़ गए, लेकिन आधे रास्ते में खड़ी उनकी बेटी कभी पिता जतिन की तरफ और कभी माँ वंदना की तरफ देखती । कोर्ट के फैसले के मुताबिक कृतिका का संरक्षण माँ वंदना को मिला था । अतः माँ-बाप के कशमकश के दोराहे पर खड़ी बेटी को वंदना ने खींचकर अपनी गाड़ी में बैठा लिया । कृतिका तब तक गाड़ी के शीशे से जतिन को टुकर-टुकर निहारती रही जब तक वह आँखों से ओझल नहीं हुई ।
यह सात साल का लंबा इंतजार और कोर्ट-कचहरी की पेशियों के पश्चात परिवार ने भी राहत की सांस ली -"कृतिका का सरंक्षण वंदना को मिलने से जतिन को दोबारा शादी करने में कोई अड़चन नहीं आएगी।"
मैरिज ब्यूरो तथा नाते-रिश्तेदारों की मदद से जतिन के लिए दोबारा से रिश्ता ढूँढने का सिलसिला शुरू हो जाता हैं । फिर से रिश्ता देखने में जहाँ परिवार बड़ा खुश तथा उत्साहित दिखाई देता, वहीं गुमसुम जतिन के हृदय की पीड़ा साफ दिखाई देती थी ।
एक दिन कारण पूछने पर जतिन बिलख-बिलखकर बच्चों की तरह रोते हुए - मैं क्या करूँ….? परिवार वाले नए रिश्ते देखने में उत्साहित होते हैं लेकिन मुझे अब हर लड़की में वंदना नजर आती है। कृतिका का संरक्षण वंदना को मिलने से जहाँ परिवार में सब बड़े खुश हैं, लेकिन मैं कृतिका को गले लगाने के लिए बेचैन हो उठता हूँ। बेटी है वह मेरी.., दिल करता है उसे वंदना से छीनकर अपने पास ले आऊँ और वह सारे हक दूं जिसकी वह हकदार है। तरस आता है मुझे कृतिका पर, माँ के पास बाप के प्यार से वंचित और बाप के पास माँ के प्यार से । हम दोनों के होते हुए भी केवल बेचारी बनकर रह गई हैं।" परिवार टूटकर बिखर जाते हैं और एक तलाक के ठप्पे में सिमट जाते हैं, लेकिन इसके टूटे हुए काँच के टुकड़े चुभकर अक्सर हृदय की गहराइयों में कभी भी ना भरने वाले घाव कर जाते हैं ।"