"तेरा नाम था लबों पर..."
"तेरा नाम था लबों पर..."
नोट:~मुझे कहानी पब्लिश करने के दिक्कत आ रही है, तो मैने एक ही मैं सारे अध्याय लिख दिए!
कृपया अपना प्यार दीजीए??🔥
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बारिश की हल्की बूंदें खिड़की के शीशों से टकरा रही थीं। मुंबई की शामें यूँ ही दिल चुरा लेती हैं, पर उस दिन कुछ खास था।
काव्या ने कॉफी का मग उठाया और बालकनी में आकर बैठ गई। सामने की सड़क पर लोग भागते-झगड़ते चल रहे थे, मगर उसकी दुनिया जैसे थमी थी। हाथों में उसकी डायरी थी — वही पुरानी, जिसमें वो हर रात अपने "उस" के बारे में लिखा करती थी।🤫🤫
"वो जो मिला ही नहीं, फिर भी सबसे अपना लगा..."
सालों से यही होता आया है — वो किसी भीड़ में था, वो किसी शहर में था, वो किसी किताब की कहानी जैसा था — मगर था सिर्फ उसका।
🗒️🖋️ मुलाक़ात🗒️🖋️
चार साल पहले...
दिल्ली की एक किताबों की प्रदर्शनी में काव्या पहली बार उससे टकराई थी। किताबों से भरी दीवारों के बीच, जब वो एक गुलाबी कुर्ते में अपनी मनपसंद शायरी की किताब ढूंढ रही थी — तभी पीछे से एक आवाज़ आई थी:
"ये किताब तो मेरी है।"🗒️
काव्या ने पलटकर देखा — नीली शर्ट, किताबों से भरा थैला, और आँखों में वो सुकून जैसे पहाड़ों की ठंडी हवा हो। नाम था — रूहान।
"आपके नाम पर थोड़ी है!" काव्या ने चुटकी ली।🤭
रूहान मुस्कुराया, "तो चलिए... नाम बता दीजिए... आधी किताब आपकी, आधी मेरी।"
✨✨
उस दिन के बाद उनकी दोस्ती का सिलसिला चल निकला। कभी कैफे में किताबों की बातें, कभी पुराने गानों पर बहस। रूहान कुछ अलग था — ज़िन्दगी को महसूस करता था, हर चीज़ को गहराई से समझता था।
वो अकसर कहता था,
"काव्या, हम लोग इस दुनिया में सब कुछ समझ लेते हैं... सिवाय उस इंसान के, जो हमें सबसे ज्यादा चाहिए होता है।"🤔🤔
काव्या बस मुस्कुराती थी। उसे कब रूहान से मोहब्बत हो गई — उसे खुद भी पता नहीं चला।😩
एक शाम, इंडिया गेट के पास बैठकर जब रूहान ने कहा —
"मैं दो हफ्तों के लिए लंदन जा रहा हूँ। स्कॉलरशिप मिली है… शायद कुछ साल रुक जाऊँ..."
काव्या की मुस्कान कहीं खो गई।
"कितनी देर और चलेगा ये दोस्ती वाला खेल, रूहान?" — काव्या के लब कांपे थे।
रूहान चुप रहा। उसकी खामोशी में बहुत कुछ था।
"कुछ रिश्ते बस खूबसूरत होते हैं, उन्हें नाम देने से डर लगता है…" — उसने बस इतना कहा।
और वो चला गया...😩
"साल की ख़ामोशी😩
काव्या ने कभी रूहान को कुछ नहीं कहा। न उसका इंतज़ार किया, न भुला पाई।
वो अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ गई। लिखना शुरू किया, रेडियो पर शायरी पढ़ती, पर हर शब्द में वो ही था — रूहान।
हर शाम जब बारिश होती, वो एक ही गाना बजाती —
"तुम आए तो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला…"✨🤔
" पुनर्मिलन"✨
चार साल बाद — एक लिटरेरी फेस्टिवल में, जब काव्या अपनी नई किताब "तेरा नाम था लबों पर…" पर साइन कर रही थी, तभी एक जाना-पहचाना चेहरा सामने आया।
वो रूहान था।💓
"मैंने तुम्हारी सारी कहानियाँ पढ़ी हैं…" — उसने कहा।😩✨
काव्या ने नज़रें चुराईं, मगर दिल ज़ोर से धड़कने लगा।💓
"तुमने कभी लिखा क्यों नहीं?" — उसकी आवाज़ में शिकायत थी।😁
"कभी तुमसे इजाज़त नहीं ली थी ना..." — काव्या की आँखें नम थीं।🥺
फेस्टिवल खत्म होने के बाद, रूहान ने उसे उसी किताबों की दुकान पर बुलाया, जहाँ पहली मुलाक़ात हुई थी।
"तुम अब भी वही किताबें पढ़ती हो?" — उसने पूछा।
"हाँ… और अब भी वही शख़्स याद आता है।"
रूहान ने एक डायरी उसके सामने रखी।
"ये तुम्हारे लिए है… चार सालों का हिसाब… हर पन्ने पर सिर्फ तुम हो।"
काव्या ने खोला — उसमें लिखा था:
"मैंने बहुत कुछ पढ़ा... पर तुम्हारी आँखें सबसे खूबसूरत किताब थीं।"
"मैंने बहुत कुछ कहा... पर तुम्हारी खामोशी सबसे प्यारी आवाज़ थी।"
"मैंने बहुत कुछ चाहा... पर तुम्हारे बिना कुछ भी पूरा नहीं था।"काव्या रो पड़ी।😩♥️
"तुम्हारे बिना शब्द भी अधूरे थे, रूहान…
आज काव्या की बालकनी में दो मग रखे हैं। बाहर फिर से बारिश हो रही है, और रूहान उसकी डायरी में कुछ लिख रहा है।☕❤️☕
"क्या लिख रहे हो?" — काव्या मुस्कुराई।🤔🗒️🖋️
"तेरा नाम… फिर से… हमेशा के लिए…" — उसने उसकी उंगलियाँ थाम लीं।"😁✨💓
कुछ मोहब्बतें वक्त नहीं मांगतीं, बस एहसास माँगती हैं।
कुछ नाम किताबों में नहीं, दिलों में बसते हैं।
- Diksha mis kahani 😙
क्या आपके पास भी कोई नाम है, जो अब भी आपके लबों पर रहता है...?
और कुछ लोग... देर से ही सही, पर लौट आते हैं — हमेशा के लिए।
कैसा लगा आपको
बताना जरूर!?😁😁

