तिरस्कार कब तक?
तिरस्कार कब तक?
आज घर में फिर से साफ- सफाई चल रही है, एक-एक सामान को अच्छे से झाड़-पोंछकर, चमकाया जा रहा है। घर में, विभिन्न प्रकार के खाने के लिए व्यंजन आए हैं, नाश्ते की तैयारी अलग है तो भोजन की भी तैयारी है। रुपाली जी एक -एक सामान को अच्छे से जाँच रहीं हैं ,मन में घबराहट है ,कहीं कुछ कमी न रह जाये। घरवालों को अच्छे तरीके से समझा रहीं हैं, किसको कब और क्या करना है और कब नाश्ता लेकर पहुंचना है और कब दीदी को साथ लेकर लड़केवालों के सामने आना है ? मेहमानों के लिए अलग से कांच के बर्तन निकाले गए हैं। अरे, तिवारी जी !क्या आप मिठाई ले आये ? मुझे सामान में मिठाई कहीं नजर नहीं आ रही है।
तुम इतना परेशान क्यों हो रही हो ? मिठाई तो मैंने पहले ही लाकर फ्रिज में रख दी है तिवारी जी ने जवाब दिया - आप अपनी बिटिया पर ध्यान दीजिए ! आपकी बिटिया क्या कर रही है ? क्या वह पार्लर जाकर आई है ? उससे कहिए थोड़ा, बन संवरकर कर रहे।
कितनी बार कह चुकी हूं, किंतु मेरी तो कोई सुनता ही नहीं, उसे कितनी बार समझाया है ? आजकल के लड़के साधारण लड़कियों को कम ही पसंद करते हैं , लड़की थोड़ा बन -संवरकर रहेंगी, तब अच्छी लगेगी।आजकल लड़के टीप -टॉप लड़कियों को ही पसंद करते हैं। लेकिन नहीं, यह तो कहती है -'मुझे बनावटी जीवन पसंद ही नहीं है, मैं जैसी हूं, ठीक हूं किन्तु आज अपने आप ही चली गई ,प्रसन्न होते हुए वे बोलीं - पता नहीं, इस लड़की के मन में क्या-क्या चलता रहता है ?
शैली पॉर्लर में जाकर ,उस आईने के सामने बैठ जाती है ,जो उसे, उसकी सही तस्वीर दिखला रहा था ,उसमें उसका गेहुंआ रंग ,तीखे नयन नक्श ! कितने सालों से उसके लिए रिश्ते आ रहे हैं ,जब वो मात्र इक्कीस की थी। माँ ने सोचा था-लड़की की उम्र है ,विवाह समय से ही कर देना चाहिए। उस समय शैली को भी कोई ज्यादा समझ नहीं थी बल्कि ये सोचकर ही उसका दिल घबरा उठता था, कि किसी दूसरे के घर जाकर वो कैसे रहेगी ? न जाने कैसे लोग होंगे ?कौन उसे 'पॉकिट मनी 'देगा ? पहली बार जब उसे लड़के वाले देखने आये थे ,उसे देखकर लड़के ने ही उससे पूछा था -तुम इतनी कम उम्र में विवाह के लिए कैसे तैयार हो गयीं ?
शैली नादान थी ,वो लड़के से बोली -पता नहीं ,मम्मी -पापा ही विवाह के लिए कह रहे हैं। तब उसकी इस बात का लड़के ने घर पहुंचकर यही अर्थ निकाला लड़की तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं है। उसके पश्चात घर में उसे बहुत डांट पड़ी ,वो स्वयं ही नहीं समझ पाई ,ऐसा उसने ,उस लड़के से क्या कह दिया ?उसके पश्चात माता -पिता ने लड़के को बहुत समझाने का प्रयास किया किन्तु वह टस से मस न हुआ। इसी प्रकार कुछ दिनों की मेहनत के पश्चात घरवालों ने एक लड़का और देख लिया ,फिर से घर में तैयारियाँ आरम्भ होने लगीं ,लड़केवाले उसे देखने आये ,सबको लग रहा था ,अब तो बात बन ही जाएगी। मां ने उसे पहले ही समझा दिया था -''कुछ भी ज्यादा मत बोलना और जो भी बोलना बहुत सोच -समझकर बोलना।'
फिर से शैली की नुमाइश लगी ,उसकी खूबियों को गिनवाया गया। उस समय वो ऐसे महसूस कर रही थी ,जैसे वो किसी दुकान का सामान हो और उसके घरवाले दुकानदार ,हमारी बेटी ,खाना बहुत अच्छा बना लेती है ,जी इसे, हमने अच्छे संस्कार दिए हैं किन्तु उन ख़रीददार को उनका वो माल पसंद नहीं आया क्योंकि लड़के को एक नौकरी पेशा स्मार्ट लड़की चाहिए ,उसे घरेलू लड़की से विवाह नहीं करना है। शैली की पसंद -नापसंद का तो प्रश्न ही नहीं था ,कि उसे भी वो लड़का पसंद है या नहीं।
इस तरह अनेक लड़के आये ,किसी को लड़की का रंग दबा हुआ लगा ,लड़कों की मांग के आधार पर माता -पिता का भी परिश्रम बढ़ जाता ,तब उन्होंने अपनी सोच को दरकिनार कर बेटी को अपने से दूर नौकरी करने भेजा। जब बेटी का रंग दबा बताया तब माँ गूगल कर करके ,बेटी के रंग के लिए ,नए -नए उबटन उपचार खोजने लगती ,मेरे घरवाले भी कैसे हैं ,अपनी बेटी के सुंदर भविष्य के लिए कितना सोच रहे हैं ? अपने आपको भी कितना बदल रहे हैं ?सोचकर उसकी आँखें नम हो आईं।
मन ही मन आज शैली ने भी एक निर्णय लिया ,अब ये' तिरस्कार और नहीं सहेगी''कब तक अपने परिवारवालों को और अपने को अपमानित करवाती रहेगी ,बस ये आख़िरी बार है।
