थैंक्यू दीदी
थैंक्यू दीदी
वो 10-12 साल का लड़का शुगर बॉल्स ( बचपन में हम इन्हें बूढ़ी माई के बाल कहते थे) बेच रहा था। हर सामने सेआने वाले की ओर उम्मीद से देखता। बिना खरीदे निकल जाने पर निराश हो जाता। बहुत थका हुआ भी लग रहा था। बापू ने गिन कर बीस पैकेट दिए हैं। और लौटने पर गिन कर 200 ₹ ले लेंगे। शाम गहरा रही थी। अभी भी दो बचे थे। वो हर जाने वाले से थकी हुई आवाज़ में गुहार लगाता," ले लो बाबूजी। आपका मुन्ना खुश हो जाएगा। ले लो आंटी जी, मुँह में रखते ही घुल जाएगा। सिर्फ 10 रुपये का एक। "
सामने से दो लड़कियां आयीं। एक लड़की लगातार बातें कर रही थी। शायद उन्होंने लड़के की तरफ देखा भी नहीं। उन लड़कियों से बच्चे को कोई उम्मीद न थी। आजकल लड़कियाँ मीठा खाती ही नहीं। सोचती हैं मोटी हो जाएंगी। बच्चा चुपचाप खड़ा रहा। कुछ कदम आगे जाकर एक लड़की लौटी और पूछने लगी," कितने का है एक ?"
"दस रुपये का मैडम", वह चहक उठा। नन्हा व्यापारी जानता था कि किसे आंटी कहना है, किसे दीदी या मैडम।
"अच्छा, दोनों दे दो।" बीस रुपये थमाते हुए लड़की बोली।
बच्चे के चेहरे पर रौनक आ गयी।
लड़की ने फौरन एक पैकेट खोला और बच्चे को देते हुए कहा," लो खाओ, तुम्हारे लिए है।"
हाथ में पैकेट थामे बच्चा फौरन अंधेरे की तरफ बढ़ गया। बापू ने देख लिया तो मारेगा।
फिर दूर जाती हुई उस लड़की की तरफ देख कर बोला, थैंक्यू दीदी।