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Laxmi Tyagi

Romance Tragedy Inspirational

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Laxmi Tyagi

Romance Tragedy Inspirational

आधा सच

आधा सच

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कार्तिक, मन ही मन दीप्ती से प्रेम करता था किन्तु उससे कभी कह न सका। यह तब कि बात है ,जब दोनों ने दसवीं की परीक्षाएं पास की थीं। दोनों ही अत्यंत प्रसन्न थे ,दोनों के पापा भी एक -दूसरे के मित्र थे। एक दिन कार्तिक के पापा ,दीप्ती के पापा से कह रहे थे -हमारे बच्चे ,पढ़ने में होशियार हैं और उन्नति कर रहे हैं ,दोनों के परिणाम भी अच्छे आये। हम, एक दूसरे के परिवार को जानते भी हैं, और समझते भी हैं। बच्चों को भी बचपन से देखते आ रहे हैं। क्यों न, यह हमारी दोस्ती, रिश्तेदारी में बदल जाए। 


दीप्ति के पापा बोले -तुम सही कह रहे हो , मुझे भी यही लगता है ,किंतु अभी हमें अपने बच्चों को, थोड़ा समय देना चाहिए यह बात हमें अपने तक ही सीमित रखनी चाहिए। न जाने, भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है ? और समय मिलते ही, बच्चों से पूछकर हम, इस दोस्ती को आगे बढ़ाते हैं। जब वह दोनों यह बातें कर रहे थे, तब यह बातें, कार्तिक ने सुन ली थीं। कार्तिक मन ही मन प्रसन्न हुआ, उसे दीप्ति तो पहले से ही, अच्छी लगती थी लेकिन कभी उस दृष्टि से नहीं देखा था किंतु जब से उसने ,अपने पापा की बातें सुनी तो उसे लगा -इस रिश्ते में कोई बुराई भी नहीं है। अब वह दीप्ति के समीप ही रहकर, उसकी ज्यादा से ज्यादा, परवाह करने लगा।मन ही मन जीवन में दीप्ती के साथ रहने के सपने सजाने लगे। 

कार्तिक हमेशा उसका ध्यान रखता, कभी उसे अकेला नहीं छोड़ता, लेकिन उसने कभी भी यह बात, दीप्ति को बताई नहीं थी। एक तरह से देखा जाए तो वह दीप्ति का रक्षक बन गया था। दीप्ति को भी, इसमें कोई बुराई नजर नहीं आई। वह भी सोच रही थी ,दोस्ती के नाते, हमारे पापा भी दोस्त हैं, शायद इसीलिए यह मेरी इतनी परवाह करता है। 

दीप्ति मन ही मन,अपने कॉलिज के लड़के सुबोध को पसंद करती थी। किंतु यह बात उसने भी ,कभी किसी से नहीं कही। सुबोध भी, उसी कॉलेज में पढ़ता था जिसमें दीप्ति और उनके अन्य मित्र थे। धीरे-धीरे कार्तिक के व्यवहार से उसके दोस्तों को महसूस होने लगा कि कार्तिक ,दीप्ति की कुछ ज्यादा ही परवाह करता है। कहीं कुछ बात तो नहीं, उन्होंने दीप्ति से जानना चाहा किंतु दीप्ति ने इस बात से इनकार कर दिया।उसके दोस्तों को लगता था,कि अवश्य ही ,कार्तिक के मन में कुछ तो चल रहा है। उसका व्यवहार मात्र उसकी परवाह नहीं है। 

 अब दीप्ति भी सोचने लगी थी -मेरे दोस्त जो कह रहे हैं ,कहीं यह बात सही न हो। शुरू से ही, कार्तिक का व्यवहार अच्छा रहा था , वह कार्तिक से कह देना चाहती थी और पूछना चाहती थी -तुम मेरी इतनी परवाह क्यों करते हो ? किंतु कहते कहते रुक जाती । कहीं कार्तिक मेरी बातों से आहत न हो जाए,जब तक ये सब चल रहा है ,चलने देते हैं। फिर मन ही मन अपने को समझाया और सोचने लगी -हो सकता है, हमारे दोस्तों ने ही गलत अर्थ लगाया हो। हम तो बचपन से ही साथ हैं, इसी नाते वह मेरी परवाह भी करता है। 

दीप्ति के दोस्तों ने कहा था , कि तुझे यह बात कार्तिक से कहकर स्पष्ट कर लेनी चाहिए कि उसके मन में तेरे प्रति कोई गलतफहमी तो नहीं , दीप्ति भी कहना तो चाहती थी किंतु उसे यह भी डर था कि कहीं कार्तिक उसे गलत न समझ बैठे ! क्योंकि उसने देखा था, अब वह सोचने लगी थी, कि उसको लेकर कार्तिक कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गया है। यह उनके रिश्ते के लिए गलत होगा। तब उसने कार्तिक से कहा -हम दोनों बचपन के दोस्त हैं, हमारे पापा भी एक दूसरे के दोस्त हैं , यह हमारी दोस्ती के लिए अच्छा है, हम एक दूसरे को अच्छे से जानते भी हैं किंतु हम किसी भी विषय में सोचने से पहले, हमें एक दूसरे की बातें जान और समझ लेनी चाहिए। 

यह बात कार्तिक को भी अच्छी लगी और कार्तिक एकाएक उससे कह बैठा ,-तुम सही कह रही हो , जो बात में इतने दिनों से अपने मन में छुपाए बैठा था, आज मैं बता देना चाहता हूं। मैं तुमसे प्रेम करने लगा हूँ ,आज से नहीं, मेरा ये प्रेम बरसों से है किन्तु मैंने तुमसे कभी कहा नहीं ,अब तो मुझे लगता है ,मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाउँगा कहते हुए, उसने दीप्ती का हाथ पकड़ लिया और बोला - हमारे पापा को भी ये रिश्ता पसंद है। अब तो कार्तिक को लग रहा था ,मैंने दीप्ती से अपने दिल की बात कह दी ,वह जानना चाहता था,दीप्ती क्या कहती है ? 

दीप्ती !कार्तिक की बात सुनकर गंभीर हो गई और बोली -मुझे नहीं पता हमारे पापा में ,आपस में क्या बातें हुई ? तुम और मैं अच्छे दोस्त है , अभी मैंने तुम्हें उस नजर से नहीं देखा। अभी हम पढ़ रहे हैं , तुम भी जिम्मेदारी उठाने के काबिल नहीं हो ,हो सकता है -भविष्य में मैं, तुम्हारे बारे में सोच सकूं। जब तक हम अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते हैं ,तब तक यह बात, हम अपने तक ही सीमित रखेंगे। यह दीप्ति ने कार्तिक से ''आधा सच'' कहा क्योंकि दीप्ति तो सुबोध को पसंद करती थी किंतु कार्तिक के भविष्य को सोचकर, कि कहीं मेरे इंकार करने पर, वह परेशान न हो जाए या कुछ कर न बैठे ! 'आधा सच 'यही था, कि अभी वह सुबोध के नौकरी लगने की प्रतीक्षा कर रही थी। 

 उसे लगता था ,मेरा ये ''आधा सच ''समय के साथ उसको सम्भलने की हिम्मत देगा और हो सकता है मेरे इतना महत्व न देने पर अथवा उसके जीवन में ,कोई और आ जाये। वरना उसे धीरे -धीरे ''पूरा सच ''बताने का प्रयास करूंगी कि उसके जीवन में कोई और है। 

 इस विषय परउसने अपने घर पर बात की , उसके पापा को सुबोध के रिश्ते से कोई एतराज नहीं था किंतु जब उन्होंने कार्तिक की बात सुनी तो गंभीर हो गए और बोले -इसका परिणाम बहुत गलत भी हो सकता है ,ये तुमने अच्छा किया,अभी तुम्हारे ''आधे सच '' ने स्थिति को संभाल लिया। 


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