STORYMIRROR

Arya Jha

Drama

3  

Arya Jha

Drama

थाली का बैंगन

थाली का बैंगन

4 mins
446

शीर्षक देखकर आप जरूर चौंक गए होंगे। यहाँ किसी रेसिपी की नहीं बल्कि एक अलग किस्म के पति की चर्चा हो रही है। वैसे तो पतियों के भी कई प्रकार होते हैं। कुछ रौबदार तो कुछ भावुक से होते हैं। ज्यादातर पति समय-समय पर अपने गुणों में बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं और सफल वैवाहिक जीवन का आनंद उठाते हैं। आज की कहानी के नायक वो हैं, कभी इधर तो कभी उधर पलटी मारते रहते हैं। अपनी पोल-पट्टी खुल जाने के डर से अक्सर कहीं भी अकेले आना-जाना चाहते हैं। चलिए आपको उनसे मिलवा ही देती हूँ। ये श्री 'मयंक मिश्रा जी' जो निहायत ही शरीफ किस्म के प्राणी हैं। दूर के रिश्ते में मेरे देवर लगते हैं। एक जमाना था बेचारे 'भाभीजी-भाभीजी' करते ना थकते थे और अब ईद का चाँद बन गये हैं। मार्केटिंग की नौकरी के कारण यदा-कदा हमारी काॅलोनी से गुजरते हुए दर्शन देते रहते थे। इधर कुछ दिनों से उनके तरफ से कोई क्रिया-प्रतिक्रिया नहीं हुई है तो सोचा क्यों न आखिरी मुलाकात की यादें ताजी की जाएँ।

मेरे पतिदेव उन दिनों प्रवासी थे तो उनके छुट्टियों में घर आने पर अक्सर मैं मित्रों व रिश्तदारों को रात के खाने पर आमंत्रित किया करती थी। मिलना-जुलना भी हो जाता और मनोरंजन भी। ऐसी एक खुबसूरत शाम थी जब हमने मयंक जी को सपरिवार आमंत्रित किया था। नियत समय पर वह अपनी सदाबहार मुस्कान के साथ हाजिर थे। सामने टेरेस पर बैठकर सभी पारिवारिक चर्चित कहानियों की पुनरावृत्ति के बाद खाने की बारी आई। बिरयानी के बिना तो हैदराबादी 'गेट-टुगेदर' अधुरी ही होती है।

मैंने चिकेन बिरयानी बने थी। अच्छी बन गई थी और खुशी से खाई गई। मीठे में मखाने की खीर और गुलाब जामुन थे। खाने के बाद जब मिश्रा जी संतुष्ट हो गये तब तारीफों के पुल बांधने लगे। प्रशंसा करने की आदत थी तो किये बिना उनसे रहा न गया।

"ओहो! क्या बिरयानी बनाई भाभीजी। जो कहिये, बड़ा ही स्वाद है आपके हाथों में। आज तो मजा ही आ गया। खीर और गुलाब जामुन तो ऐसे थे जैसे कि सोने पर सुहागा।"

वह बोले जा रहे थे और मैं सुन रही थी। "अरे नहीं! आप कुछ ज्यादा ही ........." प्रशंसा सुनकर मंद-मंद मुस्कुराती हुई आनंद लेना शुरू ही किया था कि वह अपनी श्रीमती जी की ओर मुखातिब हो बोले, "तुम भी तो कुछ सीखो भाभी जी से....."

"झूठे हैं आप..... बस झूठ बोलते रहते हैं। इनके सामने झूठ-मूठ की तारीफें करते हैं। पिछली दफे सीख कर भाभी वाली रेसिपी बनाई तो कहने लगे कि मैंने उनका मन रखने के लिए कहा था। तुम अपने ही तरीके से बनाया करो। मुझे तुम्हारी रेसिपी ज्यादा पसंद है।" बड़ी ही बेफ़िक्री से उनकी पत्नी ने कहा। सभी ठहाके लगा रहे थे सिवा मयंक मिश्रा के। उनका चेहरा सफेद पड़ चुका था। पत्नी ने बेड़ा गर्क कर दिया था। काटो तो खून नहीं वाली हालत थी। मयंक जी बिना बोले बाहर टहल दिये। मेरे इतने बड़े प्रशंसक की बेइज्जती हो रही थी, आखिर मेरा साथ देना तो बनता था।

"मार्केटिंग के बंदे हैं। खुश करना जानते हैं और जरूरत पड़ने पर सबको खुश करने में समर्थ भी हैं। भाभी के सामने भाभी की और बाद में ......." मैं मामला संभालने में लगी थी।

"अरे नहीं भाभी! थाली के बैंगन हैं ये और कुछ भी नहीं!"

मैडम तो जैसे कुछ ठान कर आई थीं।अभी हमारी बातें चल ही रही थीं कि मयंक जी आनन-फानन में जूते पहन फटाफट गाड़ी में जा बैठे। पत्नी मूड में आ गई थीं। कहीं किसी और राज का पर्दाफाश ना हो, ये सोच गाड़ी का हाॅर्न बजाने में लग गए थे।

उस रोज़ किसी तरह अपनी बची-खुची इज्ज़त समेटे ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सिर से सींग। तब के गये आजतक नदारद हैं। उनकी सारी कलई खुल गई तो समझ में आ गया था कि थाली के बैंगन बनने से अच्छा पत्नी की भक्ति है। सरेआम बेइज्जती कराने से बेहतर है कि उन्हें पहले खुश करें जिनके संग जिंदगी बितानी है। आपकी क्या राय है? कहीं आप भी मिली है, किसी ऐसे व्यक्ति से जिनकी खुद की स्थिति डावांडोल, थाली के बैंगन सी होती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama