तिरंगा
तिरंगा
मां तिरंगा कब लेकर आओगी? कल हमारी स्टेज रिहर्सल है। प्रवीर थोड़ी परेशानी के भाव लिए पूछने लगा।
आज शाम तक ले आऊंगी प्रवीर। परेशान मत हो। वैसे एक बात बताओ रिहर्सल तिरंगे के बिना भी तो हो सकती है और कार्यक्रम को तो अभी पूरा एक सप्ताह बाकी है फिर तुम इतना परेशान क्यों हो रहे हो। नहीं मां! रिहर्सल तिरंगे के बिना बिल्कुल भी नहीं हो सकती है। तिरंगे को कैसे पकड़ना है, कैसे रखना है, किसे हमारे हाथ से कैसे लेना है, फिर कैसे कहां रखना है यह सब हम सबको अच्छे से समझना आवश्यक है। इसमें थोड़ी सी भी भूल स्वीकार्य नहीं होगी।
ऐसा क्यों ? सब कुछ समझते हुए भी स्मिता ने नासमझ बनते हुए पूछा। मां तिरंगा हमारा सम्मान है, स्वाभिमान है, यह हमारे देश की पहचान है, हमारी स्वतंत्रता का प्रमाण है, हमारे हौसलों की बुनियाद है।
तिरंगे के हर रंग के पीछे कोई न कोई संदेश व मार्गदर्शन छिपा है। अशोक चक्र भी हमें कर्मठता का संदेश देता है। फिर इसकी थोड़ी- सी भी अवहेलना कोई कैसे सहन कर सकता है। बहुत ही भावुक मन से स्मिता ने बिना कुछ कहे प्रवीर को गले से लगा लिया और उसकी पीठ थपथपाने लगी। आज अपने पुत्र व तिरंगे दोनों के लिए स्मिता बहुत ही गर्वित महसूस कर रही थी। और जान गई धी कि बड़ा होकर प्रवीर भारत का एक जागरूक, संवेदनशील व जिम्मेदार नागरिक बनेगा। क्योंकि संस्कारऔर समझदारी तो उसमें कूट कूट कर भरी है।