"मौसम तुम बन गए"
"मौसम तुम बन गए"
मुख्य किरदार:
अनिरुद्ध राठौड़: ठंडा, अनुशासित, सख्त स्वभाव का बिज़नेस टायकून!😎
प्राजक्ता मिश्रा: आज़ाद ख्यालों वाली, कविताएं लिखने वाली लड़की, जिसे प्यार और शादी से उम्मीदें हैं!🫣
"शादी दो लोगों का साथ नहीं, दो रूहों की मोहब्बत का नाम होती है..."🤗🤗
...लेकिन जब शादी मजबूरी में हो, तब क्या?
🖋️ कहानी शुरू होती है...
प्राजक्ता मिश्रा की दुनिया रंगों और कविताओं से भरी थी। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसकी शादी एक ऐसे शख्स से होगी, जिसे उसने कभी ठीक से देखा भी नहीं — अनिरुद्ध राठौड़, एक सख्त बिजनेसमैन, जिसकी ज़िंदगी में प्यार का नाम तक नहीं था।🫣
दोनों की शादी एक पारिवारिक समझौते के तहत हुई थी — राठौड़ों की जमीन और मिश्रा की कंपनी को बचाने के लिए।
प्राजक्ता के शब्द:
"ये शादी मेरी मर्ज़ी से नहीं है... लेकिन अगर मैं इसमें कुछ अच्छाई ढूंढ सकूं, तो शायद मेरी ज़िंदगी तबाह नहीं होगी।"
शादी के बाद दोनों एक ही घर में आ गए, लेकिन कमरे अलग थे, रास्ते अलग थे।
अनिरुद्ध ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया —
"मैं तुम्हें कोई ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं बनने दूँगा। ये सिर्फ एक समझौता है।"😐
प्राजक्ता ने मुस्कुराकर जवाब दिया —😎
"मैं कोई बोझ नहीं बनती, मैं सिर्फ अपने हिस्से की धूप ढूंढती हूं।"
वक़्त बीतता गया। अनिरुद्ध को प्राजक्ता की आदतें खलती नहीं थीं — वो बस उन्हें समझ नहीं पाता था।
वो देखता कैसे प्राजक्ता हर सुबह बालकनी में बैठकर चाय पीती, पौधों से बातें करती, और रोज़ एक नई कविता लिखती।🗒️🖋️
एक दिन वो बोली,
"तुम इतने चुप क्यों रहते हो?"🤔
अनिरुद्ध: "क्योंकि आवाज़ें अक्सर धोखा देती हैं।"😌
प्राजक्ता ने धीरे से कहा —
"और खामोशियाँ अक्सर छिपे हुए दर्द को चुपचाप जीती हैं…"😌
एक शाम अनिरुद्ध ऑफिस से लौटा, तो प्राजक्ता बीमार थी। पहली बार, अनिरुद्ध के चेहरे पर चिंता थी।
उसने उसके माथे पर हाथ रखा —
"डॉक्टर को बुलाता हूं…"
प्राजक्ता की आंखों में आँसू थे।
"क्या अब भी ये शादी सिर्फ समझौता है?"
उस रात अनिरुद्ध देर तक जागता रहा। पहली बार उसने प्राजक्ता की डायरी पढ़ी — उसमें सिर्फ उसकी बातों के टुकड़े थे… बिना कहे प्यार की स्याही में भीगे हुए शब्द।🗒️✨
कई हफ्तों बाद, अनिरुद्ध ने प्राजक्ता को एक खाली फ्रेम दिया —
"तुम्हारी कविताओं के लिए… जो मेरी ज़िंदगी में रंग भर रही हैं।"🫣
प्राजक्ता ने आँखें झुका लीं —😌
"क्या अब मैं तुम्हारी ज़िंदगी का हिस्सा हूं?"🥺
अनिरुद्ध ने उसका हाथ थामा —
"अब तुम सिर्फ मेरी पत्नी नहीं हो… तुम मेरी सुकून हो।"
अब प्राजक्ता अनिरुद्ध के साथ बिजनेस ट्रिप पर जाने लगी। वो होटल की बालकनी से उसे देखती, और अनिरुद्ध बिना कहे मुस्कुरा देता।
एक दिन उसने कहा —
"तुम्हारा साथ वैसा ही है, जैसे सर्दियों की सुबह में चाय का पहला घूंट।"
अनिरुद्ध ने कहा —
"और तुम्हारी मौजूदगी वैसी है जैसे बर्फ में सूरज की हल्की रोशनी।"
❤️वादा जो दिल ने लिया❤️
अब उनकी शादी एक समझौता नहीं, एक मोहब्बत बन चुकी थी।
एक दिन प्राजक्ता की पुरानी डायरी में उसने लिखा:
> "कभी सोचा नहीं था कि मजबूरी की डोर मोहब्बत की चादर बन जाएगी…❤️✨
पर आज मैं कह सकती हूं — मैं सिर्फ तुम्हारी हूं, बिना किसी शर्त के।"
शादी की सालगिरह पर अनिरुद्ध ने उसे वही पहला खाली फ्रेम वापस दिया — इस बार उसमें प्राजक्ता की लिखी कविता लगी थी:
> "जब रिश्ते बेवजह शुरू होते हैं,✨✨
तब प्यार का मौसम सबसे ज्यादा खूबसूरत होता है।
*******
"कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा करती है जहाँ हम किसी के साथ बंध जाते हैं — बिना चाहत के, बिना इरादे के। पर वक़्त, सच्चाई और थोड़ी सी भावना, उस बंधन को प्यार की गहराई में बदल सकती है।
,#मौसम_तुम_बन_गए
My Parahearts (readers) आपको स्टोरी कैसी लगी
~Diksha mis kahani 💌

